हिन्दू कैलेंडर के पांच भेद, जानिए इसकी वैज्ञानिकता के बारे में

अनिरुद्ध जोशी
बुधवार, 15 जनवरी 2020 (14:32 IST)
हिन्दू कैलेंडर किस तरह एक वैज्ञानिक कैलेंडर है यह जानने के लिए लिए हमें समझना होगा खगोल विज्ञान को, क्योंकि हिन्दू कैलेंडर सिर्फ चंद्र या सूर्य के भ्रमण पर आधारित नहीं है। यह ऐसा कैलेंडर है जिससे हजारों वर्ष होने वाले ग्रहण और हजारों वर्ष पूर्व हो चुके ग्रहण के अलावा यह भी जान सकते हैं कि धरती इस वक्त किस काल में भ्रमण कर रही है। आओ जानते हैं इसका रहस्य।
 
 
हमारी धरती के मान से ही हिन्दू कैलेंडर विकसित नहीं हुआ है। प्राचीन ऋषि मुनियों ने धरती और अन्य ग्रहों के दिन और वर्ष को भी समझा है। साथ ही सूर्य, चंद्र और अन्य नक्षत्रों की गति को ध्यान में रखकर ही धरती के सही समय को निर्धारित किया है। इसीलिए हिन्दू पद्धति के अनुसार वर्ष के मान को पांच तरह से जाना जाता है। ये पांच वर्षमान है- 1.सौरवर्ष, 2 चांद्रवर्ष, 3 नाक्षत्रवर्ष, 4 सावनवर्ष और 5 बाहसर्पत्य वर्ष।... धारती और संपूर्ण ब्रह्मांड का सटीक समय निर्धारण उक्त वर्ष के आधार पर ही निर्धारित किया जाता है।
 
 
1. सौरवर्ष- जितने समय में सूर्य बारह राशियों का भम्रण करता है उसे सौरवर्ष कहते हैं। सूर्य एक राशि से दूसरी में प्रवेश करने में 30 अंश अर्थात लगभग 30 दिन लगाता है यानि एक मास का यह समय एक संक्रांति से दूसरी संक्रांति तक रहता है। सौरवर्ष का पूर्ण समय 365 दिन 6 घंटे 9 मिनट 11 सैकिंड का होता है।
 
 
इस सौरवर्ष के दो भाग हैं उत्तरायण और दक्षिणायन। सूर्य जब धनु राशि से मकर में जाता है, तब उत्तरायन होता है। उत्तरायण से पर्व और उत्सव प्रारंभ होता हैं। साल भर की छ: ऋतुओं में से तीन ऋतुएं शिशिर, बसन्त और ग्रीष्म ऋतुएं उत्तरायण की होती है. सूर्य जब कर्क राशि में प्रवेश करता है तब दक्षिणायन होता है। इस दौरान व्रतों के दिन शुरू होते हैं। दक्षिणायन के दौरान वर्षा, शरद और हेमंत, यह तीन ऋतुएं होती हैं तथा दक्षिणायन में आकाश बादलों से घिरा रहता है।
 
 
सौरमास के माहों के नाम हैं- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्‍चिक, धनु, कुंभ, मकर, मीन। सौरमास का पहला महिना मेष है।
 
 
2. चंद्र वर्ष- चंद्र वर्ष सौरवर्ष से छोटा है। सौरमास 365 दिन का और चन्द्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। मूलत: सौर-वर्ष से 11 दिन 3 घटी 48 पल छोटा है चन्द्र-वर्ष इसीलिए हर 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है जिसे खरमास, अधिमास या मलमास कहते हैं।

 
चन्द्र कला की घट-बढ़ वाले 2 पक्षों कृष्‍ण और शुक्ल का जो एक मास होता है वही चंद्रमास कहलाता है। इस चन्द्रमास के 30 दिन को चन्द्र कला के आधार पर 15-15 दिन के 2 पक्षों में बांटा गया है- शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष। इसके दिनों को तिथि कहते हैं। शुक्ल पक्ष के अंतिम दिन को पूर्णिमा कहते हैं और कृष्ण पक्ष के अंतिम दिन को अमावस्या। यह शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से प्रारंभ होकर कृष्ण पक्ष अमावस्या को पूर्ण होने वाला 'अमांत' मास मुख्‍य चन्द्रमास है। कृष्‍ण प्रतिपदा से 'पूर्णिमात' पूरा होने वाला गौण चन्द्रमास है। यह तिथि की घट-बढ़ के अनुसार 29, 30 व 28 एवं 27 दिनों का भी होता है।

 
पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा जिस नक्षत्र में होता है, उसी आधार पर महीनों का नामकरण हुआ है। चन्द्रमास के नाम:- 1. चैत्र, 2. वैशाख, 3. ज्येष्ठ, 4. आषाढ़, 5. श्रावण, 6. भाद्रपद, 7. आश्विन, 8. कार्तिक, 9. अगहन, 10. पौष, 11. माघ और 12. फाल्गुन।

 
नक्षत्र मास : आकाश में स्थित तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। साधारणत: ये चन्द्रमा के पथ से जुडे हैं। वैसे नक्षत्र तो 88 हैं किंतु चन्द्रपथ पर 27 ही माने गए हैं। जिस तरह सूर्य मेष से लेकर मीन तक भ्रमण करता है, उसी तरह चन्द्रमा अश्‍विनी से लेकर रेवती तक के नक्षत्र में विचरण करता है तथा वह काल नक्षत्र मास कहलाता है। यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता है।

 
नक्षत्र मास के नाम:- 1.चित्रा, 2.स्वाति, 3.विशाखा, 4.अनुराधा, 5.ज्येष्ठा, 6.मूल, 7.पूर्वाषाढ़ा, 8.उत्तराषाढ़ा, 9.शतभिषा, 10.श्रवण, 11.धनिष्ठा, 12.पूर्वा भाद्रपद, 13.उत्तरा भाद्रपद, 14.आश्विन, 15.रेवती, 16.भरणी, 17. कार्तिक, 18.रोहिणी, 19.मृगशिरा, 20.उत्तरा, 21.पुनर्वसु, 22.पुष्य, 23.मघा, 24.आश्लेषा, 25.पूर्वा फाल्गुनी, 26.उत्तरा फाल्गुनी और 27.हस्त।

 
सावन वर्ष : ज्योतिष की गणना में वह वर्ष जो 60 सौर दिनों का होता है। सौरवर्ष 365 दिनों का, चंद्रवर्ष 355 दिनों का और सावन वर्ष 360 दिनों का होता है। सावन माह 30 दिनों का होता है। यह किसी भी तिथि से प्रारंभ होकर तीसवें दिन पूर्ण होता है। यह धरती के ऋतुएं एवं मौसम पर आधारित है।

वर्ष में 6 ऋतुएं होती हैं- 1. शीत-शरद, 2. बसंत, 3. हेमंत, 4. ग्रीष्म, 5. वर्षा और 6. शिशिर। ऋतुओं ने हमारी परंपराओं को अनेक रूपों में प्रभावित किया है। बसंत, ग्रीष्म और वर्षा देवी ऋतु हैं तो शरद, हेमंत और शिशिर पितरों की ऋतु है। वसंत से नववर्ष की शुरुआत होती है। वसंत ऋतु चैत्र और वैशाख माह अर्थात मार्च-अप्रैल में, ग्रीष्म ऋतु ज्येष्ठ और आषाढ़ माह अर्थात मई जून में, वर्षा ऋतु श्रावण और भाद्रपद अर्थात जुलाई से सितम्बर, शरद ऋतु अश्‍विन और कार्तिक माह अर्थात अक्टूबर से नवम्बर, हेमन्त ऋतु मार्गशीर्ष और पौष माह अर्थात दिसंबर से 15 जनवरी तक और शिशिर ऋतु माघ और फाल्गुन माह अर्थात 16 जनवरी से फरवरी अंत तक रहती है।

 
बार्हस्पत्य वर्ष : बृहस्पति की गति के अनुसार प्रभव आदि साठ वर्षों में बारह युग होते हैं तथा प्रत्येक युग में पांच पांच वत्सर होते हैं। बारह युगों के नाम हैं– प्रजापति, धाता, वृष, व्यय, खर, दुर्मुख, प्लव, पराभव, रोधकृत, अनल, दुर्मति और क्षय। प्रत्येक युग के जो पांच वत्सर हैं, उनमें से प्रथम का नाम संवत्सर है। दूसरा परिवत्सर, तीसरा इद्वत्सर, चौथा अनुवत्सर और पांचवा युगवत्सर है। 12 वर्ष बृहस्पति वर्ष माना गया है। बृहस्पति के उदय और अस्त के क्रम से इस वर्ष की गणना की जाती है। इसमें 60 विभिन्न नामों के 361 दिन के वर्ष माने गए हैं। बृहस्पति के राशि बदलने से इसका आरंभ माना जाता है। 
 
 
60 संवत्सर : संवत्सर को वर्ष कहते हैं: प्रत्येक वर्ष का अलग नाम होता है। कुल 60 वर्ष होते हैं तो एक चक्र पूरा हो जाता है। इनके नाम इस प्रकार हैं:-प्रभव, विभव, शुक्ल, प्रमोद, प्रजापति, अंगिरा, श्रीमुख, भाव, युवा, धाता, ईश्वर, बहुधान्य, प्रमाथी, विक्रम, वृषप्रजा, चित्रभानु, सुभानु, तारण, पार्थिव, अव्यय, सर्वजीत, सर्वधारी, विरोधी, विकृति, खर, नंदन, विजय, जय, मन्मथ, दुर्मुख, हेमलम्बी, विलम्बी, विकारी, शार्वरी, प्लव, शुभकृत, शोभकृत, क्रोधी, विश्वावसु, पराभव, प्ल्वंग, कीलक, सौम्य, साधारण, विरोधकृत, परिधावी, प्रमादी, आनंद, राक्षस, नल, पिंगल, काल, सिद्धार्थ, रौद्रि, दुर्मति, दुन्दुभी, रूधिरोद्गारी, रक्ताक्षी, क्रोधन और अक्षय।
 
उक्त सभी कैलेंडर पंचांग पर आधारित है। पंचांग के पांच अंग हैं- 1. तिथि, 2. नक्षत्र, 3. योग, 4. करण, 5. वार (सप्ताह के सात दिनों के नाम)। भारत में प्राचलित श्रीकृष्ण संवत, विक्रम संवत और शक संवत सभी उक्त काल गणना और पंचांग पर ही आधारित है।

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