The Kashmir Files : 8 साल के कश्‍मीरी पंडित बच्चे की नजर से पलायन का दर्द

Webdunia
बुधवार, 23 मार्च 2022 (13:10 IST)
Kashmiri Pandit
The Kashmir Files: The Kashmir Files: वेबदुनिया ने बात की कश्मीरी पंडितों से, पीड़ितों से, चश्मदीदों से... हमने बात की उनसे जिन्होंने देखा,भोगा, सहा, झेला और जिया है...उसी कड़ी में हमने बात की एक कश्मीरी पंडित अर्जुन भट्ट से। एक कश्मीरी पंडित जिसने 8 साल की उम्र में छोड़ा था अपना घर और जम्मू में अपनी मां और भाई के साथ बिताए थे कई साल। उनके पिता कश्मीर में ही कुछ माह के लिए रुक गए थे लेकिन अंतत: उन्हें भी कश्मीर छोड़ना पड़ा और पूरा परिवार जम्मू में रहा। जम्मू में शुरुआती दिनों में उन्हें बहुत तकलीफ उठाना पड़ी लेकिन अंतत: लोगों को उनका सपोट मिला।

 
ट्रक में था भयानक सफर : जिस दिन हम निकले थे तो अचानक हम जिस तरह एक मवेशी या जानवरों की तरह रातोरात हम एक ट्रक में बैठकर आए थे और हम कहां जा रहे थे, हमें ये बिलकुल पता नहीं था। मेरे पिता को बहुत भरोसा था। उन्हें अपने घर और जमीन से प्यार था। वे हमारे साथ नहीं आए। मैं, मेरी मां और मेरा भाई हम तीनों नहीं जानते थे कि हम कहां जा रहे हैं। आप विश्वास करेंगे कि उस ट्रक में हमारे पास सिर्फ और सिर्फ जान थी और कोई सामान नहीं था। शायद किसी ने चादर उठाई होगी, शायद किसी ने शॉल उठाई होगी। इससे ज्यादा किसी के पास कुछ नहीं था। वह कोई शायद 20 फीट लंबा ट्रक होगा जिसमें मवेशियों की तरह लोग भरे थे। ट्रक का सफर भी भयानक था। 
 
जम्मू में नहीं मिला सपोट : ट्रक का लंबा सफर तय करके हम जब आए थे, तो शायद यह लगा था कि हम कहीं जा रहे हैं तो वहां पर हमारे लिए कोई बहुत बड़ा बंदोबस्त होगा या कोई इंतजाम होगा। लेकिन कहीं पर कोई भी बंदोबस्त नहीं था। किसी भी सरकार ने कोई भी बंदोबस्त नहीं किया हुआ था। कश्मीरियों के साथ सबसे बड़ा धोखा, चाहे वह जम्मू हो, उधमपुर हो, मुझे नहीं पता दिल्ली और मुंबई में क्या हुआ? वहां के लोग जो रहवासी थे जिनके पास जाकर हम शरण लेने वाले थे, उन लोगों ने भी बहुत ज्यादा इस चीज़, दर्द को समझा नहीं, शायद कश्मीर में मुसलमान से ज्यादा तकलीफ हमें बाकी एरिया में हुई। जहां पर भी रहे वहां काफी तकलीफ थी।
 
हमारी चमड़ी जल गई थी : हमारे साथ दोहरी मार हुई। एक तो मौसम की और दूसरी राशन की।  एक तो यह कि 24 डिग्री तापमान में रहने की आदत वाले व्यक्ति को एकदम से 48 डिग्री के तापमान में रहना पड़ा था। हमारी चमड़ी जल गई थी। हमें समझ नहीं आ रहा था कि हम किस तरह जिंदा रह पाएंगे? दूसरा हमारे पास खाने का कुछ नहीं था। हमारे पास तन पर कपड़ों के अलावा कुछ नहीं था। हमारे पास रहने की भी कोई जगह नहीं थी। आपको शायद यकीन न हो कि हम 24 डिग्री के ऊपर के टेम्प्रेचर को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो हम 48 डिग्री टेम्प्रेचर में कैसे रह सकते थे सर? हम पत्थरों के ऊपर सोए हैं। वहां पर सिर्फ पत्थरों का बिछौना है, जो तवी नदी से बनता है। उन पत्थरों के बिछौने पर वे कश्मीरी पंडित सोए थे, जब वे आए थे। 
 
तीन साल तक नहीं मिला स्कूल में एडिमिशन : देखिये सर! हो सकता है कि किसी ओर को कोई मदद मिल गई हो, पर हमें हर मोड़ पर दिक्कतों को झलने पड़ा। रास्तेभर में या जहां हम रुके वहां पर भी हमें सभी ने इस तरह ट्रीट किया जैसे कोई हम बहुत बड़ी गलती करके आए हों। आप विश्वास करेंगे मेरे को 3 साल तक स्कूल में कोई एडमिशन नहीं मिला था। मैं दूसरी में पढ़ता था। संपत्ति गई, जानमाल की हानि हुई, पढ़ाई भी गई।  
 
जब टूट गया पिता का भरोसा : मेरी माता और भाई आए थे साथ में, पर मेरे फादर वहीं रह गए थे। पिताजी 7-8 माह तक वहीं रहे। हमें यह नहीं पता था कि वे कहां होंगे और उनके साथ क्या हो रहा होगा? कैसे हैं, ठीक हैं या नहीं? कोई फोन नहीं, कोई मैसेज नहीं। पर फाइनली वे आए (जम्मू में) तो हमें पता चला कि उनका भी भरोसा टूट गया। जब उनका कश्मीर लौटने का भरोसा टूट गया तो हमारा भी टूट गया। 
 
टेंटों में था नरक जैसा जीवन : यहां अनगिनत लोग टेंटों में भी थे पर हमें किसी ने भी सपोर्ट नहीं किया। जितने भी एनजीओ थे, वे कहीं नहीं थे या हमारे लिए नहीं थे। एक छोटी सी जगह पर, हमने देखा है कि किस तरह एक ही परिवार के कई सदस्य रहते थे। टेंटों में बिच्छू-कीड़े निकलते थे। कभी सांप भी निकलते थे। हां, खास प्रॉबलम औरतों की थी जबकि उन्हें वॉशरूम जाना होता था तो दूर झाड़ियों में जाना होता था। पानी कहां मिलेगा यह तलाश करना होता था। पानी के लिए लंबी लाइन लगती थी। कोई रेंट पर भी रहता था तो उसे भी बहुत तकलीफ थी। उसे भी हर जगह ताने सुनने पड़ते थे। चाहे सब्जी लेने जाओ या पानी लेने।
 
10 साल तक रुलाया परिस्थितियों ने : कश्मीरी पंडितों की 3 गलतियां थीं। एक गलती यह थी कि वह हिन्दू बने रहना चाहता था। दूसरी गलती उसकी हिन्दुस्तान के ऊपर भरोसा थी। तीसरी गलती ये थी कि उसे भरोसा था कि शायद मैं कहीं जाकर एड्जस्ट हो जाऊंगा। कोई हिन्दुस्तानी मुझे सपोर्ट करेगा। सबसे पहले गाली निकालने वाला एक हिन्दुस्तानी था, जो जम्मू के लोकल लोग थे। हो सकता है कि कुछ लोगों के साथ यह नहीं हुआ हो। सबसे ज्यादा तकलीफ कश्मीरी लड़कियों और औरतों को उन्हीं हिन्दुस्तानी ने दी जिनके पास कश्मीरी पंडित मदद मांगने के लिए गए थे। ये लोग एक्सेप्ट ही नहीं कर पा रहे थे कि ये लोग कश्मीर से यहां क्यों आए? 10 साल तक उन्होंने हमें रुलाया, तरसाया। हमारी लड़कियों के साथ बुरा व्यवहार किया। लेकिन हां एक बात जरूर कहूंगा कि सभी लोकल लोग ऐसे नहीं थे, कई लोगों ने मदद भी की।
 
पर ये हैं कि आज जम्मू के लोग ये जानते हैं कि कश्मीरियों की वजह से ही यहां विकास हुआ। हमने वहां के लोकल लोगों को पढ़ाया। उनको बिजली लाकर दी। उनको ट्रांसपोर्ट का काम कराया। जितने भी कार्य थे उन्हें अपनी शक्ति से, मेहनत से, अपने ज्ञान से और मनोबल से लाकर दी। आज जम्मू जो शहर है वह कश्मीरी पंडितों के द्वारा ही बसाया गया है। पहले वह ऐसा नहीं था लेकिन आइडिया और हमारी सोच ने वहां के लोगों का जीवन बदला। पढ़ाई का स्तर बढ़ा।
 
- अर्जुन भट्ट (एक कश्मीरी पंडित)

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

जरूर पढ़ें

साइबर फ्रॉड से रहें सावधान! कहीं digital arrest के न हों जाएं शिकार

भारत: समय पर जनगणना क्यों जरूरी है

भारत तेजी से बन रहा है हथियार निर्यातक

अफ्रीका को क्यों लुभाना चाहता है चीन

रूस-यूक्रेन युद्ध से भारतीय शहर में क्यों बढ़ी आत्महत्याएं

सभी देखें

समाचार

मौसम बदलने के साथ ही बदला रामलला का राग-भोग

चुनाव के बाद महाराष्ट्र में बदल सकते हैं राजनीतिक समीकरण : दिलीप वाल्से पाटिल

उत्तराखंड स्थापना दिवस : सम्मेलन में CM धामी की घोषणा, प्रवासी उत्तराखंड परिषद का होगा गठन

अगला लेख
More