उन्होंने यह भी बताया कि आज से इस सिंहासन की आभा कम पड़ जाएगी और धरती की सारी चीजों की तरह इसे भी पुराना पड़कर नष्ट होने की प्रक्रिया से गुज़रना होगा।
इतना कहकर उन पुतलियों ने राजा से विदा ली और आकाश की ओर उड़ गईं। पलक झपकते ही सारी की सारी पुतलियां आकाश में विलीन हो गईं।
पुतलियों के जाने के बाद राजा भोज ने कर्मचारियों को बुलवाया तथा गड्ढा खुदवाने का निर्देश दिया। जब मजदूर बुलवाकर गड़ढा खोद डाला गया तो वेद मन्त्रों का पाठ करवाकर पूरी प्रजा की उपस्थिति में सिंहासन को गड्ढे में दबवा दिया।
मिट्टी डालकर फिर वैसा ही टीला निर्मित करवाया गया जिस पर बैठकर चरवाहा अपने फैसले देता था, लेकिन नया टीला वह चमत्कार नहीं दिखा सका जो पुराने वाले टीले में था।