कमरे में एक बंगले के बैठे थे मर्द-ओ-ज़न
फ़ैशन परस्त लोग थे उरयाँ थे पैरहन
हाथों में थे ग्लास सभी के भरे हुए
टेबल पे थे प्लेट में काजू धरे हुए
था क़हक़हों का शोर भी म्यूज़िक भी था वहाँ
नश्शा हरइक पे तारी था और रात थी जवाँ
कुछ यूँ हुआ के चहरों पे हैरत सी छा गई
दोशीज़ा एक झूमती कमरे में आ गई
बेशर्म होके बाप से यूँ बोलने लगी
हर राज़ अपने घर का वहाँ खोलने लगी
डॆडी मुझे भी थोड़ी जगह अपने पास दो
अब अपने हाथ ही से मुझे भी ग्लास दो
बेटी पे अपनी आप कभी तो ख़्याल दो
कुछ बर्फ़ और थोड़ा सा सोडा भी डाल दो
डैडी ने उसका हुक्म बजा लाके ये कहा
कमरे में अपने जाओ तमाशा ये हो चुका
जाती हूँ डैडी बात मगर ये बता तो दूँ
इक चोट आप सब के दिलों पर लगा तो दूँ
दिल में सवाल उठने लगा होगा आपके
रिश्ते ये कैसे हो गए बेटी से बाप के
बेटी थी घर की नेक मगर कैसी हो गई
माहौल घर का जैसा था मैं वैसी हो गई