ओशो के विचार, जानें कैसे बन गई हंसी राजनैतिक

ओशो
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एक छोटे से दफ्तर में मालिक अपने कर्मचारियों को कुछ पुराने चुटकुले सुना रहा था, जो वह पहले कई बार सुना चुका था। और सब हँस रहे थे- सभी को हँसना पड़ता है! वे सभी इनसे ऊब चुके थे, पर मालिक तो मालिक है, और जब मालिक चुटकुला कहे तो तुम्हें हँसना तो पड़ता ही है- यह काम का हिस्सा है। सिर्फ एक टायपिस्ट नहीं हँस रही थी, वह गंभीर बैठी थी। मालिक ने पूछा, 'तुम्हारी क्या समस्या है? तुम हँस क्यों नहीं रही हो?'

वह बोली, 'मैं इस महीने काम छोड़ रही हूँ- हँसने का कोई मतलब नहीं है!'

लोगों के अपने कारण हैं। हँसी भी व्यवसाय है, हँसी भी अर्थव्यवस्था जैसी हो गई, राजनैतिक। हँसी भी मात्र हँसी के लिए नहीं है। सारी शुद्धता खो गई है। तुम शुद्ध ढंग से, सहज ढंग से, बच्चे जैसे हँस भी नहीं सकते। और यदि तुम शुद्ध ढंग से हँस भी नहीं सकते तो तुम कुछ बहुत ही महत्वपूर्ण चूक रहे हो। तुम अपना कुँआरापन खो रहे हो, तुम्हारी निश्छलता, तुम्हारा भोलापन।

एक छोटे बच्चे को देखो; उसकी हँसी को देखो- कितनी गहरी, केंद्र से आती है। जब बच्चा पैदा होता है तो जो पहला सामाजिक कार्य वह सीखता है- यह कहना उचित नहीं होगा कि 'सीखता' है, क्योंकि वह अपने साथ लाता है, वह है- मुस्कराना। पहला सामाजिक कार्य। मुस्कराकर वह समाज का हिस्सा बनता है। यह बहुत प्राकृतिक, स्वाभाविक लगता है।

दूसरी चीजें बाद में आती हैं- दुनिया में यह उसकी पहली चिन्गारी है, जब वह मुस्कराता है। जब माँ अपने बच्चे को मुस्कराता देखती है, वह खुशी से झूम उठती है- क्योंकि यह मुस्कराहट स्वास्थ्य बताती है, यह मुस्कराहट उसकी प्रतिभा को बताती है, यह मुस्कराहट बताती है कि बच्चा मूर्ख नहीं है, अपाहिज नहीं है। यह मुस्कराहट बताती है कि बच्चा जीने वाला है, प्रेम करने वाला है, प्रसन्न रहने वाला है। माँ बस थिरक उठती है।

मुस्कराना पहला सामाजिक कार्य है, और यह सामाजिक कार्य का बुनियादी कार्य रहना चाहिए। किसी को अपने जीवनभर हँसे जाना चाहिए। यदि तुम हर तरह की स्थिति में हँस सको, तुममें उनका सामना करने की काबिलियत आ जाएगी- और यह काबिलियत तुम्हें प्रौढ़ता देगी। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि रोओ मत। सच तो यह है कि यदि तुम हँस नहीं सकते तो तुम रो भी नहीं सकते। ये साथ-साथ आते हैं; ये एक ही घटना के हिस्से हैं : सच्चे और ईमानदार कृत्य के।

लाखों लोग हैं, जिनके आँसू सूख गए हैं; उसकी आँखों ने जीने की तमन्ना, गहराई खो दी है; उनकी आँखों से पानी जा चुका है- क्योंकि वे रो नहीं सकते, वे आँसू नहीं बहा सकते, आँसू सहज नहीं बह सकते। यदि हँसी अपाहिज है तो आँसू भी अपाहिज हो जाते हैं। जो व्यक्ति ठीक से हँस सकता है, वह ठीक से रो भी सकता है। और यदि तुम ठीक से हँस सको और रो सको, तुम जिंदा हो। मरा हुआ व्यक्ति हँस नहीं सकता, रो नहीं सकता। मरा हुआ व्यक्ति गंभीर हो सकता है। देखना : लाश को जाकर देखना- मरा हुआ व्यक्ति तुमसे ज्यादा ठीक ढंग से गंभीर हो सकता है। सिर्फ जिंदा व्यक्ति हँस सकता है, रो सकता है, आँसू बहा सकता है।

ये तुम्हारे अंतस के मूड हैं, ये मौसम हैं, एक समृद्धि है। लेकिन धीरे-धीरे सब भूल गए हैं। जो प्रारंभ में सहज था, वह असहज हो गया। अब तुम्हें किसी की जरूरत पड़ती है जो तुम्हें हँसा सके; हँसने के लिए गुदगुदाए- सिर्फ तभी तुम्हें हँसी आती है। यही कारण है कि जगत में इतने चुटकुले बनते हैं।

हो सकता है कि तुमने ध्यान न दिया हो, लेकिन यहूदियों के पास दुनिया के सबसे अधिक अच्छे चुटकुले हैं। और कारण यह है कि दुनिया की किसी दूसरी जाति से अधिक यहूदियों ने दुख देखा है। उन्हें चुटकुले बनाने पड़े, अन्यथा बहुत पहले ही वे मर चुके होते। वे इतने दुख से निकले हैं, सदियों से उन्हें इतना सताया गया है, उन्हें कुचला गया है, हत्याएँ की गई हैं- उन्हें हास्य पैदा करना पड़ा। यह उनकी बचने की एक तरकीब है। यही कारण है कि उनके पास सबसे सुंदर चुटकुले हैं। गहरी हँसी से भरे, सघन।

मैं तुम्हें यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि हम तभी हँसते हैं, जब कोई कारण हो जो हमें हँसने को बाध्य करे। चुटकुला कहा जाए, और तुम हँसते हो- चुटकुला तुम्हारे अंदर एक तरह की उत्तेजना पैदा करता है। चुटकुले की सारी व्यवस्था इस तरह से है कि कहानी एक दिशा में जा रही है, और अचानक मोड़ लेती है; मोड़ इतना अचानक होता है, इतना अनअपेक्षित कि तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। उत्तेजना बढ़ती जाती है और तुम खास बात का इंतजार करते हो। और अचानक, जिस किसी भी बात की तुम अपेक्षा कर रहे थे, वह नहीं होता- कुछ पूरी तरह से विपरीत, कुछ पूरी तरह से असंगत और उपहासपूर्ण, कभी तुम्हारी अपेक्षा को पूरा नहीं करता।

चुटकुला कभी भी तर्कसंगत नहीं होता। यदि चुटकुला तर्कसंगत होगा तो हँसी की सारी क्षमता खो जाएगी, हँसी की सारी गुणवत्ता, क्योंकि तुम पूर्वानुमान कर सकते हो। तब जब चुटकुला कहा जा रहा है तभी तुम निष्कर्ष पर पहुँच चुके होते हो, क्योंकि यह सामान्य गणित होगा, लेकिन तब हँसी नहीं हो सकती। चुटकुला अचानक मोड़ लेता है, इतना अचानक कि तुम्हारे लिए लगभग इसकी कल्पना करना भी संभव नहीं होता। यह छलाँग लगाता है, एक लंबी छलाँग- यही कारण है कि इतनी हँसी फूटती है। यह तुम्हें गुदगुदाने का सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक ढंग है।

मुझे चुटकुले कहने पड़ते हैं, क्योंकि मैं डरता हूँ- तुम सभी धार्मिक लोग हो। तुम गंभीर होकर रहोगे। मुझे कभी-कभार तुम्हें गुदगुदाना होता है, ताकि तुम अपनी धार्मिकता को भूल सको, तुम अपनी सारी दार्शनिकता, सिद्धांत, सिस्टम भूल जाते हो और तुम जमीन पर आ जाते हो। मुझे तुम्हें बार-बार जमीन पर लाना पड़ता है। अन्यथा तुम गंभीर बनने को बाध्य हो, ज्यादा से ज्यादा गंभीर। और गंभीरता कैंसर की तरह बढ़ती है।

सौजन्य : ओशो इंटरनेशनल फाउंडेशन
साभार : ए सडन क्लैश ऑफ थंडर पुस्तक से संकलित

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