पौराणिक कथा है कि एक बार देव व दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव हावी होते नजर आने लगे। भगवान इंद्र घबराकर गुरु बृहस्पति के पास गए और अपनी व्यथा सुनाने लगे। इंद्र की पत्नी इंद्राणी यह सब सुन रही थी। उन्होने एक रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र कर अपने पति की कलाई पर बांध दिया। वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था।
प्रसन्नता और विजय इंद्र को इस युद्ध में विजय प्राप्त हुई। तभी से विश्वास है कि इंद्र को विजय इस रेशमी धागा पहनने से मिली थी। उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन यह धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है। यह धागा ऐश्वर्य, धन, शक्ति, प्रसन्नता और विजय देने में पूरी तरह सक्षम माना जाता है।
विधि-विधान पूर्णिमा के दिन प्रातः काल हनुमान जी व पित्तरों को स्मरण व चरण स्पर्श कर जल, रोली, मौली, धूप, फूल, चावल, प्रसाद, नारियल, राखी, दक्षिणा आदि चढ़ाकर दीपक जलाना चाहिए। भोजन के पहले घर के सब पुरुष व स्त्रियां राखी बांधे। बहनें अपने भाई को राखी बांधकर तिलक करें व गोला नारियल दें। भाई बहन को प्रसन्न करने के लिए रुपये अथवा यथाशक्ति उपहार दें। राखी में रक्षा सूत्र अवश्य बांधें।