आस्था का अंधा ज्वार

शक्ति पूजा में भक्तों ने काटी जीभ, देवी को चढ़ाया रक्त

श्रुति अग्रवाल
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आस्थ ा के उन्माद में व्यक्ति क्या कुछ नहीं कर गुजरता। इस बार आस्था और अंधविश्वास की अपनी विशेष प्रस्तुति में हम आपको दिखा रहे हैं शक्ति पूजा। खासकर नवरात्र के मौके पर श्रद्धालुओं का उन्माद। इस ज्वार में भक्त कभी स्वयं के शरीर को तकलीफ पहुँचाकर देवी को प्रसन्न करने की कोशिश करते हैं तो कभी ‘देवी आन ा ’ यह मानकर अजीब हरकतें करते हैं।

वहाँ के मुख्य पुजारी जलता कपूर अपने मुख में रखकर तलवार हाथ में लिए भक्तों के बीच कूद रहे थे। यहाँ आए श्रद्धालु उन्हें देवीस्वरूप मान उनकी पूजा कर रहे थे।
यूँ तो शक्ति पूजा में उन्माद का नजारा बेहद आम रहता है, लेकिन नवरात्र के समय उन्माद का यह ज्वार अपनी हर सीमा पार कर जाता है। गली-गली में बने दुर्गा मंदिर के बाहर लोग पागलों की तरह झूमते-नाचते नजर आते हैं। इन लोगों का न तो अपने शरीर पर काबू रहता है न ही दिमाग पर।

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सबसे पहले हमने रुख किया इंदौर के एक दुर्गा मंदिर का। कहा जाता है कि यहाँ के पुजारी को दुर्गाजी की सवारी आती है। जब हम वहाँ गए तो वहाँ का मंजर देखकर चौंक गए। वहाँ कई लोग अजीब तरह से झूम रहे थे। वहाँ के मुख्य पुजारी जलता कपूर अपने मुख में रखकर तलवार हाथ में लिए भक्तों के बीच कूद रहे थे। यहाँ आए श्रद्धालु उन्हें देवीस्वरूप मान उनकी पूजा कर रहे थे। साथ ही साथ कई अन्य भक्त भी पागलों की तरह झूम रहे थे। इनमें से कुछ लोग बड़े व्यवसायी यहाँ तक कि सरकारी मुलाजिम भी थे। वहीं भक्तों की तादाद में भी हर वर्ग के लोग शामिल थे।

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जब हमने पुजारी सुरेश बाबा से बातचीत की तो उन्होंने बताया कि सालों से उन्हें माँ की सवारी आती है। यह वरदान उन्हें ओंकारेश्वर में स्नान के दौरान मिला। सवारी के समय उनके दर पर आने वाला कोई भी व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाता। यहाँ आकर उनकी हर मुराद पूरी होती है।

यहाँ से निकलकर हमने रुख किया धार रोड पर बने कुछ गाँवों का। गाँव के पास बने तालाब में लोगों की शक्ति पूजा देख कोई भी डर जाए। कुछ महिलाएँ भावुक हो अपनी जीभ पर तलवार फिरा रही थीं। लोग तरह-तरह से अपने जिस्म को तकलीफें दे रहे थे।

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इसके साथ ही मध्यप्रदेश के कई शहरों में हमें ऐसे ही नजारे देखने को मिले। कहीं कोई खुद को दुर्गा का अवतार कह रहा था, तो कहीं कोई काली का स्वरूप धरे थी। शक्ति पूजा का यह आलम धीरे-धीरे भयावह रूप अख्तियार करता जा रहा था। अजीब तरह से झूमते लोगों ने देवी को अपना रक्त चढ़ाना शुरू कर दिया था।

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जी हाँ, यहाँ हम बात कर रहे हैं आंत्री माता मंदिर की। नीमच से लगभग साठ किलोमीटर दूर इस मंदिर में मान्यता है कि जो व्यक्ति माँ के दर पर जीभ चढ़ाता है, उसकी हर मनोकामना पूरी होती है। यहाँ के पुजारी का कहना है कि माता के दर पर अभी तक सैकड़ों लोग अपनी जीभ चढ़ा चुके हैं।

यहाँ जीभ चढ़ा रहे मनोहर स्वरूप के भाई ने हमें बताया कि शादी के बारह साल बाद भी मनोहर के घर किलकारी नहीं गूँजी। मनोहर ने आंत्री माँ के दर पर मन्नत माँगी थी कि यदि उसकी पत्नी की गोद भर जाए तो वह यहाँ अपनी जीभ चढ़ाएगा। माँ ने मनोहर की मनोकामना पूरी कर दी, इसलिए वो यहाँ जीभ चढ़ाने आया है।

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और हमारे देखते ही देखते मनोहर ने अपनी जीभ काटकर देवी को चढ़ा दी। मनोहर यहाँ अकेला नहीं था, उसकी तरह कई लोगों ने माँ को अपनी जीभ चढ़ाई। यहाँ की मान्यता है कि जीभ चढ़ाने के बाद भक्त को मंदिर में ही रुकना होता है। आठ से दस दिन मंदिर में बिताने के बाद भक्त की जीभ वापस आ जाती है। पहले यहाँ जीभ चढ़ाने वाले प्रभात देव ने भी हमारे सामने दावा किया कि माँ की कृपा से दस दिन में ही उनकी जीभ ठीक हो गई।

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जीभ चढ़ाने का यह मंजर हमें अंदर तक हिला गया। क्या माँ को प्रसन्न करने के लिए बच्चों को अपने शरीर को कष्ट देना पड़ता है? क्या ऐसे ही माँ उनकी मुराद पूरी करती है? पागलों की तरह झूमते लोगों के अदंर क्या सचमुच कोई दैवीय शक्ति प्रवेश करती है? इन सब बातों का जवाब हमारे पास नहीं था। हमारे सामने पसरा था तो भक्तों का उन्माद। ऐसा उन्माद जिसे देखकर व्यक्त करना बेहद मुश्किल है।
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