कोलकाता। गुजरे जमाने की अभिनेत्री शर्मिला टैगोर ने लैंगिक समानता की वकालत की है और कहा है कि माता-पिता को समझना चाहिए कि लड़की किसी भी मायने में लड़के से कमतर नहीं होतीं। 11वें वैश्विक चिकित्सक शिखर सम्मेलन में कल यहां 70 के दशक की अभिनेत्री ने कहा कि लड़कियों को बराबर महत्व दिया जाना चाहिए।
चिकित्सक सम्मेलन में लैंगिक मुद्दे पर एक अलग सत्र में शर्मिला ने कहा कि माता-पिता को कहा जाना चाहिए कि अगर वे शिक्षा में निवेश करते हैं और लड़की का सही से पालन-पोषण करते हैं तो वह भी परिवार और समाज के लिए योगदान देगी।
अमर प्रेम’ की अभिनेत्री ने कहा कि जब तक लोग अपनी मानसिकता नहीं बदलते तब तक कुछ नहीं बदलेगा। उन्होंने लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए कार्यक्रमों में आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल करने की मांग की। उन्होंने कहा कि हमें मूल कारण को देखना होगा।
केवल सरकार की पहल पर निर्भर करने से कुछ नहीं होगा, हमें घरेलू स्तर पर व्यवहार बदलने का प्रयास करना चाहिए। यह पूछने पर कि क्या उन्हें लैंगिक भेदभाव का शिकार होना पड़ा था तो शर्मिला ने कहा कि मेरा पालन-पोषण बंगाली परिवार में हुआ।
हम तीन लड़कियां थीं और हमने कभी खुद को लड़कों से कम नहीं माना। 73 वर्षीय अभिनेत्री ने कहा कि बहरहाल, जब उन्होंने 1959 में सत्यजीत राय की फिल्म ‘अपुर संसार’ से अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की तो स्कूल ने इसका विरोध किया और उन्हें अपना स्कूल छोड़ना पड़ा।
उन्होंने कहा कि लेकिन मेरे अभिभावकों ने फिल्मों में काम करने को लेकर कोई आपत्ति नहीं की। साथ ही 1969 में जब मेरी शादी हुई (मंसूर अली खान पटौदी से) तब भी मेरे लिए कोई दरवाजा बंद नहीं हुआ। तब मुझे कोई बाधा नहीं आई।
उन्होंने बताया कि उनकी दादी की शादी पांच वर्ष की उम्र में हुई थी और उनके नौ बच्चे थे। उन्होंने कहा कि उनकी मां को भी सह-शिक्षा वाले संस्थान में नहीं जाने दिया गया और उन्हें परास्नातक की डिग्री प्राइवेट से लेनी पड़ी थी। शर्मिला ने उम्मीद जताई कि वर्तमान पीढ़ी ज्ञान और शिक्षा के साथ लैंगिक भेदभाव को मिटाने में सफल होगी, लड़कियां नई ऊंचाइयां छुएंगी और हर क्षेत्र में अपना मुकाम हासिल करेंगी। (भाषा)