च्यवन औषधि क्यों हुई प्रसिद्ध, पढ़ें च्यवन ऋषि की कथा

Webdunia
प्राचीनकाल की बात है, उस समय भारत में राजा शर्याति का शासन था। वे अत्यंत न्यायप्रिय, प्रजासेवक एवं कुशल प्रशासक थे। सद्गुणों का व्यापक प्रभाव राजा के पुत्रों पर भी पड़ा। उनके पुत्र और पुत्रियां अपने पिता के पदचिह्नों पर ही चल रहे थे। राजा शर्याति अपने पुत्रों को देखकर स्वयं प्रसन्न रहा करते थे।
एक दिन राजा शर्याति अपने पुत्र-पुत्रियों के साथ वन विहार के लिए निकले। राजा-रानी तो एक सरोवर के निकट विश्राम के लिए बैठ गए लेकिन उनके पुत्र-पुत्रियां परस्पर घूमते-टहलते दूर जा निकले।
 
असमय ही राजकुमारी सुकन्या ने मिट्टी के टीले में दो चमकदार मणियां देखीं। कुतूहलवश सुकन्या उस मणि के निकट आई। नजदीक देखने पर भी वह चमकती वस्तु को समझ न पाई। तब उसने सूखी लकड़ी की सहायता से दोनों चमकदार मणियों को निकालने का यत्न किया लेकिन मणि निकली नहीं, अपितु वहां से खून बहने लगा। 
 
मणि से खून टपकते देख सुकन्या और उसके भाई-बहन घबरा गए। वे सभी अपने पिता के पास आए और पूरी बात कह सुनाई।
 
महाराजा शर्याति अपनी पत्नी के साथ उस स्थान पर पहुंचे और देखते हुए दुखी मन से बोले- 'बेटी! तुमने बड़ा पाप कर डाला। यह च्यवन ऋषि हैं जिनकी तुमने आंख फोड़ दी है।'
 
यह सुनते ही सुकन्या रो पड़ी। उसका शरीर कांपने लगा। टूटते हुए स्वर में उसने कहा- 'मेरी जानकारी में नहीं था कि यह महर्षि बैठे हुए हैं। मैंने बड़ा अनर्थ कर डाला।' यह कहकर वह फिर से फूट-फूटकर रो पड़ी।
 
'हां पुत्री' तुमसे अपराध हो गया है। महर्षि च्यवन यहां पर तपस्या कर रहे थे। आंधी-तूफान और वर्षा के कारण इनके चारों तरफ मिट्टी का टीला बन गया है। इसी कारण तुम्हारी दृष्टि को दोष हो गया। मात्र दो आंखें चमकती हुई दिखाई दीं। अब क्या होगा?'
 
इतने में च्यवन ऋषि के कराहने का स्वर भी सुनाई दिया। कातर स्वर सुनकर सुकन्या ने तय किया- 'मैं इस पाप का प्रा‍यश्चित करके इस हानि की क्षतिपूर्ति करूंगी।'
 
'तुम्हारे प्रायश्चित से ऋषि की आंखें तो वापस नहीं आएंगी।' पिता राजा शर्याति ने कहा।
 
सुकन्या बोली- 'मैं इनकी आंखें बनूंगी।' 
 
'क्या कह रही हो बेटी?'
 
'मैं उचित कह रही हूं पिताजी। मैं ऋषिदेव की आंख ही बनूंगी। मैं मात्र भूल व क्षमा का बहाना बनाकर अपराध मुक्त नहीं होना चाहती। न्याय-नीति के समान अधिकार को स्वीकार कर चलने में ही मेरा व विश्व का कल्याण है, मैंने यही सब तो सीखा है। मैं च्यवन ऋषि से विवाह करूंगी और अपने जीवनपर्यंत उनकी आंख बनकर सेवा करूंगी।'
 
'लेकिन बेटी! यह तो अत्यंत जर्जर व कृशकाय शरीर के हैं और तू युवा।' राजा शर्याति ने कहा। 
 
सुकन्या बोली- 'पूज्य पिताजी! यहां पा‍त्रता और योग्यता का प्रश्न नहीं है। मुझे तो सहर्ष प्रा‍यश्चित करना है। मैं इस कार्य को धर्म समझकर तपस्या के माध्यम से आनंदपूर्वक पूर्ण करके रहूंगी। मुझे अपना आशीर्वाद प्रदान करें।'
 
बेटी सुकन्या की जिद के समक्ष राजा शर्याति की एक न चली। वे विवश थे अतएव विवाह की तैयारी में जुट गए। महर्षि च्यवन के साथ बेटी सुकन्या का पाणिग्रहण हुआ। सुकन्या की इस अद्भुत त्याग भावना को देखकर देवगण भी अत्यंत प्रसन्न हुए। सुकन्या की कम आयु को देखकर देवताओं ने च्यवन ऋषि को एक औषधि बताई, जिसे च्यवन ऋषि ने उपभोग किया और वे युवा हो गए। उस औषधि का नाम बाद में च्यवन हुआ जिसे आज लोग शक्ति, चेतना व स्वास्थ्य लाभ के लिए ग्रहण करते हैं।
 
प्रायश्चित व सेवाभावना के कारण सुकन्या का नाम च्यवन ऋषि ने 'मंगला' रख दिया। वह आज भी अपने गुणों के कारण नारी-जगत में वंदनीय व पूजनीय है।
 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

पढ़ाई में सफलता के दरवाजे खोल देगा ये रत्न, पहनने से पहले जानें ये जरूरी नियम

Yearly Horoscope 2025: नए वर्ष 2025 की सबसे शक्तिशाली राशि कौन सी है?

Astrology 2025: वर्ष 2025 में इन 4 राशियों का सितारा रहेगा बुलंदी पर, जानिए अचूक उपाय

बुध वृश्चिक में वक्री: 3 राशियों के बिगड़ जाएंगे आर्थिक हालात, नुकसान से बचकर रहें

ज्योतिष की नजर में क्यों है 2025 सबसे खतरनाक वर्ष?

सभी देखें

धर्म संसार

Weekly Horoscope: साप्ताहिक राशिफल 25 नवंबर से 1 दिसंबर 2024, जानें इस बार क्या है खास

Saptahik Panchang : नवंबर 2024 के अंतिम सप्ताह के शुभ मुहूर्त, जानें 25-01 दिसंबर 2024 तक

Aaj Ka Rashifal: 12 राशियों के लिए कैसा रहेगा आज का दिन, पढ़ें 24 नवंबर का राशिफल

24 नवंबर 2024 : आपका जन्मदिन

24 नवंबर 2024, रविवार के शुभ मुहूर्त

अगला लेख
More