Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
webdunia
Advertiesment

प्यार : एक मनोवैज्ञानिक पक्ष

प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम ना दो .....

हमें फॉलो करें प्यार : एक मनोवैज्ञानिक पक्ष

स्मृति आदित्य

NDND
प्यार एक विलक्षण अनुभूति है। सारे संसार में इसकी खूबसूरती और मधुरता की मिसालें दी जाती हैं। इस सुकोमल भाव पर सदियों से बहुत कुछ लिखा, पढ़ा और सुना जाता रहा है। बावजूद इसके इसे समझने में भूल होती रही है। मनोवैज्ञानिकों ने इस मीठे अहसास की भी गंभीर विवेचना कर डाली। फिर भी मानव मन ने इस शब्द की आड़ में छला जाना जारी रखा है।

महान विचारक लेमेन्नाइस के अनुसार - 'जो सचमुच प्रेम करता है उस मनुष्य का ह्रदय धरती पर साक्षात स्वर्ग है। ईश्वर उस मनुष्य में बसता है क्योंकि ईश्वर प्रेम है।'

उधर दार्शनिक लूथर के विचार हैं कि 'प्रेम ईश्वर की प्रतिमा है और निष्प्राण प्रतिमा नहीं, बल्कि दैवीय प्रकृति का जीवंत सार, जिससे कल्याण के गुण छलकते रहते हैं।'

प्रेम वास्तव में सिर्फ और सिर्फ देने की उदार भावना का नाम है इसमें आदान की अपेक्षा नहीं रहती। दो व्यक्तियों के बीच जब यह बेहद कोमल रिश्ता अंकुरित होता है तब एक साथ बहुत कुछ घटित होता है। सारा वजूद एक महकता उपवन हो जाता है। रोम-रोम से सुगंध प्रस्फुटित होने लगती है। प्रेम, जिसमें खुशियों का उच्च शिखर भी मुस्कराता है और वेदना की अतल गहराई में भीगी खामोशी भी व्यक्त होती है।

webdunia
NDND
सच्चा और मासूम प्रेम बस प्रिय की समीपता का अभिलाषी होता है। उसे एकटक निहारने की भोली इच्छा से आगे शायद ही कुछ सोच पाता है। ज्यादा से ज्यादा अपने प्रिय पात्र से छोटी-छोटी सुकुमार अभिव्यक्तियाँ बाँटने की मंशा भर होती है। प्रेमियों के लिए एक-दूसरे का साथ अत्यंत मूल्यवान होता है। उसे पाने के लिए वे सदैव प्रयासरत रहते हैं।


प्यार करने वाले व्यक्ति में अपने प्रिय को सुख पहुँचाने और उसे संरक्षण देने का आवेग सबसे प्रबल होता है। वह वो सबकुछ करने को तत्पर रहता है जो उसके साथी को हर्षित कर सकता है। प्यार की गहराई इस हद तक भी होती है कि चोट एक को लगे तो दर्द दूसरे को हो। या उदास एक हो तो आँसू दूसरे की आँखों से छलक जाए। इस प्रकार की प्रगाढ़ अनुभूतियाँ प्रेम के लक्षणों में गिनी जाती हैं। प्यार जैसी नर्म नाजुक भावना की अभिव्यक्ति कई रूपों में होती है।

बड़ी-बड़ी त्यागमयी उदारताओं से लेकर छोटे-छोटे उपहारों तक। इन अभिव्यक्तियों का मूल्य इस बात पर निर्भर नहीं करता कि जो कुछ किया जा रहा है वह कितना महान है। बल्कि उन भावनाओं पर निर्भर करता है जो इन अभिव्यक्तियों से संप्रेषित होती है। अकसर बहुत छोटे-छोटे प्यारभरे उपहारों का महत्व तब बढ़ जाता है जब वे अपने भीतर बड़े गहरे अर्थ को समेटे हुए होते हैं।


एक प्रेमी की खुशी का ठिकाना नहीं रहता जब उसे प्रेम के बदले प्रेम मिलता है। मनोविज्ञान कहता है किसी अत्यंत प्रिय पात्र द्वारा स्नेहपूर्वक स्वीकार किए जाने पर संतोष की शीतल अनुभूति होती है।

webdunia
NDND
मनोवैज्ञानिक वेंकर्ट का मत है - 'प्यार में व्यक्ति किसी ऐसे व्यक्ति की कामना करता है, जो एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में उसकी विशेषता को कबूल करे, स्वीकारे और समझे। उसकी यह इच्छा ही अक्सर पहले प्यार का कारण बनती है। जब ऐसा शख्स मिलता है तब उसका मन ऐसी भावनात्मक संपदा से समृद्ध हो जाता है जिसका उसे पहले कभी अहसास भी नहीं हुआ था।'


मनोवैज्ञानिकों ने स्वस्थ और अस्वस्थ प्रेम को बहुत सूक्ष्मता से परिभाषित करने की कोशिश की हैउनके अनुसार जब किसी व्यक्ति का प्रेम सहजता से प्रकट ना होकर अपनी किसी विकृति, कमी या निजी समस्या से पलायन के साधन के रूप में व्यक्त होता है तो समझना चाहिए कि वहाँ एक अस्वस्थ स्थिति विद्यमान है।


उदाहरण के लिए मान लीजिए किसी व्यक्ति में गहरी हीन भावना है जो खुद उसे भी प्रत्यक्ष रूप में नहीं पता। ऐसा व्यक्ति जब प्रेम में पड़ता है तब वह सामने वाले के माध्यम से अपनी उस कमी को मिटाने का पुरजोर प्रयास करता है। वास्तव में वह अपने प्रेमी या प्रेमिका का उपयोग अपनी उस कुसमंजित या कहें कि कन्फ्यूजिंग स्थिति से निपटने के लिए करता है।


मनोवैज्ञानिक युंग कहते हैं -
प्रेम करने या किसी के प्रेम पात्र बनने से यदि किसी को अपनी कोई कमी से छुटकारा मिलता है तो संभवत: यह अच्छी बात होगी। लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं है कि ऐसा होगा ही। या इस तरह से उसे मुक्ति मिल ही जाएगी।


webdunia
NDND
लंबे समय तक किसी शिकायत को पालने वाला या महज कल्पना लोक में जीने वाला व्यक्ति जब एक के बाद दूसरे प्रणय संबंधों को किसी को आघात पहुँचाने वाली जीत की प्राप्ति का साधन बना लेता है तब मनोविज्ञान इसे उसकी अस्वस्थ प्रवृत्ति का लक्षण मानता है।


यह अस्वस्थ तत्व उस व्यक्ति में मौजूद होता है जो बचकाने ढंग से दूसरों पर आश्रित है। अपनी इस निर्भरता को बनाए रखने के लिए वह दूसरों को अपने प्रति प्रेमासक्त बनाने की चाल चलता है। दूसरे शब्दों में वह अपने प्रेमी पर उसी प्रकार प्रभुत्व जमाना चाहता है जैसे दूसरे उस पर शासन करते हैं।


इसी प्रकार जब एक स्त्री, स्त्रीत्व की भूमिका निभाने की अपनी क्षमता में संदेह होने के कारण एक प्रेम संबंध छोड़कर दूसरे की ओर बढ़ती है या एक पुरूष ऐसा करता है तब दोनों में अस्वस्थ तत्व दिखता है।


इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि किसी प्रेम संबंध को तभी स्वस्थ कहा जा सकता है जब वह पूर्णत: पवित्र और मानवीय दुर्बलताओं से रहित हो। ऐसी पूर्णता मानव के लिए संभव ही नहीं है। लेकिन मनोवैज्ञानिकों की इतनी तो दृढ़ मान्यता है कि वहाँ कोई अस्वस्थ मनोवृत्ति काम कर रही है जहाँ कोई व्यक्ति प्रेम की उत्तेजना के माध्यम से अपनी आंतरिक समस्याओं से मुक्ति या राहत पाना चाहता है।


मनोवैज्ञानिक हॉर्नी स्वस्थ प्रेम को संयुक्त रूप से जिम्मेदारियाँ वहन करने और साथ-साथ कार्य करने का अवसर बताते हैं। उनके अनुसार प्रेम में निष्कपटता और दिल की गहराई बहुत जरूरी है।


मैस्लने स्वस्थ प्रेम के जिन लक्षणों की चर्चा की है वे गंभीर और प्रभावी है। वे कहते हैं सच्चा प्यार करने वालों में ईमानदारी से पेश आने की प्रवृत्ति होती है। वे अपने को खुलकर प्रकट कर सकते हैं। वे बचाव, बहाना, छुपाना या ध्यानाकर्षण जैसे शब्दों से दूर रहते हैं। मैस्लो ने कहा है स्वस्थ प्रेम करने वाले एक-दूसरे की निजता स्वीकार करते हैं। आर्थिक या शैक्षणिक कमियों, शारीरिक या बाह्य कमियों की उन्हें चिन्ता नहीं होती जितनी व्यावहारिक गुणों की।


मनोविज्ञान प्रेम को अत्यंत ऊँचाई पर ले जाकर देखता है। उसमें मामूली सी गिरावट या फिसलन को भी बर्दाश्त नहीं करता। सुप्रसिद्ध लेखिका अमृता प्रीतम ने एक जगह लिखा है -

जिसके साथ होकर भी तुम अकेले रह सको, वही साथ करने योग्य है। जिसके साथ होकर भी तुम्हारा अकेलापन दूषित ना हो। तुम्हारी तन्हाई, तुम्हारा एकान्त शुद्ध रहे। जो अकारण तुम्हारी तन्हाई में प्रवेश ना करे। जो तुम्हारी सीमाओं का आदर करे। जो तुम्हारे एकान्त पर आक्रामक ना हो। तुम बुलाओ तो पास आए। इतना ही पास आए जितना तुम बुलाओ। और जब तुम अपने भीतर उतर जाओ तो तुम्हें अकेला छोड़ दे।


webdunia
NDND
सच में प्यार तभी तक प्यार है जब तक उसकी शुद्धता, संवेगात्मक गहनता और विशालता कायम है। अशुद्ध, उथला, सतही, विकृतियों से ग्रस्त और संकुचित प्यार ना सिर्फ दो व्यक्तियों का क्षरणकारी है बल्कि भविष्य में दो जिन्दगियों के स्याह होने की वजह भी। क्या आप मानते हैं कि आज जब प्यार सिर्फ शारीरिक जरूरतों को पूरी करने का माध्यम बन गया है ऐसे में इसका मनोवैज्ञानिक पक्ष खुलकर सामने आना चाहिए।


क्योंकि सच सिर्फ यह नहीं है कि बाहर की गंदगी हमें विनष्ट कर रही है बल्कि सच यह भी है कि हमारे अपने भीतर बहुत कुछ ऐसा पैदा हो रहा है जो हमें, हमारे अस्तित्त्व को, हमारे मूल्यों को और सभ्यता को बर्बाद कर रहा है। निश्चय ही समाधान भी कहीं और से नहीं बल्कि हमारे ही अंतरतम से आएगा अगर ईमानदार कोशिश की जाए।


क्या वर्तमान में प्यार के वास्तविक मायने बदल गए हैं?

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi