फुलेरा/ फुलैरा दूज : इस त्योहार को सबसे महत्वपूर्ण और शुभ दिनों में से एक माना जाता है। क्योंकि यह दिन किसी भी तरह के हानिकारक प्रभावों और दोषों से प्रभावित नहीं होता है और इस प्रकार इसे अबूझ मुहूर्त माना जाता है।
इसका अर्थ है कि विवाह, संपत्ति की खरीद इत्यादि सभी प्रकार के शुभ कार्यों को करने के लिए दिन अत्यधिक पवित्र है। शुभ मुहूर्त पर विचार करने या विशेष शुभ मुहूर्त को जानने के लिए पंडित से परामर्श करने की आवश्यकता नहीं है। उत्तर भारत के राज्यों में, ज्यादातर शादी समारोह फुलेरा/ फुलैरा दूज की पूर्व संध्या पर होते हैं। लोग आमतौर पर इस दिन को अपना व्यवसाय शुरू करने के लिए सबसे समृद्ध पाते हैं।
फुलेरा/ फुलैरा दूज का त्योहार बसंत पंचमी और होली के बीच फाल्गुन में मनाया जाता हैं। फुलेरा/ फुलैरा दूज पूरी तरह दोषमुक्त दिन है। इस दिन का हर क्षण शुभ होता है। इसलिए कोई भी शुभ काम करने से पहले मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती।
फुलेरा/ फुलैरा दूज का महत्व
- फुलेरा/ फुलैरा दूज मुख्य रूप से बसंत ऋतु से जुड़ा त्योहार है।
- वैवाहिक जीवन और प्रेम संबंधों को अच्छा बनाने के लिए इसे मनाया जाता है।
- फुलेरा/ फुलैरा दूज वर्ष का अबूझ मुहूर्त भी माना जाता है, इस दिन कोई भी शुभ कार्य कर सकते हैं।
- फुलेरा/ फुलैरा दूज में मुख्य रूप से श्री राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है।
- जिनकी कुंडली में प्रेम का अभाव हो, उन्हें इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा करनी चाहिए।
- वैवाहिक जीवन की समस्याएं दूर करने के लिए भी इस दिन पूजा की जाती है।
अगर आप कोई नया काम शुरू करना चाहते हैं तो फुलेरा/ फुलैरा दूज का दिन इसके लिए सबसे उत्तम होगा। इस दिन में साक्षात श्रीकृष्ण का अंश होता है। जो भक्त प्रेम और श्रद्धा से राधा-कृष्ण की उपासना करते हैं, श्रीकृष्ण उनके जीवन में प्रेम और खुशियां बरसाते हैं।
फुलेरा/ फुलैरा दूज का पर्व मनाने की विधि
- शाम को स्नान करके पूरा श्रृंगार करें।
- राधा-कृष्ण को सुगन्धित फूलों से सजाएं।
- राधा-कृष्ण को सुगंध और अबीर-गुलाल भी अर्पित कर सकते हैं।
- प्रसाद में सफेद मिठाई, पंचामृत और मिश्री अर्पित करें।
- इसके बाद 'मधुराष्टक' या 'राधा कृपा कटाक्ष' का पाठ करें।
- अगर पाठ करना कठिन हो तो केवल 'राधेकृष्ण' का जाप कर सकते हैं।
- श्रृंगार की वस्तुओं का दान करें और प्रसाद ग्रहण करें।
कृष्ण भक्त इस दिन को बड़े उत्साह से मनाते हैं। राधे-कृष्ण को गुलाल लगाते हैं। भोग, भजन-कीर्तन करते हैं क्योंकि फुलेरा/ फुलैरा दूज का दिन कृष्ण से प्रेम को जताने का दिन है। इस दिन भक्त कान्हा पर जितना प्रेम बरसाते हैं, उतना ही प्रेम कान्हा भी अपने भक्तों पर लुटाते हैं।
इस दिन
- सोने वाले पलंग के चारों पैरों में गुलाबी धागा बांधें।
- पलंग के नीचे गंदगी इकट्ठा न होने दें।
- सोने के लिए ढेर सारे तकियों का प्रयोग न करें।
फुलेरा दूज पर राधे-कृष्ण की उपासना आपके जीवन को सुंदर और प्रेमपूर्ण बना सकती है। इसे फूलों का त्योहार भी कहते हैं क्योंकि फाल्गुन महीने में कई तरह के सुंदर और रंगबिरंगे फूलों का आगमन होता है और इन्हीं फूलों से राधे-कृष्ण का श्रृंगार किया जाता है।
फुलेरा/ फुलैरा दूज के दिन से ही लोग होली के रंगों की शुरुआत कर देते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन से ही भगवान कृष्ण होली की तैयारी करने लगते थे और होली आने पर पूरे गोकुल को गुलाल से रंग देते थे।
सावधानियां
- शाम का समय ही पूजन के लिए सबसे उत्तम है।
- रंगीन और साफ कपड़े पहनकर आनंद से पूजा करें।
- अगर प्रेम के लिए पूजा करनी है तो गुलाबी कपड़े पहनें।
- अगर वैवाहिक जीवन के लिए पूजा करनी है तो पीले कपड़े पहनें।
- पूजा के बाद सात्विक भोजन ही ग्रहण करें।
फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया को फुलेरा दूज का पर्व मनाया जाता है। होली से कुछ दिन पहले आती है 'फुलेरा दूज'। आज भी देहात क्षेत्र और गांवों में फुलेरा दूज के दिन से सांय के समय घरों में रंगोली सजाई जाती है। इसे घर में होली रखना कहा जाता है। खुशियां मनाई जाती हैं, वह इसलिए क्योंकि होली आने वाली है।
जब खेतों में सरसों के पीले फूलों की मनभावन महक उठने लगे। जहां तक नजर जाए दूर-दूर तक केसरिया क्यारियां ही क्यारियां नजर आएं। शरद की कड़ाके की ठंड के बाद सूरज की गुनगुनी धूप तन और मन दोनों को प्रफुल्लित करने लगे। खेतों की हरियाली और जगह-जगह रंगबिरंगे फूलों को देखकर मन-मयूर नृत्य करने लगे तो समझो बंसत ऋतु अपने चरम पर है।
बचपन से युवा अवस्था में कदम रखने वाले अल्हड़ युवक-युवतियां इस मौसम की मस्ती में पूरी तरह से डूब जाना चाहते हैं। किसानों की फसल खेतों में जैसे-जैसे पकने की ओर बढ़ने लगती है। तभी रंगों भरा होली का त्योहार आ जाता है। दूज के दिन किसान घरों के बच्चे अपने खेतों में उगी सरसों, मटर, चना और फुलवारियों के फूल तोड़कर लाते हैं। इन फूलों को भी घर में बनाई गई होली यानी रंगोली पर सजाया जाता है।
यह आयोजन उत्तर भारत के कई राज्यों के कई इलाकों में फुलेरा दूज से होली के ठीक एक दिन पहले तक लगातार होता रहता है। होली वाले दिन रंगोली बनाए जाने वाले स्थान पर ही गोबर से बनाई गई छोटी-छोटी सूखी गोबरीलों से होली तैयार की जाती है। होली के दिन हर घर में यह छोटी होली जलाई जाती है। इस होली को जलाने के लिए गांव की प्रमुख होली से आग लाई जाती है।
उत्तर भारत ही नहीं होली का त्योहार पूरे देश में मनाया जाता है। बस मनाने के अंदाज भी जुदा हैं। पर होली की तैयारियां काफी पहले से शुरू हो जाती हैं। फुलोरा दूज के दिन आपसी प्रेम बढ़ाने के लिए राधा-कृष्ण जी का पूजन किया जाता है।
इस दूज से कृष्ण मंदिरों में फाल्गुन का रंग चढ़ने लगता है। इस दिन जो भक्त कृष्ण भक्ति करते हैं उनके जीवन में प्रेम की वर्षा होती है। इस पर्व का दूसरा महत्व शादियों को लेकर है। होली से लगभग पंद्रह दिन पहले से शादियों का मुहूर्त समाप्त हो जाता है।
ज्योतिष के अनुसार जिन शादियों में किसी और दिन शुभ मुहूर्त नहीं निकलता, उनके लिए फुलेरा दूज के दिन शादी करना शुभ माना जाता है। फुलेरा दूज के बाद से होली तक कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। वैसे तो होली का डांडा गढ़ने के बाद ही शुभ कार्यों पर निषेध रहता है लेकिन फुलेरा/ फुलैरा दूज को अत्यंत शुभ मुहूर्त माना जाता है। तो फिर जोर शोर से कीजिए फुलेरा/ फुलैरा दूज का स्वागत।