भोजन की 10 पारंपरिक बातें जान ली तो मिलेगा सेहत का साथ, आएगी रिश्तों में मिठास

Webdunia
शनिवार, 29 अप्रैल 2023 (11:43 IST)
10 traditional things about food: वेदों में अन्न को ब्रह्म कहा गया है। कहते हैं जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन। आयुर्वेद में कहा गया है कि भोजन को अच्छे भाव से खाने पर वह आपके शरीर को पुष्ट करता है। भारतीय दर्शन, धर्म और परंपरा के अनुसार यदि आप भोजन की पारंपरिक बातों का पालन करते हैं तो आपको इससे जहां सेहत में लाभ मिलेगा वहीं रिश्तों में मिठास भी आएगी।
 
1. साथ बैठकर करें भोजन : भोजन को हमारे परिवार के सभी सदस्यों के साथ बैठकर ही करना चाहिए। कम से कम रात का भोजन को परिवार के सभी सदस्यों के साथ मिलकर ही करना चाहिए। इससे रिश्तों में मिठान और मजबूती आती है। 
 
2. किस माह में क्या ना खाएं-
।।चौते गुड़, वैशाखे तेल, जेठ के पंथ, अषाढ़े बेल।
सावन साग, भादो मही, कुवांर करेला, कार्तिक दही।
अगहन जीरा, पूसै धना, माघै मिश्री, फाल्गुन चना।
जो कोई इतने परिहरै, ता घर बैद पैर नहिं धरै।।।
 
चैत्र माह में गुड़ खाना मना है। वैशाख में नया तेल लगाना और तली-भुनी चीजें खाना मना है। ज्येष्ठ माह में चलना खेलना मना है। आषाढ़ में पका बेल न खाना मना है। श्रावण साग खाना मना है। भाद्रपद में दही खाना मना है। आश्विन में करेला खाना मना है। कार्तिक में बैंगन, दही और जीरा बिल्कुल भी नहीं खाना मना है। मार्गशीर्ष में जीरे का उपयोग नहीं करना चाहिए। पौष धनिया नहीं खाना चाहिए। माघ में मूली और धनिया खाना मना है। मिश्री भी नहीं खाना चाहिए। फाल्गुन माह में चना खाना मना।
 
3. किस माह में क्या खाएं-
।।चैत चना, बैसाखे बेल, जैठे शयन, आषाढ़े खेल, सावन हर्रे, भादो तिल।
कुवार मास गुड़ सेवै नित, कार्तिक मूल, अगहन तेल, पूस करे दूध से मेल।
माघ मास घी-खिचड़ी खाय, फागुन उठ नित प्रात नहाय।।
 
चैत्र में चना खा सकते हैं। वैशाख में बेल खा सकते हैं। ज्येष्ठ में बेल खाना चाहिए। आषाढ़ में कसरत करना चाहिए। श्रावण हरडा खाना चाहिए। भाद्रपद में दही तिल का उपयोग करना चाहिए। आश्विन में नित्य गुड़ खाना चाहिए। कार्तिक में मूली खाना चाहिए। मार्गशीर्ष में तेल का उपयोग कर सकते हैं। पौष में दूध पीना चाहिए। माघ में घी-खिचड़ी खाना चाहिए। फाल्गुन में चना खाना मना।
 
4. किस तिथि को क्या नहीं खाना चाहिए : प्रतिपदा को कुम्हड़ा, द्वितीया को छोटा बैंगन व कटहल, तृतीया को परमल, चतुर्थी के दिन मूली, पंचमी को बेल, षष्ठी के दिन नीम की पत्ती, सप्तमी के दिन ताड़ का फल, अष्टमी के दिन नारियल, नवमी के दिन लौकी, दशमी को कलंबी, एकादशी को सेम फली, द्वादशी को (पोई) पु‍तिका, तेरस को बैंगन, अमावस्या, पूर्णिमा, संक्रांति, चतुर्दशी और अष्टमी, रविवार श्राद्ध एवं व्रत के दिन स्त्री सहवास तथा तिल का तेल, लाल रंग का साग तथा कांसे के पात्र में भोजन करना निषेध है। रविवार के दिन अदरक भी नहीं खाना चाहिए।
 
5. खाने के पहले और बाद में क्या खाएं : खाने के पहले तीखा और बाद में मीठा खाने की परंपरा है। आयुर्वेद के अनुसार खाने के बाद मीठा खाने से अम्ल की तीव्रता कम हो जाती है जिससे पेट में जलन या एसिडिटी नहीं होती है।  मीठे में आपको सफेद शक्कर नहीं खाना चाहिए यह नुकसानदायक है। इससे तैयार चीजों का भी सेवन नहीं करना चाहिए। इससे मोटापे और अन्य स्वास्थ्य जटिलताओं का खतरा हो सकता है। इसके बजाय आपको आर्गेनिक गुड़ खाना चाहिए या इससे बनी चीजों का ही सेवन करना चाहिए। आप चाहें तो ब्राउन शुगर या नारियल की शुगर का उपयोग कर सकते हैं।
 
6. पानी और बर्तन : खाना खाने के एक घंटे के बाद पानी पीना चाहिए। पीतल के बर्तन में भोजन करना और तांबे के लौटे में पानी पीने के कई स्वास्थ लाभ मिलते हैं। इसी तरह यह भी देखा जाना चाहिए कि किस बर्तन में खाना पकाया जा रहा है और किससे पकाया जा रहा है।
 
7. भोजन परोसने के नियम : पात्राधो मंडलं कृत्वा पात्रमध्ये अन्नं वामे भक्ष्यभोज्यं दक्षिणे घृतपायसं पुरतः शाकादीन् (परिवेषयेत्)।– ऋग्वेदीय ब्रह्मकर्मसमुच्चय, अन्नसमर्पणविधि।
 
अर्थात भूमि पर जल से एक मंडल बनाकर उस पर थाली रखी जाती है या पाट पर थाली रखें। थाली के मध्य भाग में चावल, पुलाव, हलुआ आदि परोसे जाते हैं। थाली में बाईं ओर चबाकर ग्रहण करने वाले पदार्थ रखें। थाली में दाईं ओर घी युक्त खीर परोसें। थाली में ऊपर की ओर बीच में नमक परोंसे। यदि लगता है तो। नमक के बाईं ओर नींबू, अचार, नारियल चटनी, अन्य चटनी परोसें। बाईं ओर छाछ, खीर, दाल, सब्जी, सलाद आदि परोसें। थाली में कभी भी तीन रोटी, पराठे या पूड़ी नहीं परोसी जाती है। थाली के राइड हैंड पर ही पानी का गिलास रखा जाता है। भोजन की थाली पीतल या चांदी की होना चाहिए। यह नहीं है तो केल या खांकरे के पत्ते पर भोजन करें। पानी का गिलास तांबे का होना चाहिए। भोजन की थाली को पाट पर रखकर भोजन किसी कुश के आसन पर सुखासन में (आल्की-पाल्की मारकर) बैठकर ही करना चाहिए। भोजन के पश्चात थाली या पत्तल में हाथ धोना भोजन का अपमान माना गया है। 
8. इस तरह का भोजन न करें : भोजन साफ-सुथरी जगह बनाया गया नहीं हो, भोजन बनाने वाले ने स्नान नहीं किया हो तो ऐसे भोजन का त्याग कर देना चाहिए। बासी भोजन, कुत्ते का छुआ हुआ, बाल गिरा हुआ, रजस्वला द्वारा स्त्री का परोसा हुआ और मुंह से फूंक मारकर ठंडा किया हुआ भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि उक्त भोजन में करोड़ों तरह के कीटाणु मिल जाते हैं। श्राद्ध का निकाला हुआ, अनादरयुक्त और अवहेलनापूर्ण परोसा गया भोजन कभी न करें, क्योंकि इस तरह के भोजन के गुणधर्म बदल जाते हैं, जो कि आपके शरीर के लिए नुकसानदायक होते हैं। कंजूस व्यक्ति का, राजा का, वेश्या के हाथ का बनाया, शराब बेचने वाले का दिया हुआ भोजन कभी नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह भोजन भी दोषयुक्त होता है।
 
जिसने ढिंढोरा पीटकर लोगों को खाने के लिए बुलाया हो, ऐसी जगह का भोजन नहीं करना चाहिए। अक्सर भंडारे का भोजन उस व्यक्ति के लिए मना है, जो कि धर्म, साधना या उन्नति के मार्ग पर हैं। भंडारे का भोजन कैसे और किन पदार्थों से बनाया गया, यह भी जांचना जरूरी है। ईर्ष्या, भय, क्रोध, लोभ, दीन व द्वेषभाव के साथ किया हुआ भोजन कभी पचता नहीं है। इसी भाव के साथ बनाया या परोसा गया भोजन त्याग देना चाहिए। जिस भोजन की निंदा की जा रही हो या भोजन करने वाला खुद भोजन की निंदा करते हुए खा रहा है तो ऐसा भोजन रोग उत्न्न करेगा। जब आप खाने की निंदा करते हैं तब उस खाने की गुणवत्ता बदलकर वह आपकी उम्र कम करने में सहायक सिद्ध होता है।
 
किसी के द्वारा दान किया गया, फेंका गया या जूठा छोड़ दिया गया भोजन नहीं करना चाहिए। जो भोजन लड़ाई-झगड़ा करके बनाया गया हो, जिस भोजन को किसी ने लांघा हो तो वह भोजन भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि वह राक्षस भोजन होता है। आधा खाया हुआ फल, मिठाई या अन्न आदि पुन: नहीं खाना चाहिए, क्योंकि इसमें कीटाणुओं की संख्या बढ़ जाती है। अक्सर लोग आधा खाकर से ढांककर रख देते हैं या फ्रीज में रख देते हैं, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। अगर आप भोजन करते समय जूठे मुंह उठ जाते हैं और फ‌िर आकर भोजन करना शुरू कर देते हैं तो इस आदत को छोड़ दीज‌िए। यह आदत भी आपकी उम्र को कम करती है। 
 
9. भोजन का हिस्सा : भोजन करने के पूर्व तीन कोल गाय, कुत्ते और कौवे या ब्रह्मा, विष्णु और महेष के नाम के निकालकर थाली में अलग रख देना चाहिए।
 
10. कहां किस दिशा में बैठकर करें भोजन : भोजन सदैव पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके करना चाहिए। संभव हो तो रसोईघर में ही बैठकर भोजन करें इससे राहु शांत होता है। रात में चावल, दही और सत्तू का सेवन करने से लक्ष्मी का निरादर होता है। अत: समृद्धि चाहने वालों को तथा जिन व्यक्तियों को आर्थिक कष्ट रहते हों, उन्हें इनका सेवन रात के भोजन में नहीं करना चाहिए। जूते पहने हुए कभी भोजन नहीं करना चाहिए। सुबह कुल्ला किए बिना पानी या चाय न पीएं।

सम्बंधित जानकारी

Shraddha Paksha 2024: पितृ पक्ष में यदि अनुचित जगह पर श्राद्ध कर्म किया तो उसका नहीं मिलेगा फल

गुजरात के 10 प्रमुख धार्मिक स्थलों पर जाना न भूलें

Sukra Gochar : शुक्र का तुला राशि में गोचर, 4 राशियों के जीवन में बढ़ जाएंगी सुख-सुविधाएं

Vastu Tips for Balcony: वास्तु के अनुसार कैसे सजाएं आप अपनी बालकनी

सितंबर 2024 : यह महीना क्या लाया है 12 राशियों के लिए, जानें Monthly Rashifal

Sarvapitri amavasya 2024: सर्वपितृ अमावस्या पर इन 12 को खिलाएं खाना, पितृदोष से मिलेगी मुक्ति

कन्या राशि में बुध बनाएंगे भद्र महापुरुष राजयोग, 4 राशियों का होगा भाग्योदय

नवरात्रि में अपनाएं ये काम के Waterproof Makeup Tips, गरबे में रातभर टिका रहेगा makeup

कैसा हो श्राद्ध का भोजन, जानें किन चीजों को न करें ब्राह्मण भोज में शामिल

श्राद्ध के भोजन में क्या-क्या बनाना चाहिए, नोट करें 5 खास रेसिपी

अगला लेख
More