असम सरकार ने सभी सरकारी मदरसों को बंद करने वाला विधेयक किया पेश

Webdunia
मंगलवार, 29 दिसंबर 2020 (00:08 IST)
गुवाहाटी। असम सरकार ने अगले साल 1 अप्रैल 2021 से राज्य में सभी सरकारी मदरसों को बंद करने और उन्हें स्कूलों में बदलने संबंधी एक विधेयक सोमवार को विधानसभा में पेश किया। विपक्ष की आपत्ति के बावजूद शिक्षामंत्री हेमंत बिस्व सरमा ने विधानसभा के 3 दिवसीय शीतकालीन सत्र के पहले दिन असम निरसन विधेयक, 2020 को पेश किया।
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विधेयक में 2 मौजूदों कानूनों असम मदरसा शिक्षा (प्रांतीयकरण) कानून, 1995 और असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवा का प्रांतीयकरण और मदरसा शिक्षण संस्थानों का पुनर्गठन) कानून, 2018 को निरस्त करने का प्रस्ताव दिया गया है। शर्मा ने कहा कि विधेयक निजी मदरसे पर नियंत्रण और उनको बंद करने के लिए नहीं है। उन्होंने कहा कि विधेयक के लक्ष्यों और उद्देश्यों के बयान में 'निजी' शब्द गलती से शामिल हो गया।
 
असम मंत्रिमंडल ने 13 दिसंबर को सभी मदरसे और संस्कृत स्कूलों को बंद करने के एक प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। विधानसभा में लाए गए विधेयक में संस्कृत स्कूलों के बारे में कुछ नहीं कहा गया है और शिक्षामंत्री ने भी इस बारे में उल्लेख नहीं किया। उन्होंने कहा कि सभी मदरसे उच्च प्राथमिक, उच्च और माध्यमिक स्कूलों में बदले जाएंगे और शिक्षक तथा गैर शिक्षण कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों में कोई बदलाव नहीं होगा।
 
मंत्री ने पूर्व में कहा था कि असम में सरकार संचालित 610 मदरसे हैं और सरकार हर साल उन पर 260 करोड़ रुपए खर्च करती है। अप्रैल 2018 में शिक्षामंत्री ने असम मदरसा शिक्षा (कर्मचारियों की सेवा का प्रांतीयकरण और मदरसा शिक्षण संस्थानों का पुनर्गठन) कानून, 2018 लागू कर कई निजी मदरसे को सरकार के दायरे में लाया था।
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शर्मा ने जैसे ही विधेयक लाने की अनुमति मांगी कांग्रेस और एआईयूडीएफ सदस्यों ने प्रस्तावित कानून पर आपत्ति जताई। कांग्रेस के विधायक नुरुल हुदा ने कहा कि मदरसा में अरबी भाषा के अलावा अन्य विषयों की शिक्षा दी जाती है और किसी भाषा की पढ़ाई करने को सांप्रदायिक नहीं बताया जा सकता।
 
कांग्रेस के एक और सदस्य कमालख्या डे पुरकायस्थ ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मदरसों के आधुनिकीकरण का सुझाव दिया था,इसे बंद करने के लिए नहीं कहा था। सभी आपत्तियों को खारिज करते हुए शिक्षामंत्री ने कहा कि वे कुरान, गीता, बाइबिल जैसी आध्यात्मिक शिक्षा में विश्वास रखते हैं लेकिन प्रस्तावित विधेयक ऐसी शिक्षा को रोकने से संबंधित नहीं है।
 
उन्होंने कहा कि मदरसा में दर्शन को एक विषय के तौर पर पढ़ाया जाता है। अगर अरबी की ही पढ़ाई हो तो कोई मुद्दा नहीं है। लेकिन सरकार के नाते हम सार्वजनिक धन पर कुरान की पढ़ाई की अनुमति नहीं दे सकते। कल हिन्दू, ईसाई, सिख, जैन और अन्य लोग अपनी धार्मिक किताबों की पढ़ाई के लिए आ जाएंगे।
 
उन्होंने कहा कि कई इस्लामी विद्वानों ने कुरान की पढ़ाई के लिए सरकारी समर्थन का विरोध किया है। यह गलत परंपरा थी और हम इसे खत्म करना चाहते थे। विधानसभा अध्यक्ष हितेंद्रनाथ गोस्वामी ने विधेयक पेश करने की अनुमति दी तो विपक्ष ने हंगामा किया और सदन के भीतर नारेबाजी की। हालांकि अध्यक्ष ने उनसे बुधवार को विधेयक पर चर्चा में हिस्सा लेने को कहा जिसके बाद कांग्रेस और एआईयूडीएफ सदस्य शांत हो गए। (भाषा)

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