तो क्या रामायणकालीन है मोहनजोदेड़ो और हड़प्पा के नगर?

अनिरुद्ध जोशी
आर्यभट्ट के अनुसार महाभारत काल का युद्ध 3137 ईसा पूर्व में हुआ था, अर्थात 5154 वर्ष पूर्व हुआ था। अंग्रेजों की खुदाई से माना जाता था कि 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4616 वर्ष पूर्व इस नगर सभ्यता की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल निर्धारण किया गया है लगभग 2700 ई.पू. से 1900 ई. पू. तक का माना जाता है।
 
पहले की खुदाई और शोध के आधार पर माना जाता था कि 2600 ईसा पूर्व अर्थात आज से 4617 वर्ष पूर्व हड़प्पा और मोहनजोदेडो नगर सभ्यता की स्थापना हुई थी। कुछ इतिहासकारों के अनुसार इस सभ्यता का काल लगभग 2700 ई.पू. से 1900 ई. पू. तक का माना जाता है।

आईआईटी खड़गपुर और भारतीय पुरातत्व विभाग के वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी सभ्यता की प्राचीनता को लेकर नए तथ्‍य सामने रखे हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक यह सभ्यता 5500 साल नहीं बल्कि 8000 साल पुरानी थी। इस लिहाज से यह सभ्यता मिस्र और मेसोपोटामिया की सभ्यता से भी पहले की है। मिस्र की सभ्यता 7,000 ईसा पूर्व से 3,000 ईसा पूर्व तक रहने के प्रमाण मिलते हैं, जबकि मोसोपोटामिया की सभ्यता 6500 ईसा पूर्व से 3100 ईसा पूर्व तक अस्तित्व में थी। शोधकर्ता ने इसके अलावा हड़प्पा सभ्यता से 1,0000 वर्ष पूर्व की सभ्यता के प्रमाण भी खोज निकाले हैं।
 
सिंधु घाटी के लोग मनाते थे दीपावली!
 
वैज्ञानिकों का यह शोध प्रतिष्ठित रिसर्च पत्रिका नेचर ने प्रकाशित किया है। 25 मई 2016 को प्रकाशित यह लेख दुनियाभर की सभ्यताओं के उद्गम को लेकर नई बहस छेड़ गया है। वैज्ञानिकों ने सिंधु घाटी की पॉटरी की नई सिरे से पड़ताल की और ऑप्टिकली स्टिम्यलैटड लूमनेसन्स तकनीक का इस्तेमाल कर इसकी उम्र का पता लगाया तो यह 6,000 वर्ष पुराने निकले हैं। इसके अलावा अन्य कई तरह की शोध से यह पता चला कि यह सभ्यता 8,000 वर्ष पुरानी है। इसका मतलब यह कि यह सभ्यता तब विद्यमान थी जबकि भगवान श्रीराम (5114 ईसा पूर्व) का काल था और श्रीकृष्ण के काल (3228 ईसा पूर्व) में इसका पतन होना शुरू हो गया था।
 
सिंधु सभ्यता का विस्तार : वैज्ञानिकों की इस टीम के अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का विस्तार हरियाणा के भिर्राना और राखीगढ़ी में भी था। उन्होंने भिर्राना की एकदम नई जगह पर खुदाई शुरू की और बड़ी चीज बाहर लेकर निकले। इसमें जानवरों की हड्डियां, गायों के सिंग, बकरियों, हिरण और चिंकारे के अवशेष मिले। डेक्कन कॉलेज के अराती देशपांडे ने बताया इन सभी के बारे में कार्बन 14 के जरिये जांच की गई। जिससे यह पता चला की उस दौर में सभ्यता को किस तरह की पार्यावरणीय स्थितियों का सामना करना पड़ा था। सिंधु सभ्यता की जानकारी हमें अंग्रेजों के द्वारा की गई खुदाई से ही प्राप्त होती है जबकि उसके बाद अन्य कई शोध और खुदाईयां हुई है जिसका जिक्र इतिहास की किताबों में नहीं किया जाता।
 
इसका मतलब यह कि इतिहास के ज्ञान को कभी अपडेट नहीं किया गया, जबकि अन्य देश अपने यहां के इतिहास ज्ञान को अपडेट करते रहते हैं। यह सवाल की कैसे सिंधु सभ्यता नष्ट हो गई थी इसके जवाब में वैज्ञानिक कहते हैं कि कमजोर मानसून और प्राकृति परिस्‍थितियों के बदलाव के चलते यह सभ्यता उजड़ गई थी। सिंधु घाटी में ऐसी कम से कम आठ प्रमुख जगहें हैं जहां संपूर्ण नगर खोज लिए गए हैं। जिनके नाम हड़प्पा, मोहनजोदेड़ों, चनहुदड़ो, लुथल, कालीबंगा, सुरकोटदा, रंगपुर और रोपड़ है।
 
यह भी एक मान्यता है, अगले पन्ने पर

हड़प्पा के नष्ट होने का समय वही है जो कि महाभारत के युद्ध का समय है। महाभारत का युद्ध के दौरान गुरु द्रोण के पुत्र अश्‍वत्थामा ने भगवान कृष्ण के मना करने के बावजूद ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया। अश्वत्थामा ब्रह्मास्त्र चलाना तो जानता था, पर उसे लौटाना नहीं जानता था। उस अतिप्रचंड तेजोमय अग्नि को अपनी ओर आता देख अर्जुन भयभीत हो गया और उसने श्रीकृष्ण से विनती की। श्रीकृष्ण बोले, 'है अर्जुन! तुम्हारे भय से व्याकुल होकर अश्वत्थामा ने यह ब्रह्मास्त्र तुम पर छोड़ा है। इस ब्रह्मास्त्र से तुम्हारे प्राण घोर संकट में हैं। इससे बचने के लिए तुम्हें भी अपने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करना होगा, क्योंकि अन्य किसी अस्त्र से इसका निवारण नहीं हो सकता।'
कहते हैं कि अश्वत्थामा ने ब्रह्मास्त्र छोड़ा, प्रत्युत्तर में अर्जुन ने भी छोड़ा। अश्वत्थामा ने पांडवों के नाश के लिए छोड़ा था और अर्जुन ने उसके ब्रह्मास्त्र को नष्ट करने के लिए। दोनों द्वारा छोड़े गए इस ब्रह्मास्त्र के कारण लाखों लोगों की जान चली गई थी।
 
आज जिस हिस्से को पाकिस्तान और अफगानिस्तान कहा जाता है, महाभारतकाल में उसके उत्तरी हिस्से को गांधार, मद्र,  कैकय और कंबोज की स्थली कहा जाता था। अयोध्या और मथुरा से लेकर कंबोज (अफगानिस्तान का उत्तर इलाका) तक आर्यावर्त के बीच वाले खंड में कुरुक्षेत्र होता था, जहां यह युद्ध हुआ। उस काल में कुरुक्षेत्र बहुत बड़ा क्षेत्र होता था। आजकल यह हरियाणा का एक छोटा-सा क्षेत्र है।
 
उस काल में सिन्धु और सरस्वती नदी के पास ही लोग रहते थे। सिन्धु और सरस्वती के बीच के क्षेत्र में कुरु रहते थे। यहीं सिन्धु घाटी की सभ्यता और मोहनजोदड़ो के शहर बसे थे, जो मध्यप्रदेश की नर्मदा घाटी तक फैले थे। सिन्धु घाटी सभ्यता के मोहन जोदड़ो, हड़प्पा आदि स्थानों की प्राचीनता और उनके रहस्यों को आज भी सुलझाया नहीं जा सका है। मोहन जोदड़ो सिन्धु नदी के दो टापुओं पर स्थित है।
 
जब पुरातत्वशास्त्रियों ने पिछली शताब्दी में मोहन जोदड़ो स्थल की खुदाई के अवशेषों का निरीक्षण किया था तो उन्होंने देखा कि वहां की गलियों में नरकंकाल पड़े थे। कई अस्थिपंजर चित अवस्था में लेटे थे और कई अस्थिपंजरों ने एक-दूसरे के हाथ इस तरह पकड़ रखे थे, मानो किसी विपत्ति ने उन्हें अचानक उस अवस्था में पहुंचा दिया था।
 
उन नरकंकालों पर उसी प्रकार की रेडियो एक्टिविटी के चिह्न थे, जैसे कि जापानी नगर हिरोशिमा और नागासाकी के कंकालों पर एटम बम विस्फोट के पश्चात देखे गए थे। मोहन जोदड़ो स्थल के अवशेषों पर नाइट्रिफिकेशन के जो चिह्न पाए गए थे, उसका कोई स्पष्ट कारण नहीं था, क्योंकि ऐसी अवस्था केवल अणु बम के विस्फोट के पश्चात ही हो सकती है।

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Dev Diwali 2024: देव दिवाली पर यदि कर लिए ये 10 काम तो पूरा वर्ष रहेगा शुभ

Shani margi 2024: शनि के कुंभ राशि में मार्गी होने से किसे होगा फायदा और किसे नुकसान?

Tulsi vivah 2024: देवउठनी एकादशी पर तुलसी के साथ शालिग्राम का विवाह क्यों करते हैं?

Dev uthani ekadashi 2024: देवउठनी एकादशी पर भूलकर भी न करें ये 11 काम, वरना पछ्ताएंगे

शुक्र के धनु राशि में गोचर से 4 राशियों को होगा जबरदस्त फायदा

सभी देखें

धर्म संसार

Vaikuntha chaturdashi date 2024: वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व, क्यों गए थे श्री विष्णु जी वाराणसी?

13 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

13 नवंबर 2024, बुधवार के शुभ मुहूर्त

Dev uthani ekadasshi 2024: देव उठनी एकादशी का पारण समय क्या है?

नीलम कब और क्यों नहीं करता है असर, जानें 7 सावधानियां

More