प्राचीन मिस्र का प्राचीन भारत से संबंध, जानिए रहस्य...

अनिरुद्ध जोशी
मंगलवार, 7 नवंबर 2017 (14:30 IST)
मिस्र (इजिप्ट- 3150-150 ईसा पूर्व) : मिस्र बहुत ही प्राचीन देश है। यहां के पिरामिडों की प्रसिद्धि और प्राचीनता के बारे में सभी जानते हैं। प्राचीन मिस्र नील नदी के किनारे बसा है। यह उत्तर में भूमध्य सागर, उत्तर-पूर्व में गाजा पट्टी और इसराइल, पूर्व में लाल सागर, पश्चिम में लीबिया एवं दक्षिण में सूडान से घिरा हुआ है। इस प्रकार मिस्र एक अंतरमहाद्वीपीय देश है, जो अफ्रीका और एशिया-अरब को जोड़ता है।
 
 
मिस्र प्राचीन सभ्यताओं वाला देश है। खासकर गिजा के पिरामिडों के आसपास बसे शहर को सबसे प्राचीन माना जाता है। यहां की प्राचीन सभ्यता लगभग 3,000 ईसा पूर्व से भी अधिक समय से विद्यमान थी। तब यहां फराओ वंशी नामक राजाओं का शासन था, जो क्रमश: कई 525 ईसा पूर्व तक चला। फराओ पेपी II (2246-2152 BC) का शासनकाल इतिहास में सबसे लंबे समय तक था। लगभग 94 साल। जब वे सिर्फ 6 साल के थे तभी मिस्र के राजा बन गए थे। यह अद्भुत है कि गिजा के पिरामिड पिछले 4,000 वर्षों से भी अधिक समय से ज्यों के त्यों विद्यमान हैं। पिरामिडों का यह शहर अपनी समृद्ध प्राचीन परंपरा और इतिहास का खुद गवाह और सबूत है।
 
 
हजरत मूसा फराओ के शासनकाल में लगभग 1,500 मिस्र में ही रहते थे। ऐसा माना जाता है कि उनको उनकी मां ने नील नदी में बहा दिया था। उनको फिर फराओ की पत्नी ने पाला था। बड़े होकर वे मिस्री राजकुमार बने और बाद में मूसा को मालूम हुआ कि वे तो यहूदी हैं और उनका यहूदी राष्ट्र अत्याचार सह रहा है और यहां यहूदी गुलाम हैं, तो उन्होंने यहूदियों को इकट्ठा कर उनमें नई जागृति लाई और वे मिस्र छोड़कर अपने देश यरुशलम चले गए।
 
 
मिस्रवासी ईश्‍वरवादी होने से साथ-साथ ही कई देवी और देवताओं की पूजा करते थे। कहते हैं कि प्राचीन मिस्र में लगभग 1400 देवी-देवताओं की पूजा होती थी। मिस्र में मूसा के कबीले के लोग रहते थे। फिर वे इसराइल चले गए। बाद में यहां पुन: यहूदियों की आबादी हो गई। फिर ईसाई धर्म के उत्थान काल में यहां ईसाइयों की बहुलता हो गई। लगभग चौथी और छठी सदी के आसपास मिस्र में सबसे ज्यादा ईसाई रहते थे लेकिन आज 90% मुसलमान हैं। मिस्र अब एक मुस्लिम देश है।
 
 
खतना की शुरुआत प्राचीन मिस्रवासियों ने की थी। बाद में इस परंपरा को यहूदियों और फिर मुस्लिमों ने अपनाया। हालांकि प्राचीन मिस्र की महिलाएं आजाद थीं। ये जमीन खरीद सकती थीं, न्यायाधीश बन सकती थीं और अपनी वसीयत लिख सकती थीं। अगर वे बाहर काम करती थीं, तो उन्हें समान वेतन दिया जाता था। वे तलाक भी दे सकती थीं और फिर से शादी भी कर सकती थीं।
 
मिस्र और भारत 
प्राचीन भारत में सिंधु नदी का बंदरगाह अरब और भारतीय संस्कृति का मिलन केंद्र था। यहां से जहाज द्वारा बहुत कम समय में इजिप्ट या सऊदी अरब पहुंचा जा सकता था। यदि सड़क मार्ग से जाना हो तो बलूचिस्तान से ईरान, ईरान से इराक, इराक से जॉर्डन और जॉर्डन से इसराइल होते हुई इजिप्ट पहुंचा जा सकता था। हालांकि इजिप्ट पहुंचने के लिए ईरान से सऊदी अरब और फिर इजिप्ट जाया जा सकता है, लेकिन इसमें समुद्र के दो छोटे-छोटे हिस्सों को पार करना होता है।
 
 
यहां का शहर इजिप्ट प्राचीन सभ्यताओं और अफ्रीका, अरब, रोमन आदि लोगों का मिलन स्थल है। यह प्राचीन विश्‍व का प्रमुख व्यापारिक और धार्मिक केंद्र था। मिस्र के भारत से गहरे संबंध रहे हैं। मान्यता है कि यादवों के गजपत, भूपद, अधिपद नाम के 3 भाई मिस्र में ही रहते थे। गजपद के अपने भाइयों से झगड़े के चलते उसने मिस्र छोड़कर अफगानिस्तान के पास एक गजपद नगर बसाया था। गजपद बहुत शक्तिशाली था।
 
 
मिस्र में सूर्य को सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा देवता के रूप में माना जाता है। भारतीयों ने कहा है- आरोग्यं भास्करादिच्छेत। यहां अनेक औषधियां भारत से मंगाई जाती थीं। भारतीय और मिस्र की भाषाओं में बहुत से शब्द और उनके अर्थ समान हैं, जैसे हरी (सूर्य)- होरस, ईश्वरी- ईसिस, शिव- सेव, श्वेत- सेत, क्षत्रिय- खेत, शरद- सरदी आदि। मिस्र के पुरोहितों की वेशभूषा भारतीय पुरोहितों व पंडितों की तरह है। उनकी मूर्तियों पर भी वैष्णवी तिलक लगा हुआ मिलता है। एलोरा की गुफा और इजिप्ट की एक गुफा में पाई गई नक्काशी और गुफा के प्रकार में आश्चर्यजनक रूप से समानता है।
 
 
मिस्र के प्रसिद्ध पिरामिड वहां के राजाओं की एक प्रकार की कब्रें हैं। भारतीयों को इस विद्या की उत्तम जानकारी थी। उन्होंने राजा दशरथ का शव उनके पुत्र भरत के कैकेय प्रदेश से अयोध्या आने तक सुरक्षित रखा था।
 
इजिप्ट के पिरामिडों के टैक्स से पता चला कि स्वर्ग से आए थे देवता और उन्होंने ही धरती पर जीवों की रचना की। इजिप्ट के राजा उन्हें अपना पूर्वज मानते थे। उन्होंने इजिप्टवासियों को कई तरह का ज्ञान दिया। उनकी कई पीढ़ियों ने यहां शासन किया। प्राचीनकाल में स्वर्ग उस स्थान को कहा जाता था, जहां हरे-भरे जंगल थे, कल-कल करती कई नदियां हों, खासकर जहां सेबफल के बहुतायत पेड़ हो और जहां बर्फ से लदे पहाड़ हो।
 
 
गौरवर्ण के उन देवदूतों को स्वर्ग से निकाला गया था। उन्हें स्वर्ग से बहिष्कृत स्वर्गदूत कहा जाने लगा। वे आकाश से उतरे थे इसलिए सर्वप्रथम उन्हें आकाशदेव कहा गया। जानकारों ने उन्हें स्वर्गदूत कहा और धर्मवेत्ताओं ने उन्हें ईश्वर का दूत कहा। लेकिन वे लोग जो उन्हें 'धरती को बिगाड़ने का दोषी' मानते थे उन्होंने उन्हें राक्षस या शैतान कहना शुरू कर दिया। विरोधी लोग रक्त की शुद्धता बनाए रखने के लिए उनका विरोध करते थे। इस तरह मिस्र में इन विदेशियों के कारण एक नई सभ्यता और संघर्ष का जन्म शुरू हुआ।

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