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औद्योगिक नगरी से निकलता है लखनऊ की गद्दी का रास्ता!

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, शुक्रवार, 20 जनवरी 2017 (16:06 IST)
लखनऊ। उत्तरप्रदेश में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और सभी पार्टियां लखनऊ तक का सफर तय करना चाहती हैं। लखनऊ की गद्दी हासिल करना किसी पार्टी के लिए मौजूदा हालत में आसान नहीं होगा, क्योंकि जहां एक तरफ भारतीय जनता पार्टी अभी तक कोई भी मुख्यमंत्री का चेहरा उत्तरप्रदेश को नहीं दे पाई है तो वही समाजवादी पार्टी मैं अभी तक चली साइकिल की जंग ने कहीं-न-कहीं पार्टी को कमजोर ही किया है। 
अगर बात करें बहुजन समाज पार्टी की तो वह इस बार दलित-मुस्लिम-ब्राम्हण कार्ड खेलकर लखनऊ की गद्दी हासिल करना चाहती है लेकिन इतना आसान बहुजन समाज पार्टी के लिए भी नहीं होगा। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की अगर बात करे तो कांग्रेस अभी भी संघर्ष करती नजर आ रही है। लेकिन गठबंधन की चर्चा अगर सही साबित हुई तो या तो गठबंधन कांग्रेस के लिए ऑक्सीजन का काम करेगा और लंबे समय से उत्तरप्रदेश की राजनीति से दूर पार्टी के कार्यकर्ता व प्रत्याशी एक बार फिर अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में विरोधियों से लड़ते नजर आएंगे। 
 
सभी पार्टियां जानती हैं कि अगर लखनऊ की गद्दी हासिल करनी है तो औद्योगिक नगरी कानपुर व कानपुर देहात में उन्हें अपनी जमीन तैयार करनी पड़ेगी, क्योंकि सर्वाधिक विधानसभा क्षेत्र वाला कानपुर नगर व देहात जिसको अधिक बहुमत देता है वही लखनऊ की गद्दी तक पहुंच पाता है। इसका उदाहरण 2012 के विधानसभा चुनाव हैं जिसमें सर्वाधिक 8 सीटें समाजवादी पार्टी ने जीतकर लखनऊ की गद्दी हासिल की थी। बताते चलें कि कानपुर नगर व देहात को मिलाकर 14 विधानसभाएं पड़ती हैं जिनमें समाजवादी पार्टी ने 8 व भारतीय जनता पार्टी ने 4 सीटें जीती थीं। 
 
इसी तरह 2007 विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी 14 में से 7 सीटों पर कब्जा कर पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल रही। अगर इसके पीछे जाएं तो 2002 विधानसभा चुनाव में भी बसपा व भाजपा की यहां पर सबसे ज्यादा सीटें रहीं जिसके चलते दोनों की संयुक्त सरकार बन सकी। 
 
हो सकता है बड़ा परिवर्तन- इस बार के विधानसभा चुनाव में मतदाता सूची को देखें तो कानपुर नगर व देहात में महिलाओं व युवाओं का बहुत बड़ा योगदान रहने वाला है, क्योंकि मतदाता सूची के अनुसार नगर व देहात में सर्वाधिक महिलाएं व नवयुवक ही जुड़े हैं और जो 2017 के विधानसभा चुनाव में मत करने जा रहे हैं जिससे यह तो स्पष्ट हो गया है कि अबकी बार कानपुर नगर व देहात में बहुत बड़ा परिवर्तन होने वाला है। 
 
अगर पार्टियों की बात करें तो जहां एक तरफ समाजवादी पार्टी विकास की बात कर वोट पाने की आस लगाए है तो वहीं भारतीय जनता पार्टी परिवर्तन लाने की बात कह वोट पाने की आस लगाए है, साथ ही साथ बहुजन समाज पार्टी फिर से सर्वसमाज के नारे को मजबूती से जनता के बीच ला वोट पाने की जुगत में है और कांग्रेस के पास 1 सीट छोड़ खोने के लिए कुछ भी नहीं है। जो कुछ है सब उसे पाना ही पाना है, ऐसी स्थितियों में कांग्रेस को भी कमजोर नहीं समझा जा सकता है। लेकिन कानपुर की 14 सीटों पर बहुत बड़ा परिवर्तन इस बार देखने को मिलेगा, क्योंकि इस बार का बढ़ा हुआ मतदाता शिक्षित है, जो कि जातिगत के आधार से बाहर निकलकर अपने हित के बारे में सोचता है और वह वोट भी उसी को करने वाला है, जहां से उनका हित पूरा हो सके।
 
अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि कानपुर नगर व देहात के बड़े हुए मतदाता किसकी तरफ जाते हैं लेकिन मतदाताओं को लुभाने में कोई भी पार्टी किसी भी प्रकार की कोर-कसर नहीं छोड़ने वाली आखिरकार लखनऊ की गद्दी का सवाल है। हां, लेकिन कानपुर नगर व देहात की सीट पर अगर किसी भी पार्टी को कमजोर समझा जाए तो यह बिलकुल गलत होगा। इस बार के नतीजे कानपुर नगर व देहात के बहुत ही चौंकाने वाले होंगे। 
 
क्या बोले जानकार-
 
राजनीति के जानकार व वरिष्ठ पत्रकार अशोक कुमार का कहना है कि कानपुर के इतिहास में स्वतंत्रता आंदोलन से लेकर वर्तमान राजनीति तक में यहां का दबदबा रहा है। रही बात उत्तरप्रदेश के ताज की तो आंकड़े गवाह हैं कि जिसने कानपुर को फतह किया उसी की सरकार बनी। अगर 2012 विधानसभा चुनाव की बात कर लें तो कानपुर नगर व देहात से कमल और साइकिल ही चली थी। 
 
कानपुर नगर व देहात की कुल 14 सीटों में 8 सीटों पर साइकिल व 4 सीटों पर कमल की जीत हुई थी। अगर नगर की बात करें तो 10 में से 5 पर अकेले समाजवादी पार्टी ने कब्जा किया था तो वहीं 4 सीटें भाजपा के खाते में गई थीं। 1 सीट कांग्रेस के खाते में गई तो वहीं देहात में 1 सीट पर बसपा का खाता खुल गया था। कानपुर नगर के बाद बिहार की सबसे बड़ी पार्टी बनकर समाजवादी पार्टी निकली और लखनऊ का ताज हासिल किया था।
 
राजनीति के जानकार अनुराग कश्यप बताते हैं कि यह कोई नई बात नहीं है कि कानपुर व देहात का उत्तरप्रदेश की राजनीति में बहुत बड़ा योगदान है, क्योंकि अगर कानपुर में सर्वाधिक सीटें आपने हासिल कर लीं तो आपको सत्ता पाना आसान हो जाता है। लेकिन कानपुर व देहात का दुर्भाग्य रहा है कि उसने जिसको जिसको सत्ता पर पहुंचाया उसने पलटकर कभी भी कानपुर व देहात की तरफ ध्यान नहीं दिया जिसके चलते आज कानपुर व देहात उपेक्षा के शिकार हैं।
 
विधानसभा चुनाव की बात कर लें या फिर चाहे हम लोकसभा चुनाव की बात कर लें, कानपुर व देहात में विधानसभा चुनाव 2012 में सर्वाधिक सीटें समाजवादी पार्टी को मिलीं और उसने सरकार बनाई तो वहीं कानपुर नगर व देहात की 2 लोकसभा सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली और भारतीय जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई।
 
लेकिन कानपुर व देहात आज भी उपेक्षा के शिकार हैं। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो साफ हो जाता है जिसका साथ कानपुर नगर व देहात ने दिया, वह सत्ता तक पहुंचा है।

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