माघ मास 2022: कल्पवास क्या होता है, जानिए कल्पवास से जुड़ी मान्यताएं

Webdunia
मंगलवार, 18 जनवरी 2022 (14:21 IST)
कुंभ, अर्धकुंभ, महाकुंभ, सिंहस्थ और पूस एवं माघ माह की पूर्णिमा को नदी किनारे कल्पवास करने का विधान है। हर माघ माह में प्रयाग में मेला लगता है और हर तीसरे माह में कुंभ का आयोजन होता है। माघ माह में कल्पवास का खासा महत्व होता है। कल्पवास पौष माह के 11वें दिन से माघ माह के 12वें दिन तक रहता है। कल्पवास करने से आध्यात्मिक और सांसारिक उन्नति होती है। कल्पवास क्या है और इससे जुड़ी क्या मान्यताएं हैं आओ जानते हैं सबकुछ।
 
 
1. क्या है कल्पवास : कल्पवास का अर्थ है संगम के तट पर कुछ विशेष काल के लिए निवास करके सत्संग और स्वाध्याय करना। प्राचीनकाल में तीर्थराज प्रयागराज में घना जंगल हुआ करता था। यहां सिर्फ भारद्वाज ऋषि का आश्रम ही हुआ करता था। भगवान ब्रह्मा ने यहां यज्ञ किया था। उस काल से लेकर अब तक ऋषियों की इस तपोभूमि पर कुंभ और माघ माह में साधुओं सहित गृहस्थों के लिए कल्पवास की परंपरा चली आ रही है। ऋषि और मुनियों का तो संपूर्ण वर्ष ही कल्पवास रहता है, लेकिन उन्होंने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा। उनके अनुसार इस दौरान गृहस्थों को अल्पकाल के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती थी।
 
कल्पवास से जुड़ी मान्यताएं :
 
1. कल्पवास के माध्यम से व्यक्ति धर्म, अध्यात्म और खुद की आत्मा से जुड़ता है।
 
2. कल्पवास के दौरान शिक्षा और दीक्षा से ग्रहस्थों का जीवन सरल बनता है और वे जीवन की हर कठिनाइयों का समाधान खोज पाते हैं।
3. जो भी गृहस्थ कल्पवास का संकल्प लेकर ऋषियों की या खुद की बनाई पर्ण कुटी में रहता है वह एक ही बार भोजन करता है तथा मानसिक रूप से धैर्य, अहिंसा और भक्तिभावपूर्ण रहा जाता है। इससे जीवन में अनुशासन और जिम्मेदारी का भाव विकसित होता है।
 
4. पद्म पुराण में इसका उल्लेख मिलता है कि संगम तट पर वास करने वाले को सदाचारी, शान्त मन वाला तथा जितेन्द्रिय होना चाहिए। इससे वह बहुत पुण्य के साथ ही प्रभु की कृपा भी प्राप्त करता है। 
 
5. कल्पवासी के मुख्य कार्य है:- 1.तप, 2.होम और 3.दान। तीनों से ही आत्म विकास होता है। 
 
6. ऐसी मान्यता है कि जो कल्पवास की प्रतिज्ञा करता है वह अगले जन्म में राजा के रूप में जन्म लेता है लेकिन जो मोक्ष की अभिलाषा लेकर कल्पवास करता है उसे अवश्य मोक्ष मिलता है।-मत्स्यपु 106/40 
 
7. यहां झोपड़ियों (पर्ण कुटी) में रहने वालों की दिनचर्या सुबह गंगा-स्नान के बाद संध्यावंदन से प्रारंभ होती है और देर रात तक प्रवचन और भजन-कीर्तन जैसे आध्यात्मिक कार्यों के साथ समाप्त होती है। इससे मन और चित्त निर्मल हो जाता है और व्यक्ति के सारे सांसारिक तनाव हट जाते हैं जिसके चलते वह ग्रहस्थी में नए उत्साह के साथ पुन: प्रवेश करता है। 
 
8. इस दौरान साधु संतों के सात ही कहते हैं कि देवी और देवता भी स्नान करने धरती पर आते हैं। हिमालय की कई विभूतियां भी यहां उपस्थिति रहती हैं। ऐसे आध्यात्मि माहौल में रहकर व्यक्ति खुद का धन्य पाता है।
 
9. कल्पवास में नियम से रहता से सभी प्रकार के रोग और शोक मिट जाते हैं। जिसके चलते व्यक्ति लंबी आयु पाता है। 
 
10. माना जाता है कि इस समय गंगा समेत पवित्र नदियों की धारा में अमृत प्रवाहित होता है। इस मौके पर स्नान करने से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और शरीर में एंटीबॉडीज का निर्माण भी होता है। यह एक प्रकार से कुदरती टीकाकरण है। जो हर तीन साल में लगता है क्योंकि कुंभ चारों नगरी में से कहीं ना कहीं हर तीन साल में आयोजित होता है। माघ माह में आयोजित होने वाला कुंभ बहुत ही महत्व का होता है।

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