हर रविवार इनके दर पर इलाज करवाने के लिए लोगों का ताँता लगा रहता है। बूढ़े हों या जवान, यहाँ तक िक नवजात भी, हर एक को यहाँ चाचवे लगाए जाते हैं। अंबाराम का दावा है कि तकलीफ की जगह चाचवे लगाने से मरीज को दर्द नहीं होता... लेकिन बुजुर्गों की चीख और बच्चों का करुण रुदन उनके इस दावे को सिरे से खारिज कर रहा था।
जब हमने रधिया नामक एक दुधमुँहे की माँ को अपने बालक को चाचवे लगवाने से रोकना चाहा तो उसने हमें पलटकर जवाब दिया “इसे बार-बार दस्त लग रहे हैं, अगर चाचवा नहीं लगवाया तो मर जाएगा। हमें पता है हम क्या कर रहे हैं।
लेकिन अंबाराम और उन पर विश्वास करने वाले लोगों को इस बात की चिंता नहीं थी.. उन्हें विश्वास था कि चाचवे लगवाने के बाद वे ठीक हो जाएँगे... जब हमने रधिया नामक एक दुधमुँहे की माँ को अपने बालक को चाचवे लगवाने से रोकना चाहा तो उसने हमें पलटकर जवाब दिया “इसे बार-बार दस्त लग रहे हैं, अगर चाचवा नहीं लगवाया तो मर जाएगा। हमें पता है हम क्या कर रहे हैं । ” यह कहने के बाद उसने मुन्ना को भी पाँच चाचवे लगवा दिए।
जब इस बाबद हमने डॉक्टर से बात की तो उन्होंने कहा, इस तरह के इलाज किसी काम के नहीं होते। यह सिर्फ रोगियों का मानसिक भ्रम ही दूर कर सकते हैं, बीमारी नहीं। बल्कि इस तरह के अस्वास्थ्यकर तरीके आजमाने से रोगी को संक्रमण का खतरा हो सकता है।
Shruti Agrawal
WD
अपने अनुभव सुनाते हुए बाल रोग विशेषज्ञ डॉक्टर अशोक सोनी ने वेबदुनिया को बताया एक बार मेरे पास माता-पिता एक चार माह के बालक को लेकर आए थे। बच्चे की नाभि के पास एक जख्म था, जो पक चुका था। जोर डालने पर माता-पिता ने बताया कि बच्चे की नाल नहीं सूखी थी, इसलिए बाबा से दाग (चाचवा) लगवाया था, लेकिन अब वहाँ जख्म बन गया है।
उसके बाद लगभग महीने भर बच्चे की रोज मरहम-पट्टी की। तब जाकर वह घाव सूखा.. यदि माता-पिता थोड़ी लापरवाही और करते तो बच्चे को जान का खतरा हो सकता था। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ. सोनी कहते हैं, अकसर लोग अज्ञानता और समाज में फैले भ्रम के कारण नीम-हकीम बाबाओं के चक्कर में पड़ जाते हैं और पैसा और स्वास्थ्य दोनों गँवाते हैं। इन नीम-हकीमी नुस्खों के कारण कई बार लोगों की जान पर भी बन आती है।