श्राद्ध पक्ष में सुगंधित धूप से मुक्त होते हैं पितर

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- अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
 

 
'...गन्धाक्षतम्, पुष्पाणि, धूपम्, दीपम्, नैवेद्यम् समर्पयामि।'
 
 
हिंदू धर्म में धूप, दीप, चंदन, कुमकुम, अष्टगंध, जल, अगर, कर्पूर, घृत, गुड़, घी, पुष्प, फल, पंचामृत, पंचगव्य, नैवेद्य, हवन, शंख, घंटा, रंगोली, मांडना, आंगन-अलंकरण, तुलसी, तिलक, मौली (कलाई पर बांधा जाने वाला नाड़ा), स्वस्तिक, ॐ, पीपल, आम और केले के पत्तों का बहुत महत्व है। भोजन करने के पूर्व कुछ मात्रा में भोजन अग्नि को समर्पित करने से वैश्वदेव यज्ञ पूर्ण होता है।
 
तंत्रसार के अनुसार अगर, तगर, कुष्ठ, शैलज, शर्करा, नागरमाथा, चंदन, इलाइची, तज, नखनखी, मुशीर, जटामांसी, कर्पूर, ताली, सदलन और गुग्गुल ये सोलह प्रकार के धूप माने गए हैं। इसे षोडशांग धूप कहते हैं। मदरत्न के अनुसार चंदन, कुष्ठ, नखल, राल, गुड़, शर्करा, नखगंध, जटामांसी, लघु और क्षौद्र सभी को समान मात्रा में मिलाकर जलाने से उत्तम धूप बनती है। इसे दशांग धूप कहते हैं।
 
इसके अलावा भी अन्य मिश्रणों का भी उल्लेख मिलता है जैसे- छह भाग कुष्ठ, दो भाग गुड़, तीन भाग लाक्षा, पाँचवाँ भाग नखला, हरीतकी, राल समान अंश में, दपै एक भाग, शिलाजय तीन लव जिनता, नागरमोथा चार भाग, गुग्गुल एक भाग लेने से अति उत्तम धूप तैयार होती है। रुहिकाख्य, कण, दारुसिहृक, अगर, सित, शंख, जातीफल, श्रीश ये धूप में श्रेष्ठ माने जाते हैं।
 
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