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मुनव्वर राना की ग़ज़ल
कई घर हो गए बरबाद ख़ुद्दारी बचाने में ज़मीनें बिक गईं सारी ज़मींदारी बचाने मेंकहाँ आसान है पहली मुहब्बत को भुला देना बहुत मैंने लहू थूका है घरदारी बचाने में कली का ख़ून कर देते हैं क़ब्रों की सजावट में मकानों को गिरा देते हैं फुलवारी बचाने में कोई मुश्किल नहीं है ताज उठाना पहन लेनामगर जानें चली जाती हैं सरदारी बचाने में बुलावा जब बड़े दरबार से आता है ऐ 'राना' तो फिर नाकाम हो जाते हैं दरबारी बचाने में