यही तो प्रेम है।
प्रेम न लेना, न देना है।
प्रेम न शिकवा, न शिकायत है।
प्रेम न छोटा है, न बड़ा है।
प्रेम न तेरा है, न मेरा है।
प्रेम न अहम, न बड़प्पन है।
प्रेम में जो दिल के पास होता है।
उसकी महक आस-पास होती है।
उससे बात करने की तलब होती है।
उसे छूने का अहसास होता है।
उसकी हर कमी अच्छी लगती है।
उसकी हर बात विशेष होती है।
उसका हर सुख फूल का अहसास देता है।
उसका हर दु:ख शूल-सा हृदय बेधता है।
उसकी मुस्कान मन में हजारों बगीचे खिला देती है।
उसका तनाव जिस्म में हजारों कांटे चुभो देता है।
अगर ये सब किसी के लिए होता है तो समझो प्रेम है।
वर्ना सिर्फ जिस्म और अहंकार के आकर्षण में मन फंसा है।