पुणे। चिलचिलाती गर्मी के बाद मानसून का मौसम आमतौर पर राहत लेकर आता है लेकिन इस बार पश्चिमी महाराष्ट्र में बारिश ने बहुत तबाही मचाई। वर्षाजनित हादसों में यहां 80 से अधिक लोगों ने जान गंवा दी और लाखों लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
अगस्त और सितंबर के महीने में सांगली, कोल्हापुर, पुणे और सतारा समेत पश्चिमी महाराष्ट्र के कई जिलों में बाढ़ आई और फसलों को बहुत नुकसान पहुंचा। कोल्हापुर और सांगली की 55 से अधिक तहसीलें बारिश से बुरी तरह प्रभावित हुईं।
बारिश और बाढ़ के कारण कई गांवों में जगह-जगह फंसे लोगों को निकालने के लिए राष्ट्रीय आपदामोचन बल और सेना को आना पड़ा। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक पुणे संभाग में बाढ़ और बारिशजनित घटनाओं में करीब 62 लोग मारे गए। इनमें से 17 लोगों की मौत 8 अगस्त को सांगली के एक गांव में नौका डूबने से हुई।
पुणे के संभागीय आयुक्त के कार्यालय के एक अधिकारी ने बताया कि अगस्त में सांगली और कोल्हापुर में 7 से 8 लाख लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया। इसमें 105 बचाव दल, 200 नौकाओं और 2 हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल हुआ।
अधिकारी ने बताया कि बाढ़ के कारण संभाग में 4.89 लाख हैक्टेयर की कृषि भूमि में लगी फसलों को नुकसान पहुंचा। इससे 8.73 लाख किसान प्रभावित हुए। सितंबर में पुणे में हुई भारी बारिश के कारण बाढ़ आ गई। इसमें 20 से अधिक लोगों की जान चली गई। एक अधिकारी ने बताया कि पानी के बहाव पर अवैध निर्माण भारी बारिश के बाद आई समस्याओं का मुख्य कारण है।
पुणे के पर्यावरणविद सारंग यड़वाड़कर ने अगस्त में बाढ़ के कारण आई समस्याओं का ठीकरा राज्य सरकार पर फोड़ते हुए आरोप लगाया कि निर्माण क्षेत्र को फायदा पहुंचाने के लिए कोल्हापुर में पंचगंगा नदी की बाढ़ रेखा का पुन: निर्धारण किया गया। महाराष्ट्र के भाजपा प्रमुख चंद्रकांत पाटिल ने इस आरोप से इंकार किया।
यड़वाड़कर ने गुरुवार को कहा कि ऐसी सभी घटनाओं के मूल कारण में जाने की जरूरत है। बाढ़, आग लगने की घटनाएं, यातायात जाम, प्रदूषण जैसी घटनाओं के मूल कारण को देखना होगा। उन्होंने कहा कि शहरों की आबादी वहन करने की क्षमता की पहचान करनी होगी। 'विकास' और 'घातक विकास' के बीच अंतर करने की जरूरत है।
यड़वाड़कर ने कहा कि रोजगार की तलाश में गांवों से बड़ी संख्या में लोग शहरों का रुख कर रहे हैं, इस वजह से शहर का विकास योजनाबद्ध तरीके से नहीं हो पा रहा है।