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माघ बिहू त्योहार कब, क्यों और कैसे मनाया जाएगा, क्या है इसका महत्व?

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अनिरुद्ध जोशी

, बुधवार, 4 जनवरी 2023 (15:56 IST)
Bhogali Bihu 2023 Date : माघ बिहू का पर्व माघ मास में आता है। यह असम का खास त्योहार है। मकर संक्रांति की दिन ही इस पर्व को मनाया जाता है। असम में इसे भोगाली बिहू भी कहते हैं। आओ जानते हैं कि यह पर्व इस बार अंग्रेंजी कैंलेंडर के अनुसार कब मनाया जाएगा और क्या है इसकी परंपरा।
 
माघ बिहू कब है: अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 15 जनवरी 2023 रविवार को यह पर्व मनाया जाएगा। इसी दिन आन्ध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा तमिलनाडु में भोगी पण्डिगाई का पर्व मनाया जाएगा, जिसे पेड्डा पाण्डुगा और पोंगल की कहते हैं।
 
महत्व : यह त्योहार भी मकर संक्राति की तरह ही मनाया जाता है या यह कहें कि यह मकर संक्राति का ही स्थानीय रूप है। बिहू शब्द दिमासा लोगों की भाषा से है। 'बि' मतलब 'पूछना' और 'शु' मतलब पृथ्वी में 'शांति और समृद्धि' है। यह बिशु ही बिगड़कर बिहू हो गया। अन्य के अनुसार 'बि' मतलब 'पूछ्ना' और 'हु' मतलब 'देना' हुआ। आओ जानते हैं यह त्योहार या पर्व क्यों और कैसे बनाते हैं।
 
क्यों मनाते हैं त्योहार :
बिहु असम में फसल कटाई का प्रमुख त्योहार है। यह फसल पकने की खुशी में मनाया जाता है। इसी त्योहार को पूर्वोत्तर क्षेत्र में भिन्न भिन्न नाम से मनाते हैं।
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कितनी बार मनाते हैं त्योहार | Bihu festival In Asam:
 
1. एक वर्ष में यह त्योहार तीन बार मनाते हैं। पहला सर्दियों के मौसम में पौष संक्रांति के दिन, दूसरा विषुव संक्राति के दिन और तीसरा कार्तिक माह में मनाया जाता है।
 
2. पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू, विषुव संक्रांति को रोंगाली बिहू और कार्तिक माह में कोंगाली बिहू मनाया जाता है। 
 
3. पौष माह या संक्राति को भोगाली बिहू मनाते हैं, जो कि जनवरी माह के मध्य में अर्थात मकर संक्रांति के आसपास आता है। इसे माघ को बिहू या संक्रांति भी कहते हैं।
 
4. भोगाली बिहू पौष संक्रांति के दिन अर्थात मकर संक्रांति के दिन या आसपास आता है। इसे भोगाली इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इसमें भोग का महत्व है अर्थात इस दौरान खान-पान धूमधाम से होता है और तरह-तरह की खाद्य सामग्री बनाई और खिलाई जाती है।
 
कैसे मनाते हैं ये त्योहार : 
1. भोगाली या माघ बिहू के पहले दिन को उरुका कहते हैं। इस दिन लोग खुली जगह में धान की पुआल से अस्थायी छावनी बनाते हैं जिसे भेलाघर कहते हैं। 
 
2. इस छावनी के पास ही 4 बांस लगाकर उस पर पुआल एवं लकड़ी से ऊंचे गुम्बज जैसे का निर्माण करते हैं जिसे मेजी कहते हैं। गांव के सभी लोग यहां रात्रिभोज करते हैं।
 
3. उरुका के दूसरे दिन स्नान करके मेजी जलाकर बिहू का शुभारंभ किया जाता है। गांव के सभी लोग इस मेजी के चारों ओर एकत्र होकर भगवान से मंगल की कामना करते हैं। 
 
4. अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए लोग विभिन्न वस्तुएं भी मेजी में भेंट चढ़ाते हैं। बिहू उत्सव के दौरान वहां के लोग अपनी खुशी का इजहार करने के लिए लोकनृत्य भी करते हैं।
 
5. इस दिन नारियल के लड्डू, तिल पीठा, घिला पीठा, मच्छी पीतिका और बेनगेना खार के अलावा अन्य पारंपरिक पकवान भी पकाकर खाए जाते हैं।

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