मोमिन की ग़ज़लें

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1. असर उसको ज़रा नहीं होता==रंज राहत फ़िज़ा नहीं होता
ज़िक्र-ए-अग़यार से हुआ मालूम==हर्फ़े नासेह बुरा नहीं होता
तुम हमारे किसी तरह न हुए==वरना दुनिया में क्या नहीं होता
उसने क्या जाने क्या किया लेकर==दिल किसी काम का नहीं होता
तुम मेरे पास होते हो गोया == जब कोई दूसरा नहीं होता
हाल-ए-दिल यार को लिखूँ क्योंकर==हाथ दिल से जुदा नहीं होता
चारा-ए-दिल सिवाए सब्र नही==सो तुम्हारे सिवा नहीं होता
नारसाई से दम रुके तो रुके == मैं किसी से ख़फ़ा नहीं होता
क्योंसुने अर्ज़े मुज़्तर ऎ मोमिन==सनम आख़िर ख़ुदा नहीं होता

ग़ज़ल के कठिन शब्दों के अर्थ
राहत फ़िज़ा--शांति देने वाला, ज़िक्र-ए-अग़यार--दुश्मनों की चर्चा
हर्फ़-ए-नासेह--शब्द नासेह (नासेह-नसीहत करने वाला)
यार--दोस्त-मित्र, चारा-ए-दिल--दिल का उपचार,
नारसाई--पहुँच से बाहर, अर्ज़ेमुज़्तर--व्याकुल मन का आवेदन

2. दिल क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ नहीं रहा
वो वलवला, वो जोश, वो तुग़याँ नहीं रहा

करते हैं अपने ज़ख़्म-ए-जिगर को रफ़ू हम आप
कुछ भी ख़्याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़गाँ नहीं रहा

क्या अच्छे हो गए कि भलों से बुरे हुए
यारों को फ़िक्र-ए-चारा-ओ-दरमाँ नही रहा

किस काम के रहे जो किसी से रहा न काम
सर है मगर ग़ुरूर का सामाँ नहीं रहा

मोमिन ये लाफ़-ए-उलफ़त-ए-तक़वा है क्यों अबस
दिल्ली में कोई दुश्मन-ए-ईमाँ नहीं रहा

ग़ज़ल के कठिन शब्दों के अर्थ
क़ाबिल-ए-मोहब्बत-ए-जानाँ==प्रीतम के प्रेम के क़ाबिल
वलवला--जोश ख़रोश, तुग़याँ--ज़ोर- चढ़ाओ, रफ़ू--सिलाई
ख़्याल-ए-जुम्बिश-ए-मिज़गाँ-- पलकों के हिलने-जुलने का ध्यान
फ़िक्र-ए-चारा-ओ-दरमाँ--दवा-दारू की चिंता,
लाफ़--बकवास-शेख़ी- ढोंग इत्याद ि

3. तुम भी रहने लगे ख़फ़ा साहब ==कहीं साया मेरा पड़ा साहब
है ये बन्दा ही बेवफ़ा साहब ==ग़ैर और तुम भले भला साहब
क्यों उलझते हो जुम्बिशेलब से==ख़ैर है मैंने क्या कहा साहब
क्यों लगे देने ख़त्ते आज़ादी==कुछ गुनह भी ग़ुलाम का साहब
दमे आख़िर भी तुम नहीं आते==बन्दगी अब कि मैं चला साहब
सितम, आज़ार, ज़ुल्म, जोरोजफ़ा==जो किया सो भला किया साहब
किससे बिगड़ेथे,किसपे ग़ुस्साथे==रात तुम किसपे थे ख़फ़ा साहब
किसको देते थे गालियाँ लाखों==किसका शब ज़िक्रेख़ैर था साहब
नामे इश्क़ेबुताँ न लो मोमिन==कीजिए बस ख़ुदा-ख़ुदा साहब

ग़ज़ल के कठिन शब्दों के अर्थ
ख़फ़ा--नाराज़-कुपित, जुम्बिशे लब--होंटो का हिलना
ख़त्तेआज़ादी--आज़ाद होने का पत्र- छुटकारा- तलाक़,
दमेआख़िर-- अंतिम समय, ज़िक्रेख़ैर--बखान,
नाम-ए-इश्क़-ए-बुताँ--मसीनों के प्रेम का नाम

4. थी वस्ल में भी फ़िक्र-ए-जुदाई तमाम शब
वो आए तो भी नींद न आई तमाम शब

वाँ तीर बार यहाँ शिकवा ज़ख़्म रेज़
बाहम थी किस मज़े की लड़ाई तमाम शब

यकबार देखते ही मुझे ग़श जो आ गया
भूले थे वो भी होश रुबाई तमाम शब

मर जाते क्यों न सुबह के होते ही हिज्र में
तकलीफ़ कैसी कैसी उठाई तमाम शब

गर्म-ए-जवाब शिक्वाए-ए-जोर-अदू रहा
उस शोला ख़ू ने जान जलाई तमाम शब

तालू से याँ ज़ुबान सहर तक नहीं लगी
था किस को शग़्ल-ए-नग़्मा सराई तमाम शब

' मोमिन' मैं अपने नालों के सदक़े कि कहते हैं
उनको भी आज नींद न आई तमाम शब

ग़ज़ल के कठिन शब्दों के अर्थ
वस्ल--मिलन, फ़िक्रेजुदाई-- बिछुड़ने की चिंता,
शब--रात, ताना तीर बार--तीर जैसा चुभने वाला व्यंग
शिकवा ज़ख़्म रेज़-- ताज़ा ज़ख़्मों की शिकायत
ग़श-- चक्कर, होशरुबाई-- होश उड़ाना
गर्म-ए-जवाब शिकवा-ए-जोर-ए-अदू-- दुश्मन के सितम की
शिकायत करने के तेज़ और तीखे जवाब
शोलाख़ू---आग उगलने की आदत वाला, सहर--सुबह
शग़्ल-ए-नग़्मा सराई-- गाना गाने का काम

5. रोया करेंगे आप भी पहरों मेरी तरह
अटका कहीं जो आपका दिल भी मेरी तरह

आता नहीं है वो तो किसी ढब से दांव में
बनती नहीं है मिलने की उसके कोई तरह

ने ताब हिज्र में है, न आराम वस्ल में
कमबख़्त दिल को चैन नहीं है किसी तरह

लगती हैं गालियाँ भी तेरे मुँह से क्या भली
क़ुर्बान तेरे फिर मुझे कहले इसी तरह

ने जाए वाँ बने है, न जाए चैन है
क्या कीजिए हमें यो है मुश्किल सभी तरह

तशबीह किससे दूँ कि तरहदार की मेरे
सबसे पुरानी वज़अ है, सब से नई तरह

हूँ जाँ बलब बुतान-ए-सितमगर के हाथ से
क्या सब जहाँ में जीते हैं मोमिन इसी तरह

ग़ज़ल के कठिन शब्दों के अर् थ
तरह--जैसा-सूरत, तशबीह-- मिसाल, तरहदार--प्रिय-दोस्त वज़अ--ढंग-अदा, ताब--ताक़त, जाँबलब--होंटों पर जान अटकी हुई

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