प्रतिबंध और कर्फ्यू से कश्मीर के छात्रों का नुकसान

सुरेश एस डुग्गर
रविवार, 23 अप्रैल 2017 (21:33 IST)
श्रीनगर। यह अब सच साबित होने लगा है कि कश्मीर में सुरक्षा एजेंसियों द्वारा 2016 की गर्मियों में लगाए जाने वाले प्रतिबंध और कर्फ्यू ने कश्मीर में शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था। दूसरे शब्दों में कहें तो इसने शिक्षा की वाट लगा दी है। यह खुलासा एक सर्वेक्षण जिसका नाम है- कश्मीर में शिक्षा और अशांति- ने किया है।
 
यह सर्वेक्षण एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) - चिनार इंटरनेशनल द्वारा गुरुवार को प्रबंधन संस्थान, लोक प्रशासन (आईएमपीए) में जारी किया गया था। अनुसंधान रिपोर्ट के अनुसार 2016 में गर्मियों में अशांति के दौरान कश्मीर में सरकारी अधिकारियों द्वारा लगाए गए प्रतिबंध और कर्फ्यू ने 67 प्रतिशत छात्रों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव डाला।
 
हालांकि केवल 9 प्रतिशत छात्रों के बकौल पत्थरबाजी और 22 प्रतिशत के मुताबिक हड़तालों के कारण उनकी शिक्षा प्रभावित हुई है। कश्मीर के सभी 10 जिलों में छात्रों से प्रतिक्रिया मिलने के बाद इस अध्ययन को संकलित किया गया है जिसमें 2000 से अधिक छात्रों और 500 से अधिक माता-पिता की भागीदारी देखी गई थी।
 
सार्वजनिक परामर्श के लिए चिनार इंटरनेशनल द्वारा जारी किए गए अध्ययन के मुताबिक लगभग 41.7 प्रतिशतछात्रों ने कहा कि उन्होंने अपने राजनीतिक मुद्दों की खातिर हड़ताल की थी, जबकि 19.9 प्रतिशत ने कहा कि उन्होंने कश्मीर में बहुमत के फैसले का पालन करने के लिए हड़ताल की है।
 
दिलचस्प बात यह है कि 2016 में कश्मीर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे और 5 जुलाई को हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की सुरक्षाबलों के हाथों हुई मौत के बाद लगभग पांच महीनों तक स्कूल बंद रहे थे। इन पांच महीनों के दौरान स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों सहित सभी शैक्षणिक संस्थानों में लंबे समय तक शटडाउन रहा और संघर्ष चलता रहा था।
 
सरकार ने पिछले साल नवंबर के मध्य से स्कूल शिक्षा बोर्ड (बीओईई) द्वारा कक्षा 10वीं और 12वीं के छात्रों के लिए वार्षिक परीक्षा आयोजित करने का निर्णय लेने के बाद सामान्य बहाल कर लेने का दावा किया था, लेकिन ताजा हिंसा एक बार फिर स्कूली शिक्षा की बलि ले रही है। पिछले आठ दिनों से कश्मीर के सभी स्कूल-कॉलेज बंद हैं। नतीजतन हर प्रकार की हिंसा का शिकार शिक्षा ही हो रही है और उससे छात्र बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं।
 
इस बीच अध्ययन के अनुसार 63.4 प्रतिशत छात्रों ने कहा कि वे शैक्षणिक संस्थानों में लंबे समय की छुट्टियां खत्म होने के बाद स्कूलों में लौटने पर वे बहुत खुश थे, लेकिन ताजा हिंसा से स्कूल कालेज बंद होने से उन्हें फिर से निराशा हुई है।
 
शोध के दौरान किए गए सर्वेक्षण के अनुसार पत्थरबाजी की रूपरेखा के अनुसार 72.7 युवाओं ने कहा कि सभी पृष्ठभूमि से युवाओं ने पत्थरबाजी में भाग लिया। सर्वेक्षण की प्रतिक्रिया में अभिभावकों को भी शामिल किया गया था जिसके अनुसार 65.4 प्रतिशत माता-पिता ने कहा कि पत्थरबाजी उनके बच्चे भी शामिल थे।
 
अध्ययन में यह भी बताया गया है कि अशांति के दौरान 15 प्रतिशत छात्रों ने कई इलाकों में सामुदायिक विद्यालय में भाग लिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016 के अशांति के दौरान सामुदायिक विद्यालयों को वैकल्पिक व्यवस्था के रूप में उभारने की कोशिश की गई थी लेकिन छात्रों की व्यापक संख्या को देखते हुए यह व्यवस्था पर्याप्त नहीं थीं।
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