सभी तीर्थों में प्रयागराज को क्यों कहा गया तीर्थराज, जानिए रहस्य

अनिरुद्ध जोशी
प्रयाग को तीर्थराज कहा गया है। इस सप्त‍पुरियों का पति कहा गया है जबकि उसके नजदीक काशी को उसकी सबसे प्रमुख पटरानी माना जाता है। पुराणों में कहा गया है कि अयोध्या, मथुरा, मायापुरी, काशी, कांची, अवंतिका (उज्जैन) और द्वारकापुरी, मोक्ष देने वाली हैं। इन्हें मोक्ष देने का अधिकार तीर्थराज प्रयाग ने ही दिया है।
 
 
प्रयाग तीर्थों के नायक हैं, तीर्थों के राजा हैं और मोक्ष देने वाली सातों पुरियां उनकी रानियां हैं। इनमें पटरानी का गौरव काशी को प्राप्त है। काशी तीर्थराज को सबसे ज्यादा प्रिय है। प्रयाग ने उन्हें मुक्ति देने का अबाध और अनंत अधिकार सौंप रखा है। पुराणकाल में उनके लिए कहा है- मुक्तिदाने नियुक्ता। वे मुक्ति देने के लिए नियुक्त की गई हैं।
 
 
#
महाभारत के एक प्रसंग में मार्कंडेय ऋषि धर्मराज युधिष्ठिर से कहते हैं कि राजन्‌ प्रयाग तीर्थ सब पापों को नाश करने वाला है। जो भी व्यक्ति प्रयाग में एक महीना, इंद्रियों को वश में करके स्नान-ध्यान और कल्पवास करता है, उसके लिए स्वर्ग का स्थान सुरक्षित हो जाता है। इसी तरह शताध्यायी के संदर्भों में त्रिवेणी और प्रयाग- अनेक पौराणिक आख्यानों के अनुसार प्रयाग को तीर्थराज के रूप में महिमामण्डित किया गया है। तीर्थराज प्रयाग में सभी तीर्थों और क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करने वाले मठ और आश्रम हैं।
 
 
गंगा-यमुना के बीच विभेद और समन्वय-भावना- जब प्रयाग में आकर भगीरथी (गंगा) यमुना में मिली तो गंगा से पुरातन नदी होकर भी यमुना ने गंगा को अर्ध्य प्रदान किया। तीनों स्थानों पर गंगा दुर्लभ- मायापुरी (हरिद्वार) भी प्रयाग की तरह शैव और वैष्णवों का संगम स्थल है। गौतमी गंगा- इन तीन तीर्थों का अंतरसंबंध गंगा की पुण्यगरिमा से प्रमाणित होता है।
 
 
#
त्रिदेवों की पुण्यस्थली तीर्थराज प्रयाग को पुराणों में विष्णुप्रजापति और हरिहर क्षेत्र कहा गया है। सृष्टि रचना से पहले यहीं प्रजापिता ब्रह्मा ने दशाश्वमेध यज्ञ किया था। तीर्थराज प्रयाग की श्रेष्ठता के संबंध में पुराणों में अनेक कथाएं मिलती हैं।
 
 
एक कथा के अनुसार शेष भगवान के निर्देश से ब्रह्मा ने सभी तीर्थों की पुण्य गरिमा को तराजू पर तौला था। फिर इन सभी तीर्थों, सात समुद्रों सात महाद्वीपों को तराजू के एक पलड़े पर रखा गया। दूसरे पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग को रखा गया तो बाकी तीर्थों वाला पलड़ा ध्रुवमण्डल को छूने लगा, लेकिन जिस पलड़े पर तीर्थराज प्रयाग थे, उसने धरती नहीं छोड़ी।
 
 
इस पौराणिक उल्लेख के जरिये तीर्थराज प्रयाग की श्रेष्ठता सिद्ध करने का प्रयास किया गया है। कहा गया है ब्रह्माण्ड से जगत की उत्पत्ति होती है, जगत से ब्रह्माण्ड की नहीं। इसी प्रकार प्रयाग से सारे तीर्थ उत्पन्न हुए हैं। किसी तीर्थ से प्रयाग का जन्म होना असम्भव है।
 
 
एक अन्य कथा के अनुसार तीर्थराज की पहचान होने के बाद काशी विश्वनाथ स्वयं आकर प्रयाग में रहने लगे। उन्होंने महाविष्णु रूप भगवान वेणी माधव के दर्शन किए। वेणी माधव, अक्षयवट के पत्ते पर बालमुकुन्द रूप धारण कर अपनी महिमा का विस्तार करने के बारे में सोच रहे थे, तभी शूलपाणि शिव अक्षयवट की रक्षा करने को वहीं उपस्थित थे।
 
 
पद्‌मपुराण के अनुसार भगवान वेणी माधव को शिव अत्यंत प्रिय हैं। वही शिव अवंतिका में महाकालेश्वर के रूप में विराजमान हैं, वहीं शिव कांची की पुण्य गरिमा के कारण हैं। उनका प्रयाग में निरन्तर निवास करना शैव और वैष्णव धर्म के समन्वय का प्रमाण है।
 
Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

मार्गशीर्ष अमावस्या पर पितरों को करें तर्पण, करें स्नान और दान मिलेगी पापों से मुक्ति

जानिए क्या है एकलिंगजी मंदिर का इतिहास, महाराणा प्रताप के आराध्य देवता हैं श्री एकलिंगजी महाराज

Saturn dhaiya 2025 वर्ष 2025 में किस राशि पर रहेगी शनि की ढय्या और कौन होगा इससे मुक्त

Yearly Horoscope 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों का संपूर्ण भविष्‍यफल, जानें एक क्लिक पर

Family Life rashifal 2025: वर्ष 2025 में 12 राशियों की गृहस्थी का हाल, जानिए उपाय के साथ

सभी देखें

धर्म संसार

property muhurat 2025: वर्ष 2025 में संपत्ति क्रय और विक्रय के शुभ मुहूर्त

ताजमहल या तेजोमहालय, क्या कहते हैं दोनों पक्ष, क्या है इसके शिवमंदिर होने के सबूत?

कुतुब मीनार या ध्रुव स्तंभ, क्या कहते हैं मुस्लिम एवं हिंदू पक्ष और इतिहासकार की नजर में ये क्या है?

Margshirsha Amavasya 2024: मार्गशीर्ष अमावस्या पर आजमाएं ये 5 उपाय, ग्रह दोष से मिलेगा छुटकारा और बढ़ेगी समृद्धि

संभल में जामा मस्जिद या हरिहर मंदिर? जानिए क्या है संपूर्ण इतिहास और सबूत

अगला लेख
More