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भारत के पास नहीं है कोई रास्ता-ओशो

क्या भारत का जवान भटक गया है?

हमें फॉलो करें भारत के पास नहीं है कोई रास्ता-ओशो

ओशो

, सोमवार, 30 अप्रैल 2012 (08:41 IST)
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आज का युवा जहां रूढ़ीवाद, परंपरागत, कर्मकांडी सोच और बाबाओं के चक्कर में फंसा हुआ है, वहीं वह पाश्चात्य सभ्यता का अनुसारण कर नशे और सेक्स में लिप्त हो चला है तो दूसरी और नक्सलवादी और सांप्रदायिकता गतिविधियों में वह भारत के उद्धार की बात सोचने लगा है...क्यूँ.?...हालांकि पिछले कुछ वर्षो में सृजन के क्षेत्र में कार्य कर रहे युवाओं के कार्य को देखकर आशा की किरण जागी है...इसी संदर्भ में प्रस्तु है ओशो के विचार...

*एक मित्र ने पूछा है कि कहा जाता है कि भारत का जवान राह खो बैठा है। उसे सच्ची राह पर कैसे लाया जा सकता है?

- पहली तो यह बात ही झूठ है कि भारत का जवान राह खो बैठा है। भारत का जवान राह नहीं खो बैठा है, भारत की बूढ़ी पीढ़ी की राह अचानक आकर व्यर्थ हो गयी है और आगे कोई रास्ता नहीं है।

आज तक जिसे हमने रास्ता समझा था वह अचानक समाप्त हो गया है और आगे कोई रास्ता नहीं है, और रास्ता न हो तो खोने के सिवाय मार्ग क्या रह जाएगा?

भारत का जवान नहीं खो गया है, भारत ने अब तक जो रास्ता निर्मित किया था, इस सदी में आकर हमें पता चला कि वह रास्ता है ही नहीं। इसलिए हम बेराह खड़े हो गए हैं। रास्ता तो तब खोया जाता है जब रास्ता हो और रास्ते से भटक जाए। जब रास्ता ही न बचा हो तो किसी को भटकाने के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।

जवान को रास्ते पर नहीं लाना है, रास्ता बनाना है। रास्ता नहीं है आज और रास्ता बन जाए तो जवान सदा रास्ते पर आने को तैयार है, हमेशा तैयार है। क्योंकि जीना है उसे, रास्ते से भटककर जी थोड़े सकेगा! बूढ़े रास्ते से भटके, भटक सकते हैं। क्योंकि उन्हें जीना नहीं है और सब रास्ते- भटके हुए रास्ते भी कब्र तक पहुँचा देते हैं।

लेकिन जिसे जीना है, वह भटक नहीं सकता। भटकना मजबूरी है उसकी। जीना है तो रास्ते पर होना पड़ेगा, क्योंकि भटके हुए रास्ते जिंदगी की मंजिल तक नहीं ले जा सकते हैं। जिंदगी की मंजिल तक पहुँचने के लिए ठीक रास्ता चाहिए, लेकिन रास्ता नहीं है।

मैं इस बात पर जोर देना चाहता हूँ कि युवक नहीं भटक गया है, हमने जो रास्ता बनाया था वह रास्ता ही विलीन हो गया; वह रास्ता ही नहीं है अब। आगे कोई रास्ता ही नहीं है। और अगर युवक वर्ग को ही गाली दिए चले जाएँगे कि तुम भटक गए हो, तो वह हमसे सिर्फ क्रुद्ध हो सकता है क्योंकि उसे कोई रास्ता दिखायी नहीं पड़ रहा है और आप कहते हैं भटक गए हो।

हमने कुछ रास्ता बनाया था, जो बीसवीं सदी में आकर व्यर्थ हो गया है। हमने रास्ता बनाया था। वह रास्ता ऐसा था कि उसका व्यर्थ हो जाना अनिवार्य था।

पहली बात तो यह है कि हमने पृथ्वी पर चलने लायक रास्ता कभी नहीं बनाया। हमने रास्ता बनाया था, जैसे बेबीलोन में टावर बनाया था कुछ लोगों ने स्वर्ग जाने के लिए। वह जमीन पर नहीं था, वह ऊपर आकाश की तरफ जा रहा था। स्वर्ग पहुँचने के लिए कुछ लोगों ने एक टावर बनाया था।

हिंदुस्तान ने पाँच हजार सालों से जमीन पर चलने लायक रास्ता नहीं बनाया, स्वर्ग पर पहुँचने के रास्ते खोजे हैं। स्वर्ग पर पहुँचने के रास्ते खोजने में पृथ्वी पर रास्ते बनाना भूल गए हैं। हमारी आँखे आकाश की तरफ अटक गयी हैं। और हमारे पैर तो मजबूरी से पृथ्वी पर ही चलेंगे। बीसवीं सदी में आकर हमको अचानक पता चला है कि हमारी आँखों और पैरों में विरोध हो गया है। आँखें आकाश से वापस जमीन की तरफ लौटी हैं तो हम देखते हैं, नीचे कोई रास्ता नहीं है। नीचे हमने कभी देखा नहीं।

इस देश में हमने एक पारलौकिक संस्कृति बनाने की कोशिश की थी। बड़ा अदभुत सपना था, लेकिन सफल नहीं हुआ, न सफल हो सकता था। इस पृथ्वी पर रहने वाले को इस पृथ्वी की संस्कृति बनानी पड़ेगी, पार्थिव। इस पृथ्वी की संस्कृति हमने निर्मित नहीं की।

मैंन सुना है कि यूनान में एक बहुत बड़ा ज्योतिषी एक रात एक गड्डे में गिर गया। चिल्लाता है, बड़ी मुश्किल से पास की किसी किसान औरत ने उसे निकाला। जब उसे निकाला, तब उस ज्योतिष ने कहा है कि माँ, तुझे बहुत धन्यवाद। मैं एक बहुत बड़ा ज्योतिषी हूँ, तारों के संबंध में मुझसे ज्यादा कोई नहीं जानता। अगर तुझे तारों के संबंध में कुछ जानना हो तो मैं बिना फीस के तुझे बता दूँगा, तू चली आना। मेरी फीस भी बहुत ज्यादा है।

उस बूढ़ी औरत ने कहा, बेटे तुम निश्चिंत रहो, मैं कभी न आऊँगी क्योंकि जिसे अभी जमीन के गड्डे नहीं दिखायी पड़ते हैं उसके आकाश के तारों के ज्ञान का भरोसा मैं कैसे करूँ?

भारत कोई तीन हजार साल से गड्डे में पड़ा है आकाश की तरफ आँखे उठाने के कारण। नहीं, मैं यह नहीं कहता हूँ कि किन्हीं क्षणों में आकाश की तरफ न देखा जाए, लेकिन आकाश की तरफ देखने में समर्थ वहीं है जो जमीन पर रास्ता बना ले और विश्राम कर सके। वह आकाश की तरफ देख सकता है, लेकिन जमीन को भूलकर अगर आकाश की तरफ देखेंगे तो गहरी खाई में गिरने के सिवाय कोई मार्ग नहीं है।

लेकिन पूछा जा सकता है कि भारत के जवान ने इसके पहले यह भटकन क्यों न ली? बीसवीं सदी में आकर क्या बात हो गयी? रास्ता- मैं कह रहा हूँ, तीन हजार साल से हमारी पूरी संस्कृति ने जमीन पर रास्ता ही नहीं बनाया।

अगर हम पुराने शास्त्र पढ़े तो उनमें हमें मिल जाएगी किताबें, जिनका नाम है, 'मोक्षमार्ग', मोक्ष की तरफ जाने वाला रास्ता। लेकिन पृथ्वी पर चलने वाले रास्ते के संबंध में एक किताब भारतीय संस्कृति के संबंध में नहीं है। स्वर्ग जाने का रास्ता भी है, नर्क जाने का रास्ता भी है, लेकिन पृथ्वी पर चलने के रास्ते के संबंध में कोई बात नहीं है।

साभार : भारत के जलते प्रश्न (स्वर्ण पाखी था जो कभी और अब है भिखारी जगत का)
सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन

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