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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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महाभारत के युद्ध में जीवित बचे योद्धा...

हमें फॉलो करें महाभारत के युद्ध में जीवित बचे योद्धा...

अनिरुद्ध जोशी

कुरुक्षेत्र में लड़ा गया महाभारत का युद्ध दुनिया का प्रथम विश्वयुद्ध था। इस युद्ध में संपूर्ण भारतवर्ष के राजाओं के अतिरिक्त बहुत से अन्य देशों के राजाओं ने भी भाग लिया और सब के सब वीरगति को प्राप्त हो गए। लाखों महिलाएं विधवा हो गईं। इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत से वैदिक धर्म, समाज, संस्कृति और सभ्यता का पतन हो गया। इस युद्ध के बाद से ही अखंड भारत बहुधर्मी और बहुसंस्कृति का देश बनकर खंड-खंड होता चला गया।

पांडवों और कौरवों द्वारा यादवों से सहायता मांगने पर श्रीकृष्ण ने पहले तो युद्ध में शस्त्र न उठाने की प्रतिज्ञा की और फिर कहा कि एक तरफ मैं अकेला और दूसरी तरफ मेरी एक अक्षौहिणी नारायणी सेना, अब अर्जुन व दुर्योधन को इनमें से एक का चुनाव करना था। अर्जुन ने तो श्रीकृष्ण को ही चुना, तब श्रीकृष्ण ने अपनी एक अक्षौहिणी सेना दुर्योधन को दे दी और खुद अर्जुन का सारथी बनना स्वीकार किया। इस प्रकार कौरवों ने 11 अक्षौहिणी तथा पांडवों ने 7 अक्षौहिणी सेना एकत्रित कर ली।

कौरवों की ओर से दुर्योधन व उसके 99 भाइयों सहित भीष्म, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा, मद्रनरेश शल्य, भूरिश्र्वा, अलम्बुष, कृतवर्मा कलिंगराज श्रुतायुध, शकुनि, भगदत्त, जयद्रथ, विन्द-अनुविन्द, काम्बोजराज सुदक्षिण और बृहद्वल युद्ध में शामिल थे।

पांडवों की ओर से युधिष्ठिर व उनके 4 भाई भीम, नकुल, सहदेव, अर्जुन सहित सात्यकि, अभिमन्यु, घटोत्कच, विराट, द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, पांड्यराज, युयुत्सु, कुन्तिभोज, उत्तमौजा, शैब्य और अनूपराज नील युद्ध में शामिल थे।

इसके अलावा तटस्थ राज्य भी थे- विदर्भ, शाल्व, चीन, लौहित्य, शोणित, नेपा, कोंकण, कर्नाटक, केरल, आंध्र, द्रविड़ आदि ने इस युद्ध में भाग नहीं लिया।

इस तरह सभी महारथियों की सेनाओं को मिलाकर कुल 1 करोड़ से ज्यादा लोगों ने इस युद्ध में भाग लिया था। उस काल में धरती की जनसंख्या ज्यादा नहीं थी।

100 कौरवों और 5 पांडवों के बीच कुरु साम्राज्य के सिंहासन की प्राप्ति के लिए लड़े गए इस युद्ध में कौन-कौन बच गए थे उनके बारे में कम ही लोग जानते होंगे। क्या सभी 100 कौरव मारे गए थे? पांडवों की ओर से कौन युद्ध में बच गया था?

 

अगले पन्ने पर युद्ध में बच गया पहला योद्धा...


कृपाचार्य : महाभारत के युद्ध में कृपाचार्य बच गए थे, क्योंकि उन्हें चिरंजीवी रहने का वरदान था। ऐसा माना जाता है कि कृपाचार्य आज भी जीवित हैं। ये शरद्वान् गौतम पुत्र हैं। कृपाचार्य अश्वत्थामा के मामा और कौरवों के कुलगुरु थे। शिकार खेलते हुए शांतनु को दो शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया। महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे।

शरद्वान गौतम ने कृप को धनुर्विद्या सिखाई। कृप ही बड़े होकर कृपाचार्य बने और उन्होंने धृतराष्ट्र व पांडु की संतान को धनुर्विद्या और युद्धकौशल की शिक्षा दी। कर्ण के वधोपरांत उन्होंने दुर्योधन को बहुत समझाया कि उसे पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए किंतु दुर्योधन ने अपने किए हुए अन्यायों को याद कर कहा कि न पांडव इन बातों को भूल सकते हैं और न उसे क्षमा कर सकते हैं। युद्ध में मारे जाने के सिवा अब कोई भी चारा उसके लिए शेष नहीं है।

अगले पन्ने पर दूसरा योद्धा...


कृतवर्मा : कृतवर्मा यादव थे और यह भोजराज ह्रदिक के पुत्र तथा कौरव पक्ष के अतिरथी योद्धा थे। मथुरा पर आक्रमण के समय श्रीकृष्ण ने कृतवर्मा को पूर्वी द्वार की रक्षा का भार सौंपा था। कृतवर्मा ने बाण के मंत्री कूपकर्ण को हराया था।

श्रीकृष्ण ने कृतवर्मा को हस्तिनापुर भी भेजा था, जहां ये पांडवों, द्रोण तथा विदुर आदि से मिले थे और मथुरा जाकर श्रीकृष्ण को सारा हाल बताया था। कृतवर्मा ने शतधंवा की सहायता करना अस्वीकार किया था।

अगले पन्ने पर तीसरा योद्धा...


अश्वत्थामा : अश्वत्थामा कौरवों की ओर से लड़े थे। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा के मस्तक पर अमूल्य मणि विद्यमान थी, जो कि उसे दैत्य, दानव, शस्त्र, व्याधि, देवता, नाग आदि से निर्भय रखती थी। यही कारण था कि उन्हें कोई मार नहीं सकता था। अश्वत्थामा की माता का नाम था कृपि।

अश्वत्थामा महाबलशाली थे। उन्होंने भीम-पुत्र घटोत्कच को परास्त किया तथा घटोत्कच पुत्र अंजनपर्वा का वध किया। इसके बाद उन्होंने कई बलशाली राजाओं का वध किया। उन्होंने कुंतीभोज के दस पुत्रों का वध भी किया। पिता-पुत्र ने मिलकर महाभारत युद्ध में पांडवों की हार सुनिश्‍चत कर दी थी। पांडवों की हार को देखकर श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से छल का सहारा लेने को कहा। इस योजना के तहत युद्ध में यह बात फैला दी गई कि 'अश्वत्थामा मारा गया'।

जब गुरु द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की सत्यता जानना चाही तो उन्होंने जवाब दिया- 'अश्वत्थामा मारा गया, परंतु हाथी।' श्रीकृष्ण ने उसी समय शंखनाद किया, जिसके शोर के चलते गुरु द्रोणाचार्य आखरी शब्द 'हाथी' नहीं सुन पाए और उन्होंने समझा मेरा पुत्र मारा गया। यह सुनकर उन्होंने शस्त्र त्याग दिए और युद्ध भूमि में आंखें बंद कर शोक में डूब गए। यही मौका था जबकि द्रोणाचार्य को निहत्था जानकर द्रौपदी के भाई धृष्टद्युम्न ने तलवार से उनका सिर काट डाला।

पिता को छलपूर्वक मारे जाने का जानकर अश्वत्थामा दुखी होकर क्रोधित हो गए और उन्होंने ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया जिससे युद्ध भूमि श्मशान भूमि में बदल गई। यह देख कृष्ण ने उन्हें कलियुग के अंत तक कोढ़ी के रूप में जीवित रहने का शाप दे डाला।

अगले पन्ने पर चौथा योद्धा...


युयुत्सु : महाराज धृतराष्ट्र के एक पुत्र युयुत्सु ने पांडवों की ओर से लड़ाई की थी। वह इसलिए कि युयुत्सु एक दासीपुत्र थे। महाभारत महाकाव्य में 'युयुत्सु' राजा धृतराष्ट्र के वेश्या से उत्पन्न पुत्र थे इसीलिए उन्हें उचित सम्मान नहीं मिलता था।

महाभारत युद्ध से पहले भीष्म पितामह ने सभी योद्धाओं को कहा कि अब युद्ध शुरू होने वाला है इस समय जो भी योद्धा अपना खेमा बदलना चाहे वह स्वतंत्र है कि वह जिसकी तरफ से भी चाहे युद्ध करे।

इस घोषणा के बाद युयुत्सु डंका बजाते हुए कौरव दल को छोड़ पांडवों के खेमे में चले गए। इस तरह महाभारत युद्ध में सभी कौरव मारे गए। एक मात्र युयुत्सु ही जीवित बचा था। माना जाता है कि युयुत्सु के वंशज आज भी मौजूद हैं।

अगले पन्ने पर पांचवां योद्धा...


महाभारत युद्ध में सात्यकि पांडवों की ओर से लड़ने वाले यादव योद्धा थे। सात्यकि अर्जुन के परम स्नेही मित्र थे। अभिमन्यु के निधन के उपरांत जब अर्जुन ने अगले दिन जयद्रथ को मारने की अथवा आत्मदाह की प्रतिज्ञा की थी, तब युद्ध में उन्होंने सात्यकि को युधिष्ठिर की रक्षा का भार सौंप दिया था।

सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, भूरिश्रवा, कर्णपुत्र प्रसन थे। युद्ध भूमि में सात्यकि को भूरिश्रवा से कड़ी टक्कर झेलनी पड़ी। हर बार सात्यकि को कृष्ण और अर्जुन ने बचाया।

अगले पन्ने पर छठा योद्धा...


युधिष्ठिर : पांडु पुत्र और पांच पांडवों में सबसे बड़े युधिष्ठिर की सत्यनिष्ठा की सभी प्रशंसा करते हैं। शान्तिपर्व में संपूर्ण समाजनीति, राजनीति तथा धर्मनीति युधिष्ठिर और भीष्म के संवाद के रूप में प्रस्तुत की गई है।

युद्ध के मैदान में युधिष्ठिर भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य और मामा शल्य के पास गए और उनसे विजय के लिए आशीर्वाद प्राप्त किया। युद्ध में कर्ण ने युधिष्ठिर को घायल कर दिया था जिसके चलते उन्हें शिविर में वापस लौटना पड़ा।

युधिष्ठिर ने महाभारत युद्ध की समाप्ति पर बचे हुए मृत सैनिकों का (चाहे वे शत्रु वर्ग के हों अथवा मित्रवर्ग के) दाह-संस्कार एवं तर्पण किया था। इस युद्ध के बाद युधिष्ठिर को राज्य, धन, वैभव से वैराग्य हो गया।

अगले पन्ने पर सातवां योद्धा...


भीम : कहते हैं भीम में हजार हाथियों का बल था। एक दिन उन्होंने बहती नर्मदा नदी को अपने दोनों हाथों से रोक दिया था। भीम ने ही मगध के शासक जरासंध को परास्त करके 86 राजाओं को मुक्त कराया था। उन्होंने ही द्रौपदी के चीरहरण का बदला लेने के लिए दुःशासन की छाती फाड़कर उसका रक्तपान किया था। भीम की वीरता के किस्से सैकड़ों हैं।

महाकाव्य महाभारत के अनुसार भीम पांडवों में दूसरे स्थान पर थे। सभी पांडवों में वे सर्वाधिक बलशाली और श्रेष्ठ कद-काठी के थे एवं युधिष्ठिर के सबसे प्रिय सहोदर थे। महाभारत के युद्ध में भीम ने ही कौरवों का वध किया था। भीम के द्वारा दुर्योधन के वध के साथ ही महाभारत के युद्ध का अंत हो गया।

अगले पन्ने पर आठवां योद्धा...


अर्जुन : पांडु पुत्रों में अर्जुन का तीसरा स्‍थान है। द्रोणाचार्य के शिष्य अर्जुन सबसे अच्छे तीरंदाज थे। पांडु की ज्येष्ठ पत्नी वासुदेव कृष्ण की बुआ कुंती थी जिसने इन्द्र के संसर्ग से अर्जुन को जन्म दिया। उन्हें पार्थ, धनंजय और आजानबाहु भी कहा जाता है।

हिमालय में तपस्या करते समय अर्जुन का किरात वेशधारी शिव से युद्ध हुआ था। शिव से उन्हें पाशुपत अस्त्र और अग्नि से आग्नेयास्त्र, गांडीव धनुष तथा अक्षय तुणीर प्राप्त हुआ। वरुण ने इनको नंदिघोष नामक विशाल रथ प्रदान किया। द्रोणाचार्य ने अर्जुन को प्रयोग और उपसंहार सहित ब्रह्मशिर अस्त्र सीखला दिया था।

महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण उनके रथ के सारथी थे। श्रीकृष्ण और अर्जुन के संवाद से ही गीता का जन्म हुआ। कहते हैं कि महाभारत युद्ध के बाद अर्जुन अपने भाइयों के साथ हिमालय चले गए और वहीं उनका देहांत हुआ।

अंत में पढ़ें, युद्ध में बच गए अन्य योद्धाओं के नाम...


कुछ यादव युद्ध में और बाद में गांधारी के शाप के चलते आपसी युद्ध में मारे गए। पांडव पक्ष के विराट और विराट के पुत्र उत्तर, शंख और श्वेत, सात्यकि के दस पुत्र, अर्जुन पुत्र इरावान, द्रुपद, द्रौपदी के पांच पुत्र, धृष्टद्युम्न, शिखण्डी, कौरव पक्ष के कलिंगराज भानुमान्, केतुमान, अन्य कलिंग वीर, प्राच्य, सौवीर, क्षुद्रक और मालव वीर।

कौरवों की ओर से धृतराष्ट्र के दुर्योधन सहित सभी पुत्र, भीष्म, त्रिगर्त नरेश, जयद्रथ, भगदत्त, द्रौण, दुःशासन, कर्ण, शल्य आदि सभी युद्ध में मारे गए थे।

बच गए योद्धा : महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे जिनके नाम हैं- कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।

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