* यमस्मृति के अनुसार 'जो लोग देवता, ब्राह्मण, अग्नि और पितृगण की पूजा करते हैं, वे सबकी अंतरात्मा में रहने वाले विष्णु की ही पूजा करते हैं।' इसके अलावा भी अनेक वेदों, पुराणों, धर्मग्रंथों में श्राद्ध की महत्ता व उसके लाभ का उल्लेख मिलता है।
उपर्युक्त प्रमाणों से स्पष्ट होता है कि श्राद्ध फल से पितरों की ही तृप्ति नहीं होती, वरन् इससे श्राद्धकर्ताओं को भी विशिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
अतः हमें चाहिए कि वर्ष भर में पितरों की मृत्युतिथि को सर्वसुलभ जल, तिल, यव, कुश और पुष्प आदि से उनका श्राद्ध संपन्न करने और गो ग्रास देकर अपने सामर्थ्य अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करा देने मात्र से ऋण उतर जाता है।
इसलिए पुत्र को चाहिए कि भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से प्रारंभ कर आश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक सोलह दिन पितरों का तर्पण और उनकी मृत्युतिथि को श्राद्ध अवश्य करें। ऐसा करके आप अपने परम आराध्य पितरों के श्राद्धकर्म द्वारा आध्यात्मिक, आधिदैविक एवं आधिभौतिक उन्नति को प्राप्त कर सकते हैं ।