अख़्तर नज़्मी की ग़ज़लें
1. बेख़्याली का बड़ा हाथ है रुसवाई में
आप से बात करेंगे कभी तन्हाई में
हम हैं तस्वीरों के माहौल में जीने वाले
हम उतर जाते हैं हर रंग की गेहराई में
बन गए लोग तअल्लुक़ के भरोसे क्या क्या
हम तो मारे गए इस रस्म-ए-शनासाई में
मैंनें वो बात भी पढ़ली जो इबारत में न थी
लोग मसरूफ़ रहे हाशिया आराई में
पेड़ के फल तो पड़ोसी नहीं छूने देते
छांव कुछ देर को आजाती है अंगनाई में
नक़्श दीवार पे उभरेंगे तो डर जाओगे
ख़्वाब नज़्मी न तराशा करो तन्हाई में
2. अब नहीं लोट के आने वाला
घर खुला छोड़ के जाने वाला
होगईं कुछ इधर ऐसी बातें
रुक गया रोज़ का आने वाला
जिस्म आँखों से चुरा लेता है
एक तस्वीर बनाने वाला
लाख चेहरा हो शगुफ़्ता लेकिन
ख़ुश नहीं ख़ुश नज़र आने वाला
ज़द में तूफ़ान की आया कैसे
प्यास साहिल पे बुझाने वाला
रेह गया है मेरा साया बनकर
मुझ को ख़ातिर में न लाने वाला
बन गया हमसफ़र आख़िर नज़्मी
रास्ता काट के जाने वाला