पिछले साल सुनामी के महाप्रलय ने जो संहार किया उससे भी बड़ा भूचाल डैन ब्राउन के दा विंची कोड ने पैदा किया है। क्योंकि सुनामी ने तो पार्थिव शरीरों को नष्ट किया, लेकिन द विंची कोड ने ईसाइयत के आध्यात्मिक आधार को हिला दिया है।
अगर डैन ब्राउन ने जो लिखा वह निरी बकवास है तो उससे स्थापित धर्म और उसे मानने वालों की रूह क्यों थरथरा उठी? जरूर डैन ब्राउन की कल्पना के बादलों से सत्य का प्रखर सूरज झाँक रहा है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।
डैन ब्राउन ने बरसों असली दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद यह उपन्यास लिखा है- वे दस्तावेज जिन्हें आज तकस्थापित धर्म ने दफना दिया था और गुह्य समूहों ने जीवित रखा था।
विख्यात चित्रकार लिओनार्दो द विंची ऐसे ही गुह्य समूह का एक सदस्य था इसलिए उसने अपनी पेंटिंग्स में कुछ सूत्र, कुछ इशारे छुपाए हैं जिन्हें अनकोड किया जा सकता है।
प्रसिद्ध चित्र मोनालिसा आज तक उसकी गूढ़ मुस्कराहट के बारे में जानी जाती थी, लेकिन किसे पता था कि वह अपने सीने में ईसाई धर्म का राज छुपाए बैठी है। और राज भी ऐसा खतरनाकजो चर्र्च के पैरों तले जमीन खिसका ले। अपने उपन्यास में डैन ब्राउन एक के बाद एक धमाके करता जाता है। पहला यह कि जीसस का विवाह मैरी मेग्दलीन से? हुआ था, और उन्हें एक बच्चा भी था।
यहीं पर स्थापित धर्म की हवा निकल गई। उनका मसीहा जो कि ईश्वर का एकमात्र पुत्र था, इतना मानवीय कैसे हो सकता है? वेटिकन का पूरा साम्राज्य जीसस की दिव्यता पर खड़ा है। अतः ऐसी कहानियाँ गढ़ी गईं किन तो उनका अपना जन्म नैसर्गिकया मानवोचित तरीके से हुआ और न ही उनका अंत। हर घटना अतिमानवीय पुट लिए हुए है।
डैन ब्राउन जब स्पेन के एक विश्वविद्यालय में कला का इतिहास सीख रहे थे, तो वहां पहली बार उन्हें द विंची के चित्रों में छुपे हुए रहस्यों का पता चला। फिर बरसों बाद वेटिकन के गुप्त आर्काइव्स का अध्ययन करते समय उनके सामने फिर एक बार द विंची के चित्रों का रहस्य उभर आया। फिर वे पैरिस के लूव्र संग्रहालय में गए और एक विशेषज्ञ की मदद से उन्होंने लिओनार्दो द विंची के चित्रों का रहस्य उघाड़ने की कोशिश की।
उन चित्रों के विलक्षण पहलुओं को जानने के बाद डैन ब्राउन की सर्जनशील प्रतिभा को इस विषय ने पकड़ लिया, और उन्होंने ईसाइयत से संबंधित उन सभी दस्तावेजों को छान मारा जो अब तक हाशिए में थे लेकिन जो जीसस के वास्तविक रूप को प्रकट करते थे। और जो तथ्य सामने आए वे वाकई आश्चर्यजनक थे।
सबसे बड़ा धक्का यह था कि बाइबल में जो अंकित है वह जीसस की असली कहानी और वचन नहीं है। जीसस की मृत्यु के 325 साल बाद रोम में तत्कालीन सम्राट कॉन्स्टेंटाइन ने एक धर्म परिषद बुलवाकर जीसस को दिव्यता प्रदान की और उसके लिए सदस्यों ने वोट डाले थे। अपने राज्य में अमन और चैन लाने के लिए उसे यह करना जरूरी था क्योंकिउन दिनों ईसाइयों की संख्या बहुत कम थी और रोमन और ईसाई लोगों के बीच लगातार कलह होता था।
डैन ब्राउन के लेखन की ताकत यह है कि उसने काल्पनिक पात्र रचे और उनके मुँह से सत्य घटनाओं का विश्लेषण करवाया। यह ताना-बाना उन्होंने इस खूबी से बुना है कि उनका उपन्यास सत्य और कल्पना के बीच लगातार धूप-छाँव खेलता है।
अब जैसे 1945 में इजिप्त की की खुदाई में नॉस्टिक ग्रंथों का मिलना सत्य घटना है, सन 325 में रोम में हुई नाइसीआ की धर्म परिषद सत्य घटना है, लिओनार्दो द विन्सी एक गुप्त समूह 'प्रायरी ऑफ सायन' का सदस्य था यह सच है। इन घटनाओं की बुनियाद पर ब्राउन ने एक सस्पेन्स थ्रिलर, एक रहस्य कथा की भव्य इमारत खड़ी की है। और पढ़ने वाला इस कदर चकरा जाता है कि क्या सत्य, क्या आभास, इसकी सीमाएँ धुँधली हो जाती हैं।
यह रहस्य कथा पढ़ने के बाद जीसस को मानने वालों के विश्वास पर गहरी चोट पड़ी है, अन्यथा विश्व भर में इतनी आग्नेय प्रतिक्रिया क्यों होती? विश्वास पर चोट तभी पड़ती है जब विश्वास के नीचे कहीं संदेह सिर छुपाए बैठा हो। या फिर विश्वास एकभावना हो, संदेह की आग से गुजरकर तपी हुई श्रद्धा नहीं।
अब हम देखें जिन नॉस्टिक ग्रंथों को डैन ब्राउन प्रमाण मानते हैं ये नॉस्टिक ग्रंथ क्या हैं?
उत्तर इजिप्ट के एक शहर नाग हम्मदि के पास, सन 1945 में एक बर्तन में सुरक्षित रखी हुई 12 किताबें मिलीं। ये किताबें एकऐसा असाधारण दस्तावेज है जो तकरीबन 1500 साल पहले निकटवर्ती मठ के भिक्षुओं ने पुरातनपंथी चर्च के विध्वंसकचंगुल से बचाने की खातिर भूमि के नीचे दफना रखा था। उस समय जो भी विद्रोही मत रखते थे उन सबको चर्च नष्ट कर रहा था। चर्च का क्रोध जायज भी है क्योंकि जीसस के ये मूल सूत्र प्रकाशित होते तो चर्च का काम तमाम हो जाता।
बाद में विद्वानों को इस खजाने की खबर लगी और उन्होंने इसका अनुवाद कर इसे छपवाया। इनमें संत थॉमस के सूत्र हैं, ल्यूकके और मेरी मग्दालिन के भी सूत्र हैं। ये सूत्र ईसाइयत के लिए सर्वाधिक खतरनाकहैं क्योंकि ये मनुष्य की अन्तःप्रज्ञा को मानते हैं, चर्च या ईश्वर को नहीं।
थॉमस के ये सूत्र आध्यात्मिक खोज को आदमी को भीतर मोड़ते हैं, इसलिए ये बाइबल का हिस्सा नहीं हैं। ये जीसस के कुँवारे शब्द हैं जो 2000 साल तकमानवीय हाथों से अछूते रहे। इनमें से कुछ वचन तो ऐसे हैं किपहली बार मनुष्य की निगाह उन पर पड़ी।
इस किताब में जीसस का मूल हिब्रू नाम जोशुआ ही लिखा हुआ है। जीसस का उनके शिष्यों के साथ हुआ वार्तालाप है यह। यह बहुत छोटी सी पॉकेट बुकनुमा किताब है जिसमें आधे पन्नों में खूबसूरत चित्र हैं और आधे पन्नों में जीसस के सूत्र जो थॉमस ने दर्ज किए हैं। ये सारे चित्र प्राचीन मिस्र के हैं, और उनमें से कुछ रहस्यपूर्ण प्रतीक हैं जैसे यिन-यांग की आकृति या और कुछ यंत्र।
सूत्रों के प्रारंभ में थॉमस ने लिखा है- ये गुप्त शब्द हैं जिन्हें जीवित जोशुआ ने कहा और और डिडीमस जुदास थॉमस ने लिखा।
ये सूत्र कई तरह के हैं- इनमें प्रज्ञापूर्ण वचन हैं, भविष्यवाणियां हैं, मुहावरे हैं, कथाएँ हैं और संघ के लिए कुछ नियम हैं। न्यू टेस्टामेंट में जो सूत्र हैं उनके मुकाबले थॉमस के सूत्र अधिक प्रामाणिक और जीसस के वचनों के करीब मालूम होते हैं।
इस किताब में मेरी मग्दालिन जीसस के शिष्यों में से एक है। वह वेश्या नहीं थी। हां, लेकिन जीसस के पुरुष शिष्यों की मानसिकता इसमें अवश्य झलकती है।
पढ़कर आश्चर्य होता है कि आज से 2000 साल पहले भी पुरुष स्त्रियों को वैसे ही निकृष्ट मानते थे जैसे कि आज मानते हैं। जैसे आखिरी सूत्र-114 में साइमन पीटर बाकी शिष्यों से कहता है, 'मैरी मग्दालिन हममें से चली जाए क्योंकि औरतें जीवन के काबिल नहीं हैं।'
जोशुआ कहता है, 'देखो, मैं उसका मार्गदर्शन करूँगा और उसे पुरुष बनाऊँगा ताकि वह भी जीवंत आत्मा बन जाए जैसे कि तुम पुरुष हो। क्योंकि हर औरत जो अपने को पुरुष बनाती है वह आकाश के राज्य में प्रवेश करेगी।'
शिष्यों ने जीसस से पूछा, 'हमें बताओ, स्वर्ग का राज्य कैसा है?'
उसने कहा, 'वह राई के दाने जैसा है, जो सभी बीजों से छोटा है। लेकिन जब वह कसी हुई जमीन पर गिरता है तब वह बहुत बड़ा पौधा बन जाता है और आकाश के पक्षियों के लिए सहारा बन जाता है।
इन सूत्रों में जीसस साफ कहते हैं कि मेरे पिता का राज्य तुम्हारे भीतर है। वह सर्वत्र फैला हुआ है लेकिन तुम्हें दिखाई नहीं देता क्योंकि तुम्हारी आँखें खुली नहीं हैं। नन्हे शिशु जैसे हो जाओ, दुई को एक बना लो, वही उसमें प्रवेश है। जहाँ पुरुष पुरुष न रहे और स्त्री स्त्री न रहे वहां उसका प्रवेश द्वार है।'
मैरी मग्दालिन को वेश्या बनाना कॉन्स्टन्टाइन के कट्टर पुरुषवादी पुरोहितों की चाल थी। हकीकत में मैरी मग्दालिन जीसस के संघ की प्रमुख शिष्या थी। वे चाहते थे कि उनके बाद मैरी उनके संघ की प्रधान बने और उसे आगे चलाए, लेकिन उसे भेज दिया गया। और ब्राउन कहते हैं कि जीसस सर्वप्रथम 'फेमिनिस्ट' नारी मुक्तिवादी थे।
एक अद्भुत संयोग है कि थॉमस की यह किताब 'ए गॉस्पेल ऑफ थॉमस' ओशो को भी निःसंदेह प्रामाणिकलगी और जीसस के वचनों पर जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो इसी किताब को प्रमाण मानकर इनकी व्याख्या की। बाद में ओशो के व्याख्यान 'दि मस्टर्ड सीड' नाम से प्रकाशित हुए। ओशो ने मैरी मग्दालिन को बहुत ऊँचा स्थान दिया है। उसका निष्कलुष प्रेम, जीसस पर उसकी अनन्य श्रद्धा का ओशो ने कई बार बखान किया है। जीसस को तीन दिन बाद सूली से उतारने वाली भी मैरी ही थी। उनके एक भी पुरुष शिष्य वहां मौजूद नही थे।
दा विंची कोड लिखने का ख्याल डैन ब्राउन को कैसे आया? टीवी के एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि यह कहानी उनके द्वार पर दस्तक देती रही। आखिर उन्हें द्वार खोलना ही पड़ा। संयोगवश उन्हें कागजात भी ऐसे मिलते गए जो स्थापित धर्म पर प्रश्न उठाने के लिए मजबूर करें।
ब्राउन मानते हैं किईसाई धर्मगुरुओं द्वारा उनके वक्तव्यों का विरोध होना एक स्वस्थ घटना है। क्योंकि विवाद और संवाद के बीच से ही सृजन का रास्ता गुजरता है। इस बहाने चर्च और उसके अनुयायी हड़बड़ाकर जाग उठे, सारी दुनिया में फिर एक बार जीसस का जीवन और ईसाई धर्म के सिद्धांतों की चर्चाएँ और जांच परीक्षण हो रहा है। यह किसी भी तत्व के पुनरुज्जीवन के लिए परम आवश्यक है। धर्म की सबसे दुश्मन अगर कुछ है तो लोगों की उपेक्षा।
उपन्यास लिखने के लिए ब्राउन ने जिन ऐतिहासिक कागजातों का सहारा लिया है वे कहाँ तक सच हैं? जहाँ तक ऐतिहासिक तथ्यों का सवाल है, ब्राउन स्पष्ट रूप से कहते हैं कि इतिहास एक भ्रांति है क्योंकि इतिहास विजयी लोगों द्वारा लिखा जाता है और हमेशा घटनाओं के बाद में लिखा जाता है। वर्तमान स्थिति का समर्थन करने की खातिर या और किसी राजनीतिक उद्देश्य से इतिहास लिखवाया जाता है। यहां पर ब्राउन ने एक और खतरनाक प्रश्न उठाया है- पहले तो हमें देखना चाहिए किहमारा इतिहास कितना ऐतिहासिक है?
इस पूरी घटना ने कुछ मूलभूत सवाल उठाए हैं- क्या धर्म का आधार विश्वास हो सकता है? विश्वास एक मानसिक मान्यता है, और मन जो खुद ही संशय से भरा और संदिग्ध है उस पर क्या आध्यात्म का भवन बनाना उचित है? यह तो बहते हुए पानी पर महल बनाने जैसा है।
दूसरा मुद्दा यह है कि कला को अपनी अभिव्यक्ति का अधिकार है कि नहीं? किसी के विश्वासों के विपरीत कुछ कहा नहीं कि लोग उसकी आवाज बंद करना चाहते हैं। आज इस वैज्ञानिक युग में धर्म इतना असहिष्णु क्यों हो गया है? किसी नये विचार का विरोध करने से पहले उसे देखना परखना वैज्ञानिक बुद्धि का कर्तव्य है। लेकिन जो वैज्ञानिक बुद्धि पदार्थ के जगत में कुशलता से काम करती है वह आंतरिक जगत में एकदम अपाहिज और अंधी हो जाती है।
वैज्ञानिक रुख तो यह होगा कि डैन ब्राउन को जो गुप्त कागजात मिले हैं उनकी जाँच-पड़ताल खुद धार्मिक लोग करें और उसमें कुछ सचाई हो तो उनको स्वीकार करें। इससे जीसस की गरिमा और बढ़ेगी, घटेगी नहीं।
आज 2000 साल बाद क्या फर्क पड़ता है कि उनके मसीहा ने विवाह किया था या नहीं? मान लें कि जीसस मानवीय थे, अधिक से अधिक असाधारण मानव; लेकिन जो शख्स समय को जीतकर 2000 साल की लंबी अवधि तक दो तिहाई मानवता के विश्वास का पात्र बना है वह अगर मानवीय सिद्ध हुआ तो इससे बड़ा मनुष्य का सम्मान और क्या हो सकता है?