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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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जानिए ऐसी जेल के बारे में

जहाँ के कोतवाल खुद शिव शंभु हैं

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श्रुति अग्रवाल

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आस्था और अंधविश्वास की हमारी इस कड़ी में हम आपको रूबरू करा रहे हैं एक जेल से, जेल के कैदियों से। आप कहेंगे जेल में ऐसी क्या खास बात है कि हमने इसे अपने आस्था और अंधविश्वास जैसे सैगमेंट में शामिल किया? जी खास बात तो है? यह जेल एक आम जेल न होकर महादेव की जेल है। इस जेल की सींखचों के पीछे सौ से भी ज्यादा लोग कैद हैं।

यह सुनकर हमने भी इस जेल का रुख करने का फैसला कर लिया। भोले बाबा की जेल मध्यप्रदेश-राजस्थान की सीमा पर मध्यप्रदेश के नीमच शहर के पास स्थित है। जब हम यहाँ पहुँचे तो हमने देखा कि सलाखों के पीछे कैदी बँधे हुए हैं। वे सभी बैरकों के भीतर ही भजन-कीर्तन गाते हुए झूम रहे थे। यहाँ पहुँचकर हमें पता चला कि हर कैदी को एक खास नंबर दिया जाता है।
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  इस अनूठी जेल को भोले की जेल कहा जाता है। यहाँ स्थित तिलसवां महादेव मंदिर के शिवलिंग को लोग स्वयंभू मानते हैं। यहाँ के लोगों का कहना है कि यह मंदिर लगभग दो हजार साल पुराना है। यहाँ शिवजी अपने पूरे परिवार के साथ विराजित हैं।      


कुछ कैदियों को तो यह कारावास भुगतते हुए सालभर से ऊपर हो गया है। कैदियों से संबंधित पूरी जानकारी यहाँ के दस्तावेजों में दर्ज की जाती है। जेल में हमें आदमी और औरत दोनों ही नजर आए। पता चला कि इनकी रिहाई भी जेलर के आदेश के बाद ही होती है। और यह जेलर कोई सामान्य इनसान न होकर प्रभु भोलेनाथ हैं।

इस अनूठी जेल को भोले की जेल कहा जाता है। यहाँ स्थित तिलसवां महादेव मंदिर के शिवलिंग को लोग स्वयंभू मानते हैं। यहाँ के लोगों का कहना है कि यह मंदिर लगभग दो हजार साल पुराना है। यहाँ शिवजी अपने पूरे परिवार के साथ विराजित हैं। मंदिर के ठीक सामने गंगाकुंड बना हुआ है।

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लोक मान्यता है कि यहीं से गंगा नदी का उद्‍गम हुआ था। लोगों की मान्यता है कि इस कुंड की मिट्टी असाध्य रोगों को ठीक कर सकती है, लेकिन इसके लिए यहाँ के नीति-नियम मानना होते हैं। भोले की जेल में कैदी बनकर रहना होता है। इसके पीछे लोगों का यह मानना है कि उनके पाप ही उनकी बीमारी का कारण हैं। वे जेल में रहकर प्रायश्चित करते हैं। जब उनके पाप कट जाते हैं तब भोलेनाथ उन्हें स्वस्थ कर देते हैं।

अपनी बीमारियों से निजात पाने के लिए सबसे पहले रोगी (वैसे यहाँ कैद अधिकांश लोग हमें मानसिक बीमारियों से पीड़ित लगे) मंदिर प्रशासन को एक आवेदन देता है। आवेदन स्वीकार किए जाने के बाद उन्हें कैदी नंबर दिया जाता है। साथ ही किस बैरक में रहना होगा, यह बताया जाता है। आवेदन स्वीकार करने के बाद कैदी के खाने-पीने का खर्च मंदिर प्रशासन ही वहन करता है। कैदी को यहाँ नियमित रूप से कुंड की मिट्टी से स्नान करना होता है फिर सिर पर पत्थर रख मंदिर की पाँच परिक्रमा लगाना होती है।
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मंदिर की साफ-सफाई का काम भी इन कैदियों के बीच ही बँटा होता है। इसी तरह दिन, महीने और साल बीत जाते हैं। कैदी को रिहाई तब ही दी जाती है, जब भोलेनाथ कैदी को स्वप्न में दर्शन देकर ठीक होने की बात कहते हैं। यही स्वप्न मंदिर प्रशासन को भी आता है। स्वप्न सुनने के बाद ही मंदिर प्रशासन कैदी को आजाद करने से संबंधित दस्तावेज बनाता है। तब जाकर कैदी को रिहा किया जाता है।

हमें यह पूरी प्रक्रिया बेहद अजीब लगी। कुछ कैदियों को देखकर लगा कि इन्हें मानसिक चिकित्सा की आवश्यकता है, लेकिन यहाँ आए कई लोगों ने दावा किया कि उनका परिचित या संबंधी इस जेल से ठीक होकर गया है। तब हमें भी लगा कि जहाँ आस्था होती है वहाँ शक की गुंजाइश नहीं होती। आप इस संबंध में क्या सोचते हैं? हमें बताइएगा।

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