अच्छे कुल में जन्मे व्यक्ति भी दुर्व्यसनों के आदी हो जाते हैं और मर्यादा के विरुद्ध कर्मों में लीन होकर पतन की ओर चले जाते हैं। अपने दुष्कर्मों और दुराचार के चलते कोई सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त नहीं करते और सर्वत्र तिरस्कार पाते हैं।
इस पर पहले गुट ने तर्क दिया कि मूल संस्कार नष्ट नहीं हो सकते हैं जैसे कमल का पौधा कीचड़ में रहकर भी अपने गुण नहीं खोता। गुलाब कांटों पर पैदा होकर भी अपनी सुगन्ध नहीं खोता और चन्दन के वृक्ष पर सर्पों का वास होने से भी चन्दन अपनी सुगन्ध और शीतलता बरकरार रखता है, कभी भी विषैला नहीं होता।
दोनों पक्ष अपने-अपने तर्कों द्वारा अपने को सही सिद्ध करने की कोशिश करते रहे। कोई भी अपना विचार बदलने को राजी नहीं था।
विक्रम चुपचाप उनकी बहस का मज़ा ले रहे थे। जब उनकी बहस बहुत आगे बढ़ गई तो राजा ने उन्हें शान्त रहने का आदेश दिया और कहा कि वे प्रत्यक्ष उदाहरण द्वारा करेंगे।
उन्होंने आदेश दिया कि जंगल से एक सिंह का बच्चा पकड़कर लाया जाए। तुरन्त कुछ शिकारी जंगल गए और एक सिंह का नवजात शावक उठाकर ले आए। उन्होंने एक गड़रिए को बुलाया और उस नवजात शावक को बकरी के बच्चों के साथ-साथ पालने को कहा।
गड़रिए की समझ में कुछ नहीं आया, लेकिन राजा का आदेश मानकर वह शावक को ले गया।
शावक की परवरिश बकरी के बच्चों के साथ होने लगी। वह भी भूख मिटाने के लिए बकरियों का दूध पीने लगा, जब बकरी के बच्चे बड़ हुए तो घास और पत्तियां चरने लगे। शावक भी पत्तियां बड़े चाव से खाता। कुछ और बड़ा होने पर दूध तो वह पीता रहा, मगर घास और पत्तियां चाहकर भी नहीं खा पाता।
एक दिन जब विक्रम ने उसे शावक का हाल बताने के लिए बुलाया तो उसने उन्हें बताया कि शेर का बच्चा एकदम बकरियों की तरह व्यवहार करता है।
उसने राजा से विनती की कि उसे शावक को मांस खिलाने की अनुमति दी जाए, क्योंकि शावक को अब घास और पत्तियां अच्छी नहीं लगती हैं। विक्रम ने साफ़ मना कर दिया और कहा कि सिर्फ दूध पर उसका पालन-पोषण किया जाए।
गड़रिया उलझन में पड़ गया। उसकी समझ में नहीं आया कि महाराज एक मांसभक्षी प्राणी को शाकाहारी बनाने पर क्यों तुले हैं? वह घर लौट आया। शावक जो कि अब जवान होने लगा था, सारा दिन बकरियों के साथ रहता और दूध पीता। कभी-कभी बहुत अधिक भूख लगने पर घास-पत्तियां भी खा लेता।
अन्य बकरियों की तरह जब शाम में उसे दरबे की तरफ हांका जाता तो चुपचाप सर झुकाए बढ़ जाता तथा बन्द होने पर कोई प्रतिरोध नहीं करता। एक दिन जब वह अन्य बकरियों के साथ चर रहा था तो पिंजरे में बन्द एक सिंह को लाया गया।
सिंह को देखते ही सारी बकरियां डरकर भागने लगीं तो वह भी उनके साथ दुम दबाकर भाग गया। उसके बाद राजा ने गड़रिए को उसे स्वतंत्र रूप से रखने को कहा। भूख लगने पर उसने खरगोश का शिकार किया और अपनी भूख मिटाई।