प्रयागराज कुंभ मेले में करें पंचक्रोशी परिक्रमा, पुण्य और मोक्ष मिलेगा

अनिरुद्ध जोशी
तीर्थराज प्रयाग मण्डल पांच योजन, बीस कोस तक फैला हुआ है। गंगा-यमुना और संगम के छह से ज्यादा तट हैं। इन्हीं को आधार बनाकर प्रयाग की तीन वेदियों को अति पवित्र माना गया है, ये हैं अंतर्वेदी, मध्यवेदी और बहिर्वेदी।
 
 
इन तीनों वेदियों में अनेक तीर्थ, उपतीर्थ, कुण्ड और आश्रम हैं। प्रयाग आने वाले तीर्थयात्रियों को त्रिवेणी संगम में स्नान करने के बाद तीर्थराज की पंचक्रोशी परिक्रमा करनी चाहिए। इस परिक्रमा के अनेक लाभ हैं। तीर्थराज के साथ ही सभी देवताओं, ऋषियों, सिद्धों और नागों के दर्शन का पुण्य फल इस परिक्रमा से मिलता है। तीर्थ क्षेत्र में स्थित सभी देवताओं, आश्रमों, मंदिरों, मठों, जलकुण्डों के दर्शन करने से ही तीर्थयात्रा का पूरा फल मिलता है।
 
 
इस परिक्रमा में प्रयागराज के समस्त प्रमुख तीर्थों (द्वादश माधव सहित) के दर्शन के साथ-साथ तीनों अग्नि कुण्डों (झूंसी, अरैल, तथा प्रयागराज) की भी परिक्रमा हो जाती है।
 
 
प्रयाग की पंचक्रोशी सीमा इस प्रकार है- 
दुर्वासा पूर्व भागे निवसति, बदरी खण्ड नाथ प्रतीच्याम।
पर्णाशा याम्यभागे धनददिशि तथा मण्डलश्च मुनीशः।
पंचक्रोशे त्रिवेण्याम्‌ परित इह सदा सन्ति सीमांत भागे।
सुक्षेत्रं योजनानां शर्मित ममितो मुक्ति पदन्तत।।
 
 
अर्थात पूर्व भाग में पांच कोस पर दुर्वासा मुनि (ककरा गांव में) निवास करते हैं। पश्चिम दिशा में पांच कोस पर बरखण्डी शिव निवास करते हैं। दक्षिण में पांच कोस पर पर्णाश मुनि (पनासा गांव के पास) रहते हैं और अक्षयवट से पांच कोस उत्तर मण्डलेश्वरनाथ (पण्डिला महादेव) विराजमान हैं। यही पंचक्रोशी की सीमा है।
 
 
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कैसे शुरू होती है परिक्रमा?
परिक्रमा सर्वप्रथम त्रिवेणी संगम में स्नान-ध्यान से प्रारम्भ होती होती है। यहाँ तीनों वेणियों का ध्यान करने के साथ ही संगम में विलुप्त श्री आदि वेणी माधव का ध्यान करना चाहिए।  प्रयाग आने वाले तीर्थ यात्री परिक्रमा के लिए सबसे पहले त्रिवेणी में स्नान, पूजन करते हैं, पंचक्रोशी परिक्रमा इसके बाद शुरू होती है। श्रद्धालु को त्रिवेणी स्नान के बाद अकबरी किले में स्थित पवित्र अक्षयवट का दर्शन-पूजन करना चाहिए।
 
अक्षयवट के साथ ही अनेक देवता और ऋषि विराजमान हैं। इनकी मूतिर्यों का पूजन-अर्चन कर यात्री को यमुना के किनारे का रास्ता पकड़ना चाहिए। इस रास्ते पर यमुना के किनारे घृत कुल्या, मधु कुल्या, निरंजन तीर्थ, आदित्य तीर्थ, ऋण मोचन तीर्थ, रामतीर्थ, पापमोचन तीर्थ, सरस्वती कुण्ड, गो-घट्‌टन तीर्थ और कामेश्वर तीर्थ जाना चाहिए।
 
कामेश्वर तीर्थ में मनकामेश्वर महादेव विराजमान हैं। इनके दर्शन-पूजन करने से श्रद्धालु की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। ये सभी तीर्थ यमुना के किनारे स्थित हैं। अकबरी किले की दक्षिणी दीवार से लगी हुई पगडण्डी के रास्ते पैदल जाने पर इन तीर्थों के दर्शन हो सकते हैं। किला घाट से नाव के जरिये इन तीर्थों की परिक्रमा करना आसान है। इन तीर्थों में ज्यादातर का सही स्थान सुनिश्चित नहीं है। पुराणों में इनकी स्थिति का वर्णन है, इसलिए श्रद्धालु तीर्थ यात्री इनका स्मरण करते हुए मनकामेश्वरनाथ मंदिर तक जाते हैं।
 
मनकामेश्वर मंदिर से सड़क के रास्ते तक्षकेश्वर शिव मंदिर तक पैदल या सवारी से यात्रा की जा सकती है। हजारों साल से श्रद्धालु तीर्थयात्री पैदल ही इन तीर्थों के दर्शन करते हैं। तक्षकेश्वर शिव की पूजा करने और तक्षक कुण्ड में स्नान करने की महिमा पुराणों में कही गई है। तक्षक कुण्ड में स्नान करने से भक्तों को विष बाधा से मुक्ति मिलती है। तक्षकेश्वर शिव का पूजन करने से धन लाभ होता है।
 
तक्षक कुण्ड यमुना के जल में है। प्रयाग के दरियाबाद मोहल्ले में यह कुण्ड है और इसके पास ही तक्षकेश्वर शिव मंदिर है। तक्षक कुण्ड से आगे कालिया हृद, चक्र तीर्थ और सिंधु सागर तीर्थ है, हृद उस जल भाग को कहते हैं, जहां बहुत ज्यादा गहराई होती है। कहते हैं कालिया नाग इसी जल में रहता है और तीर्थराज प्रयाग की अर्चना करता है। 
 
यात्रा में ध्यान रखने योग्य छह बातें :
* सर्वप्रथम यह कि परिक्रमा दक्षिणावर्त होनी चाहिए।
* जिस दिशा में जहां जाकर तीर्थों के कथन का अन्त कर दिया हो, उसे ही निश्चित सीमा मानी जानी चाहिए।
* उपरोक्त बताए गए तीनों अग्नि स्वरूप, प्रयाग, अलर्कपुरी, अरैल (तथा प्रतिष्ठानपुरी) झूंसी की परिक्रमा हो जानी चाहिए।
* तटों का कोई प्रधान तीर्थ न छूटना चाहिए।
* प्रयागराज के अष्टनायक जैसे त्रिवेणी, माधव, सोम, भरद्वाज, वासुकी, अक्षयवट, शेष और प्रयाग ये परिक्रमा में शामिल होना चाहिए।
* प्रजापति क्षेत्र की जो सीमा निर्धारित है उससे आगे न जाएं।
 
मत्स्य पुराण अनुसार प्रयागराज तीर्थों की परिक्रमा में मनुष्य जितने पग श्रद्धाभाव से चलता है उतने अश्वमेध यज्ञों के फल उसे प्राप्त होते हैं।
 
 

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