एक पौराणिक प्रसंग के अनुसार सबसे प्रथम ब्रह्मा तथा विष्णु ने भगवान शंकर के लिंग की तथा मूर्ति की पूजा की थी। इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने कहा- प्यारे ब्रह्मा तथा प्रिय विष्णु! आज का दिन महान है।
इससे प्रसन्न होकर शिवजी ने कहा- प्यारे ब्रह्मा तथा प्रिय विष्णु! आज का दिन महान है। आज तुमने ज्योतिर्लिंग के माध्यम से मेरे ब्रह्मस्वरूप का पूजन किया है, उसके बाद मूर्ति रूप में प्रकट मेरे चिन्मय स्वरूप का अर्चन किया है। इससे मैं प्रसन्न हुआ हूं। मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम दोनों अपने-अपने कार्यों में सफल हो जाओगे।
आज की यह तिथि जगत में 'महाशिवरात्रि' के नाम से प्रसिद्ध होगी। इस तिथि में जो मेरे लिंग अथवा मूर्ति की पूजा करेगा, वह पुरुष जगत की उत्पत्ति-पालन आदि कार्य भी कर सकेगा।
जो पुरुष अथवा स्त्री शिवरात्रि काल में अपनी शक्ति के अनुसार निश्चल भाव से मेरी पूजा करेगा, उसे एक वर्ष तक पूजा करने का फल तुरंत ही मिल जाएगा।
मेरा विशाल ज्योतिर्लिंग पृथ्वी पर अत्यंत छोटा होकर रहेगा जिससे सब देव-मनुष्य और आध्यात्मिक साधन परायण भक्त पूजन कर सकेंगे। यह भूतल भी 'लिंग स्थान' के नाम से प्रसिद्ध होगा। अग्नि के पहाड़ के समान यह मेरा लिंग जहां प्रकट हुआ है, वह स्थान अरुणाचल के नाम से प्रसिद्ध होगा।