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प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रही हैं राबड़ीदेवी

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छपरा , सोमवार, 5 मई 2014 (17:37 IST)
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छपरा। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव के गढ़ सारण लोकसभा सीट में प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रही उनकी पत्नी और राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ीदेवी भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की लहर से ही नहीं, बल्कि नीतीश सरकार के सुशासन की चुनौती से भी जूझ रही हैं।

इसी क्षेत्र से 4 बार लोकसभा सदस्य चुने गए। यादव ने इस बार चारा घोटाले के एक मामले में सजायाफ्ता होने के कारण चुनाव लड़ने से वंचित होने पर अपनी पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ीदेवी को पहली बार लोकसभा चुनाव के लिए मैदान में उतारा है। इस बार के चुनाव में राबड़ीदेवी न सिर्फ अपनी बल्कि अपने पति और पार्टी की प्रतिष्ठा के लिए भी जोर आजमा रही हैं।

वैसे तो यह क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और विकास पुरुष और सुशासन के नाम पर अपनी अलग छवि बना चुके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के लिए भी प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है।

भाजपा ने इसी क्षेत्र से दो बार सांसद रहे पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूड़ी को अपना उम्मीदवार बनाया है, वहीं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की ओर से विधान परिषद के उप सभापति सलीम परवेज मैदान में उतरे हैं।

पिछले लोकसभा चुनाव में लालू प्रसाद यादव सारण संसदीय के साथ ही पाटलीपुत्र लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे और तब सारण ने ही उनकी प्रतिष्ठा बचाई थी। उस चुनाव में यादव सारण में कांटे के मुकाबले में राजीव प्रताप रूडी से 51,815 मतों के अंतर से विजयी हुए थे लेकिन पाटलीपुत्र में वे अपने पुराने मित्र और जदयू के डॉ. रंजन प्रसाद यादव से चुनाव हार गए थे।

इस बार यादव खुद चुनाव नहीं लड़ सकते थे इसलिए उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ीदेवी को सारण और पुत्री मीसा भारती को पाटलीपुत्र लोकसभा क्षेत्र से पहली बार उम्मीदवार बनाया। भारती की भी लड़ाई आसान नहीं रही। वहां उनका कड़ा मुकाबला यादव के बेहद करीबी रहे भाजपा उम्मीदवार रामकृपाल यादव से हुआ है।

पाटलीपुत्र संसदीय क्षेत्र में चुनाव संपन्न होने के बाद जीत के प्रति पूरी तरह से आश्वस्त नहीं होने के कारण सारण का यह चुनाव राजद परिवार के लिए बेहद अहम हो गया है। वर्ष 1952 से लेकर अब तक के हुए सभी चुनावों में इस लोकसभा क्षेत्र पर यादव और राजपूत जातियों का ही दबदबा रहा है।

वर्ष 1952 के पहले चुनाव से लेकर वर्ष 1971 तक कांग्रेस के उम्मीदवार ही यहां से विजयी होते रहे, लेकिन वर्ष 1977 में जब पहली बार भारतीय लोक दल के उम्मीदवार के रूप में लालू प्रसाद यादव ने वर्ष 1962 से लगातार कांग्रेस के सांसद रहे रामशेखर प्रसाद सिंह को 3 लाख 73 हजार 800 मतों के बड़े अंतर पराजित किया, तब से इस क्षेत्र में कांग्रेस अस्त हो गई है।

वर्ष 1977 के चुनाव में यादव को 4 लाख 15 हजार 409 मत मिले थे, जो कुल डाले गए मत का करीब 86 प्रतिशत था। कांग्रेस के उम्मीदवार को मात्र 41 हजार 609 मत से ही संतोष करना पड़ा था। इस चुनाव में कांग्रेस की कमर ऐसी टूटी कि तब से अब तक कांग्रेस का कोई भी उम्मीदवार इस क्षेत्र में वर्ष 1984 के चुनाव को छोड़कर मुख्य लड़ाई में नहीं रहा है।

1980 के लोकसभा चुनाव में लोकदल के टिकट पर जब यादव दोबारा मैदान में उतरे तब जनता पार्टी के सत्यदेव सिंह से 8,781 मतों के मामूली अंतर से पराजित हो गए। वर्ष 1984 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या से उभरी सहानुभूति लहर के बावजूद कांग्रेस का उम्मीदवार यहां से चुनाव नहीं जीत सका।

हालांकि कांग्रेस उम्मीदवार भीष्म प्रसाद यादव उस चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे। जनता पार्टी के राम बहादुर सिंह विजयी हुए थे जबकि लालू प्रसाद यादव तीसरे नंबर पर चले गए। हालांकि वर्ष 1989 में फिर जनता दल प्रत्याशी के रूप में यादव विजयी हुए। इसके बाद वर्ष 1990 और वर्ष 1991 का चुनाव जीतकर जनता दल के ही लाल बाबू राय लोकसभा पहुंचे।

वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में राजीव प्रताप रूडी भाजपा के टिकट पर पहली बार मैदान में उतरे और 15 हजार 496 मतों के अंतर से लाल बाबू राय को पराजित कर संसद में पहुंचे।

हालांकि वर्ष 1998 में वे राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के हीरालाल राय से पराजित हो गए, लेकिन वर्ष 1999 के लोकसभा चुनाव में रूडी एक बार फिर विजयी हुए। वर्ष 2004 और वर्ष 2009 के चुनाव में लालू प्रसाद यादव तथा रूडी के बीच फिर मुकाबला हुआ लेकिन दोनों चुनावों में यादव की जीत हुई।

इस बार का चुनाव भी राजपूत और यादव जातियों के इर्द-गिर्द ही घूमता नजर आ रहा है। राबड़ीदेवी को अपने आधार वोट को एकजुट रखने के साथ जदयू प्रत्याशी सलीम परवेज से अपने मतों को बचाने की भी चुनौती है वहीं भाजपा प्रत्याशी भी अपनी जाति के वोटों को गोलबंद करने के साथ ही नमो लहर के जरिए अन्य जातियों के वोट को जुटाने की भरपूर कोशिश कर रहे है।

दूसरी ओर जदयू के सलीम परवेज अपनी स्वच्छ छवि और नीतीश कुमार के विकास कार्यों के सहारे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रख रहे। इस क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के बालमुकुंद चौहान और आम आदमी पार्टी के परमात्मा सिंह समेत 11 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं।

इस क्षेत्र में जीत की अहमियत को समझते हुए तीनों प्रमुख पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। राबड़ीदेवी की जीत पक्की करने के लिए उनकी पुत्री तथा पुत्र सारण में डेरा डाले हुए हैं, जबकि यादव अन्य क्षेत्रों में प्रचार कर लौटने के बाद देर रात तक अपने समर्थकों के साथ क्षेत्र का भ्रमण कर रहे हैं।

वहीं भाजपा उम्मीदवार के लिए पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह, प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी, लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, पार्टी के वरिष्ठ नेता सैयद शाहनवाज हुसैन, रवि शंकर प्रसाद, बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी समेत कई वरिष्ठ नेताओं की चुनावी सभाएं हो चुकी हैं।

जदयू प्रत्याशी के लिए नीतीश कुमार, पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव, प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह और राज्य के कई मंत्रियों समेत अन्य वरिष्ठ नेता चुनावी सभा कर वोट मांग रहे हैं। सारण संसदीय क्षेत्र में पड़ने वाले 6 विधानसभा क्षेत्रों में से 3 पर भाजपा, 2 पर जदयू और 1 पर राजद का कब्जा है।

सोनपुर से भाजपा के विनय कुमार सिंह, छपरा से जनार्दन सिंह सिग्रीवाल, गरखा (सु) से भाजपा के ही ज्ञानचंद्र मांझी, परसा से जदयू के छोटे लाल राय, अमनौर से जद (यू) के कृष्ण कुमार सिंह तथा मढ़ौरा से जीतेन्द्र कुमार राय विधायक हैं। इस संसदीय क्षेत्र के लिए 7 मई को मतदान होना है। (वार्ता)

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