पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शरद पूनम का महत्व शास्त्रों में भी वर्णित है। वे बताते हैं कि इस रात्रि को चंद्रमा अपनी समस्त कलाओं के साथ होता है और धरती पर अमृत वर्षा करता है।
रात्रि 12 बजे होने वाली इस अमृत वर्षा का लाभ मानव को मिले इसी उद्देश्य से चंद्रोदय के वक्त गगन तले खीर या दूध रखा जाता है, जिसका सेवन रात्रि 12 बजे बाद किया जाता है। मान्यता तो यह भी है कि इस तरह रोगी रोगमुक्त भी होता है। इसके अलावा खीर देवताओं का प्रिय भोजन भी है।
प्राचीन काल से शरद पूर्णिमा को बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है। शरद पूर्णिमा से हेमंत ऋतु की शुरुआत होती है। शरद पूर्णिमा पर चांद अपनी पूर्ण कलाएं लिए होता है। मान्यता है कि इस दिन केसरयुक्त दूध या खीर चांदनी रोशनी में रखने से उसमें अमृत गिर जाता है।
शरद पूर्णिमा को कोजागिरी पूर्णिमा भी कहते हैं। इस दिन जहां चंद्र भगवान की पूजा कर दूध का भोग लगाते हैं, वही भगवान भोलेनाथ की पूजा सायंकाल के समय करके केसरयुक्त दूध या खीर का भोग रात को लगाते हैं।
ऐसी मान्यता है कि चंद्रमा की सारी कलाएं रात्रि के समय इस धरती पर बिखरती हैं, इसलिए रात्रि के समय दूध या खीर चंद्रमा को भोग के रूप में खिलाते हैं, जिससे चंद्रमा की अमृतमय किरणें इस खीर पर पड़ती हैं।
इस खीर को पूजा-अर्चना व भजन-कीर्तन के बाद सभी लोगों में वितरण की जाती है। इस अमृतमय खीर पान से मनुष्य की उम्र बढ़ती है। इसके बाद से हेमंत ऋतु का प्रारंभ हो जाता है।
शरद पूर्णिमा के अवसर पर मंदिरों में गरबा-डांडिया का आयोजन के बाद प्रसाद के रूप में खीर का वितरण होगा ।