Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

वृक्ष की पूजा और परिक्रमा क्यों करते हैं?

हमें फॉलो करें वृक्ष की पूजा और परिक्रमा क्यों करते हैं?

अनिरुद्ध जोशी

वैसे तो वेदों में किसी मूर्त, जड़, वृक्ष, समाधी आदि की पूजा का विधान नहीं है। हां, जड़ प्रकृति की प्रार्थना का जरूर उल्लेख मिलता है। पुराणों में वृक्ष पूजा और परिक्रमा का बड़ा महत्व बताया गया है। हिन्दू धर्मानुसार वृक्ष में भी आत्मा होती है। वृक्ष संवेदनशील होते हैं और उनके शक्तिशाली भावों के माध्यम से आपका जीवन बदल सकता है। प्रत्येक वृक्ष का गहराई से विश्लेषण करके हमारे ऋषियों ने यह जाना की पीपल और वट वृक्ष सभी वृक्षों में कुछ खास और अलग है। इनके धरती पर होने से ही धरती के पर्यावरण की रक्षा होती है। यही सब जानकर ही उन्होंने उक्त वृक्षों के संवरक्षण और इससे मनुष्य के द्वारा लाभ प्राप्ति के हेतु कुछ विधान बनाए गए उन्ही में से दो है पूजा और परिक्रमा।
 
क्या है परिक्रमा : हिन्दू धर्म में परिक्रमा का बड़ा महत्त्व है। परिक्रमा से अभिप्राय है कि सामान्य स्थान, स्थान विशेष या किसी व्यक्ति के चारों ओर उसकी बाहिनी तरफ से घूमना। इसको 'प्रदक्षिणा करना' भी कहते हैं, जो षोडशोपचार पूजा का एक अंग है। प्रदक्षिणा की प्रथा अतिप्राचीन है। विवाह के समय जो अग्नि की परिक्रमा करते हैं उसे सप्तपदी कहा जाता है। जब व्यक्ति देह छोड़ देता है तब पहली और अंतिम बार उसके परिवार के लोग उसकी अर्थी की परिक्रमा करते हैं। परिक्रमा का धार्मिक और वैज्ञानिक महत्व भी है।
 
प्रदक्षिणा का प्राथमिक कारण सूर्यदेव की दैनिक चाल से संबंधित है। जिस तरह से सूर्य प्रात: पूर्व में निकलता है, दक्षिण के मार्ग से चलकर पश्चिम में अस्त हो जाता है, उसी प्रकार वैदिक विचारकों के अनुसार अपने धार्मिक कृत्यों को बाधा विध्नविहीन भाव से सम्पादनार्थ प्रदक्षिणा करने का विधान किया गया। शतपथ ब्राह्मण में प्रदक्षिणा मंत्र स्वरूप कहा भी गया है, सूर्य के समान यह हमारा पवित्र कार्य पूर्ण हो।
 
प्रदक्षिणा का दार्शनिक महत्व : इसका एक दार्शनिक महत्व यह भी है कि संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रत्येक ग्रह-नक्ष‍त्र किसी न किसी तारे की परिक्रमा कर रहा है। यह परिक्रमा ही जीवन का सत्य है। व्यक्ति का संपूर्ण जीवन ही एक चक्र है। इस चक्र को समझने के लिए ही परिक्रमा जैसे प्रतीक को निर्मित किया गया। भगवान में ही सारी सृष्टि समाई है, उनसे ही सब उत्पन्न हुए हैं, हम उनकी परिक्रमा लगाकर यह मान सकते हैं कि हमने सारी सृष्टि की परिक्रमा कर ली है। 
 
वृक्ष की पूजा-परिक्रमा : अक्सर आपने देखा होगा की पीपल और वट वृक्ष की परिक्रमा का विधान है। इनकी पूजा के भी कई कारण है।  स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है।

पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इसके कई पुरातात्विक प्रमाण भी है। अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है। 
 
ज्योतिष अनुसार : शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और सात परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है। WD (C)

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi

अगला लेख

वार अनुसार करें कार्य, तभी होगा बेड़ा पार