उन्होंने देखा कि एक स्त्री 'बचाओ-बचाओ' कहती हुई बेतहाशा भागी जा रही है और एक विकराल दानव उसे पकड़ने के लिए उसका पीछा कर रहा है। विक्रम ने एक क्षण भी नहीं गंवाया और घोड़े से कूद पड़े।
युवती उनके चरणों पर गिरती हुई बचाने की विनती करने लगी। उसकी बांहें पकड़कर विक्रम ने उसे उठाया और उसे बहन सम्बोधित करके ढांढस बंधाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि वह राजा विक्रमादित्य की शरणागत है और उनके रहते उस पर कोई आंच नहीं आ सकती। जब वे उसे दिलासा दे रहे थे, तो राक्षस ने अट्टाहास लगाया।
उसने विक्रम को कहा कि उन जैसा एक साधारण मानव उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता तथा उन्हें वह कुछ ही क्षणों में पशु की भांति चीड़-फाड़कर रख देगा। ऐसा बोलते हुए वह विक्रम की ओर लपका।
विक्रम ने उसे चेतावनी देते हुए ललकारा। राक्षस ने उनकी चेतावनी का उपहास किया। उसे लग रहा था कि विक्रम को वह पभर में मसल देगा। वह उनकी ओर बढ़ता रहा। विक्रम भी पूरे सावधान थे।
वह ज्यों ही विक्रम को पकड़ने के लिए बढ़ा विक्रम ने अपने को बचाकर उस पर तलवार से वार किया। राक्षस भी अत्यन्त फुर्तीला था। उसने पैंतरा बदलकर खुद को बचा लिया और भिड़ गया।
दोनों में घमासान युद्ध होने लगा। विक्रम ने इतनी फुर्ती और चतुराई से युद्ध किया कि राक्षस थकान से चूर हो गया तथा शिथिल पड़ गया। विक्रम ने अवसर का पूरा लाभ उठाया तथा अपनी तलवार से राक्षस का सिर धड़ से अलग कर दिया।
विक्रम ने समझा राक्षस का अन्त हो चुका है, मगर दूसरे ही पल उसका कटा सिर फिर अपनी जगह आ लगा और राक्षस दोगुने उत्साह से उठकर लड़ने लगा। इसके अलावा एक और समस्या हो गई।
जहां उसका रक्त गिरा था वहां एक और राक्षस पैदा हो गया। राजा विक्रमादित्य क्षण भर को तो चकित हुए, किन्तु विचलित हुए बिना एक साथ दोनों राक्षसों का सामना करने लगे।
रक्त से जन्मे राक्षस ने मौका देखकर उन पर घूंसे का प्रहार किया तो उन्होंने पैंतरा बदलकर पहले वार में उसकी भुजाएं तथा दूसरे वार में उसकी टांगें काट डालीं। राक्षस असह्य पीड़ा से इतना चिल्लाया कि पूरा वन गूंज गया।
उसे दर्द से तड़पता देखकर राक्षस का धैर्य जवाब दे गया और मौका पाकर वह सिर पर पैर रखकर भागा। चूंकि उसने पीठ दिखाई थी, इसलिए विक्रम ने उसे मारना उचित नहीं समझा। उस राक्षस के भाग जाने के बाद विक्रम उस स्त्री के पास आए तो देखा कि वह भय के मारे कांप रही है।
उन्होंने उससे कहा कि उसे निश्चिन्त हो जाना चाहिए और भय त्याग देना चाहिए, क्योंकि दानव भाग चुका है।
उन्होंने उसे अपने साथ महल चलने को कहा, ताकि उसे उसके मां-बाप के पास पहुंचा दे। उस स्त्री ने जवाब दिया कि खतरा अभी टला नहीं है, क्योंकि राक्षस मरा नहीं। वह लौटकर आएगा और उसे ढूंढकर फिर इसी स्थान पर ले आएगा।
जब विक्रम ने उसका परिचय जानना चाहा, तो वह बोली कि वह सिंहुल द्वीप की रहने वाली है और एक ब्राह्मण की बेटी है। एक दिन वह तालाब में सखियों के साथ नहा रही थी तभी राक्षस ने उसे देख लिया और मोहित हो गया। वहीं से वह उसे उठाकर यहां ले आया और अब उसे अपना पति मान लेने को कहता है।
उसने सोच लिया है कि अपने प्राण दे देगी, मगर अपनी पवित्रता नष्ट नहीं होने देगी। वह बोलते-बोलते सिसकने लगी और उसका गला रुंध गया।