आज मनेगा छत्तीसगढ़ का लोकपर्व छेरछेरा, अन्न दान करने से मिलता है मोक्ष, पढ़ें कथा भी...

Webdunia
छत्तीसगढ़ का खास लोकपर्व है छेरछेरा, यह पौष पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह अन्न दान का महापर्व है। 21 जनवरी 2019, सोमवार को यह छेरछेरा पर्व धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है। छत्तीसगढ़ में यह पर्व नई फसल के खलिहान से घर आ जाने के बाद मनाया जाता है। 
 
यह उत्सव कृषि प्रधान संस्कृति में दानशीलता की परंपरा को याद दिलाता है। उत्सवधर्मिता से जुड़ा छत्तीसगढ़ का मानस लोकपर्व के माध्यम से सामाजिक समरसता को सुदृढ़ करने के लिए आदिकाल से संकल्पित रहा है। इस दौरान लोग घर-घर जाकर अन्न का दान मांगते हैं। वहीं गांव के युवक घर-घर जाकर डंडा नृत्य करते हैं। 
 
लोक परंपरा के अनुसार पौष महीने की पूर्णिमा को प्रतिवर्ष छेरछेरा का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन सुबह से ही बच्चे, युवक व युवतियां हाथ में टोकरी, बोरी आदि लेकर घर-घर छेरछेरा मांगते हैं। वहीं युवकों की टोलियां डंडा नृत्य कर घर-घर पहुंचती हैं। धान मिंसाई हो जाने के चलते गांव में घर-घर धान का भंडार होता है, जिसके चलते लोग छेर छेरा मांगने वालों को दान करते हैं। इन्हें हर घर से धान, चावल व नकद राशि मिलती है। इस त्योहार के दस दिन पहले ही डंडा नृत्य करने वाले लोग आसपास के गांवों में नृत्य करने जाते हैं। वहां उन्हें बड़ी मात्रा में धान व नगद रुपए मिल जाते हैं। इस त्योहार के दिन कामकाज पूरी तरह बंद रहता है। इस दिन लोग प्रायः गांव छोड़कर बाहर नहीं जाते। 
 
इस दिन अन्नपूर्णा देवी तथा मां शाकंभरी देवी की पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि जो भी बच्चों को अन्न का दान करते हैं, वह मृत्यु लोक के सारे बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं। इस दौरान मुर्रा, लाई और तिल के लड्डू समेत कई सामानों की जमकर बिक्री होती है। इस दिन सभी घरों में आलू चाप, भजिया तथा अन्य व्यंजन बनाया जाता है। इसके अलावा छेर-छेरा के दिन कई लोग खीर और खिचड़ा का भंडारा रखते हैं, जिसमें हजारों लोग प्रसाद ग्रहण कर पुण्य लाभ प्राप्त करते हैं।

 
आज के दिन द्वार-द्वार पर 'छेरछेरा, कोठी के धान ल हेरहेरा' की गूंज सुनाई देती है। पौष पूर्णिमा के अवसर पर मनाए जाने वाले इस पर्व के लिए लोगों में काफी उत्साह रहता है। गौरतलब है कि इस पर्व में अन्न दान की परंपरा का निर्वहन किया जाता है। इसके साथ ही रामायण की मंडलियां और पंथी नृत्य करने वाले दल भी छेरछेरा का आनंद लेने तैयार हैं तथा कई दिनों पूर्व से ही इस पर्व मनाने की खासी तैयारी की जा‍ती है। पौष पूर्णिमा के पवित्र अवसर सभी एक-दूसरे के जीवन में खुशहाली की कामना करते हैं।

 
ये रहीं लोकपर्व पर्व की कथा :-
 
इस पर्व के संबंध में पौराणिक एवं प्रचलित कथा के अनुसार खेतों में काम करने वाले मजदूर जी तोड़ मेहनत करते हैं। जब फसल तैयार हो जाती है तो उस पर खेत का मालिक अपना अधिकार जमा लेता है। मजदूरों को थोड़ी-बहुत मजदूरी के अलावा कुछ नहीं मिलता। दुखी होकर मजदूर धरती माता से प्रार्थना करते हैं।
 
मजदूरों की व्यथा सुनकर धरती माता खेत के मालिकों से नाराज हो जाती है, जिससे खेतों में फसल नहीं उगती। धरती माता किसानों को स्वप्न में दर्शन देकर कहती हैं कि फसल में से मजदूरों को भी कुछ हिस्सा दान में दें तभी बरकत होगी। इसके बाद जब फसल तैयार हुई तो किसानों ने मजदूरों को फसल में से कुछ हिस्सा दिया। कालांतर में धान का दान देने की परंपरा बन गई। आज भी ग्रामीण इलाकों में इस परंपरा का पालन श्रद्धा भाव से किया जाता है। छत्तीसगढ़ का यह पर्व न केवल सांस्कृतिक बल्कि धार्मिक महत्व का भी पर्व है।
 
प्रस्तुति एवं संकलन- राजश्री कासलीवाल

सम्बंधित जानकारी

Show comments
सभी देखें

ज़रूर पढ़ें

Ganesh chaturthi 2024: गणेश उत्सव के तीसरे दिन के अचूक उपाय और पूजा का शुभ मुहूर्त

Dhanteras 2024 date and time: दिवाली के पहले धनतेरस का पर्व कब मनाया जाएगा, जानें पूजा का शुभ मुहूर्त

Shardiya navratri 2024: शारदीय नवरात्रि में डोली पर सवार होकर आएंगी माता दुर्गा, जानिए कैसा रहेगा देश दुनिया का हाल

Ganesh chaturthi 2024: गणेश उत्सव के दूसरे दिन क्या करें, जानें इस दिन के अचूक उपाय और पूजा मुहूर्त

Parivartini Ekadashi Vrat: परिवर्तिनी एकादशी का व्रत कब रखा जाएगा? जानें इस व्रत का महत्व और फायदे

सभी देखें

धर्म संसार

Aaj Ka Rashifal: किसके लिए शुभ समाचार लाया है 09 सितंबर 2024 का दिन, जानिए अपना राशिफल

09 सितंबर 2024 : आपका जन्मदिन

09 सितंबर 2024, सोमवार के शुभ मुहूर्त

September Weekly Horoscope: सितंबर में इन राशि वालों के लिए खुलेंगे तरक्की के दरवाजे, पढ़ें अपना साप्ताहिक राशिफल

Aaj Ka Rashifal: 08 सितंबर, क्या होगा खास आज के दिन, पढ़ें मेष से मीन राशि का दैनिक राशिफल

अगला लेख
More