जैन एवं हिन्दू शास्त्रों, आयुर्वेद और योग सभी यह मानते हैं कि सभी रोगों की जड़ है शरीर में जमी गंदगी। आप स्नान करके शरीर के बाहर की जमी गंदगी को तो साफ कर लेते हैं लेकिन शरीर के भीतर की गंदगी कैसे साफ होगी? आओ जानते हैं कि शरीर में जमी गंदगी भारतीय शास्त्रों के अनुसार बाहर कैसे निकाले।
विशेष- त्रिफला शरीर की गन्दगी निकालती है। 40 दिन तक त्रिफला रोज एक चम्मच खाली पेट लें और कमाल देखें।
कुछ जरूरी जानकारी- शरीर में सर्वप्रथम गंदगी तीन जगह पर जमती है। पहला आहार नाल में और दूसरा पेट में और तीसरा आंतों में। इन तीनों जगह यदि गंदगी ज्यादा समय तक बनी रही तो यह फैलेगी। तब यह किडनी में, फेंफड़ों में और हृदय के आसपास भी जमने लगेगी। अंत में यह खून को गंदा कर देगी। अत: इस गंदगी को साफ करना जरूरी है।
हम जो खाते हैं उसी से गंदगी पैदा होती है। हम क्या खा रहे हैं इस पर ध्यान देने की जरूरत है। हम दो तरह के खाद्य पदार्थ खाते हैं पहला वह जो हमें सीधे प्रकृति से प्राप्त होता है और दूसरा वह जिसे मानव ने निर्मित किया है। प्रकृति से प्राप्त फल और सब्जियां हैं। फल को पचने में 3 घंटे लगते हैं। सब्जियों को पचने में 6 घंटे लगते हैं।
उपरोक्त दोनों के अलावा मानव द्वारा पैदा किया गया, बनाया या उत्पादित किए गए खाद्य पदार्थों में आते हैं- अनाज, दाल, चना, चावल, दूध, मैदा, सोयाबीन आदि और इन्हीं से बने अन्य खाद्य पदार्थ। जैसे ब्रेड, सेंडविच, चीज, बर्गर, चीप्स, पापड़, आदि। इन सभी पदार्थों को पचने में 18 घंटे लगते हैं। अब आप सोचिए कि आपको क्या ज्यादा खाना चाहिए।
उपवास करें 16 घंटे का। जैसे यदि आप रात को आठ बजे भोजन करते हैं तो फिर अगले दिन सुबह 12 बजे ही भोजन करें। इस बीच आपको कुछ भी नहीं खाना या पीना है। सुबह पानी, नारियल पानी या सब्जी का ज्यूस पी सकते हैं। ऐसा करने लगेंगे तो शरीर स्थित नया-पुराना भोजन पूर्णत: पचकर बाहर निकलने लगेगा।
हमारे शास्त्रों में उपावस का बहुत महत्व है। चातुर्मास में उपवास ही किए जाते है। हिन्दू धर्म में संपूर्ण वर्ष में कई प्रकार के उपवास आते हैं, जैसे वार के उपवास, माह में दूज, चतुर्थी, एकादशी, प्रदोष, अमावस्या या पूर्णिमा के उपवास। वर्ष में नवरात्रि, श्रावण माह या चातुर्मास के उपवास आदि। लेकिन अधिकतर लोग तो खूब फरियाली खाकर उपवास करते हैं। यह उपावास या व्रत नहीं है। उपवास में कुछ भी खाया नहीं जाता।
दूसरा नियम-
धौति कर्म- महीन कपड़े की चार अंगुल चौड़ी और सोलह हाथ लंबी पट्टी तैयार कर उसे गरम पानी में उबाल कर धीरे-धीरे खाना चाहिए। खाते-खाते जब पंद्रह हाथ कपड़ा कण्ठ मार्ग से पेट में चला जाए, मात्र एक हाथ बाहर रहे, तब पेट को थोड़ा चलाकर, पुनः धीरे-धीरे उसे पेट से निकाल देना चाहिए। इससे आहार नाल और पेट में जमा गंदगी, कफ आदि बाहर निकल जाते हैं।
हिदायत- इस क्रिया को किसी योग्य योग शिक्षक से सीख कर ही करें। मन से ना करें। कुछ लोग नींबू और सैंधा नमक मिला पानी पीकर बाधी क्रिया अर्थात वमन क्रिया करके भी शरीर की गंदगी बाहार निकालते हैं।
तीसरा नियम-
बस्ती- योगानुसार बस्ती करने के लिए पहले गणेशक्रिया का अभ्यास करना आवश्यक है। गणेशक्रिया में अपना मध्यम अंगुली में तेल चुपड़कर उसे गुदा- मार्ग में डालकर बार-बार घुमाते हैं। इससे गुदा-मार्ग की गंदगी दूर हो जाती है और गुदा संकोचन और प्रसार का भी अभ्यास हो जाता है।
जब यह अभ्यास हो जाए, तब किसी होद या टब में कमर तक पानी में खड़े होकर घुटने को थोड़ा आगे की ओर मोड़कर दोनों हाथों को घुटनों पर दृढ़ता से रखकर फिर गुदा मार्ग से पानी ऊपर की ओर खींचे। आंत और पेट में जब पानी भर जाए तब पेट को थोड़ा इधर-उधर घुमाकर, पुनः गुदा मार्ग से पूरा पानी निकाल दें।
शंख प्रशालन- कुछ लोग इसकी जगह शंख प्रशालन करते हैं। प्रातःकाल नित्यक्रिया से निवृत्त हो गुनगुना पानी दो-तीन या चार गिलास पीने के बाद वक्रासन, सर्पासन, कटिचक्रासन, विपरीतकरणी, उड्डियान एवं नौली का अभ्यास करें। इससे अपने आप शौच का वेग आता है। शौच से आने पर पुनः उसी प्रकार पानी पीकर उक्त आसनादिकों का अभ्यास कर शौच को जाएं। इस प्रकार बार-बार पानी पीना, आसनादि करना तथा शौच को जाना सात-आठ बार हो जाने पर अंत में जैसा पानी पीते हैं, वैसा ही पानी जब स्वच्छ रूप से शौच में निकलता है, तब पेट पूरा का पूरा धुलकर साफ हो जाता है। इसके बाद कुछ विश्राम कर ढीली खिचड़ी, घी, हल्का-सा खाकर पूरा दिन लेटकर आराम किया जाता है। दूसरे दिन से सभी काम पूर्ववत करते रहें। इस क्रिया को दो-तीन महीने में एक बार करने की आवश्यकता होती है।
हिदायत- यह क्रिया किसी जानकार व्यक्ति के निर्देशन में ही करना चाहिए। इसके अभ्यास से आंतों में जमा गंदगी दूर होती है। विशेष लाभ यह है कि लिंग-गुदा आदि के सभी रोग सर्वथा समाप्त हो जाते हैं। कई लोग इसकी जगह एनिमा लेकर काम चला लेते हैं।
चौथा नियम-
गीली पट्टियां लगाना- इसे जल पट्टी कहते हैं। पेट पर, गले में और सिर पर सूती पट्टी को ठन्डे पानी में भिगोकर, निचोड़कर लपेटना। इससे रक्त का संचार ठीक तरह से चलता है जिसके चलते रक्त में जमा गंदगी बाहर हो जाती है। आयुर्वेद में तो सूत की गीली पट्टियों में मिट्टी लपेटकर उसे पेट में लपेटा जाता है जिससे पेट की गर्मी छंटती है और साथ ही कब्ज, पेचिस, अजीर्ण, गैस, कोलायिटिस, पेट की नयी-पुरानी सूजन, अनिद्रा, बुखार जैसे रोग भी दूर होते हैं। इससे पेट की चर्बी भी घटती है। यह स्त्रियों के गुप्त रोगों की रामबाण चिकित्सा है।
हितायत- पट्टी कैसे लपेटना, कितनी गीली और ठंडी होना चाहिए, किस मौसम में नहीं लपेटना चाहिए, यह सभी किसी जानकार से पूछकर ही करें।
नोट- उपरोक्त नियमों में से यदि पहला नियम नहीं मानते हैं तो बाकी नियमों का कोई मतलब नहीं। यह भी जरूरी है कि आप बाकी नियम छोड़ दें बस पहला ही नियम मान लें तो भी शरीर की गंदगी बाहर निकलना प्रारंभ हो जाएगी। बाकी नियमों का पालन करने के लिए आपको किसी योग्य योग शिक्षक से सलाह लेना चाहिए।