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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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मुफ्ती-अब्दुल्‍ला का संसदीय क्षेत्र बना 'कुरुक्षेत्र'

-सुरेश एस डुग्गर

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श्रीनगर-बडगाम संसदीय क्षेत्र में हालांकि मुकाबला दो परिवारों के बीच सीधा नहीं है लेकिन फिर भी मुफ्ती और अब्दुल्ला परिवार के लिए यह संसदीय क्षेत्र कुरुक्षेत्र का मैदान बन गया है।

आतंकी हमलों से नेकांइयों के हौसले पस्ते करने की कोशिशें की हैं और इन सबके बीच पकड़े गए आतंकी संदेश साफ दर्शाते हैं कि मुफ्ती परिवार सत्ता का लाभ अब्दुल्ला परिवार की राजनीतिक मौत के लिए उठाना चाहता है अर्थात वह चाहता है कि वर्ष 2002 के विधानसभा चुनावों में जैसे गंदरबल ने उमर अब्दुल्ला के साथ ‘गदर’ किया था, इस बार श्रीनगर-बडगाम संसदीय क्षेत्र भी उसे मैदान से उखाड़ दे।

यही कारण है कि मुफ्ती परिवार का पूरा जोर इस बार अनंतनाग के संसदीय क्षेत्र में नहीं था, जहां मुफ्ती परिवार की वंशवाद की बेल अर्थात महबूबा मुफ्ती अपनों से ही मुकाबले में उतरी थीं बल्कि पिता-पुत्री ने श्रीनगर के संसदीय क्षेत्र को कुरुक्षेत्र का मैदान बना रखा है।

कारण भी स्पष्ट हैं। मुफ्ती परिवार की ‘दिली इच्छा’ है कि नेकां का पत्ता साफ हो जाए। 2002 के विधानसभा चुनावों की रही-सही कसर संसदीय चुनावों में पूरी हो जिसमें नेकां को अगर कोई उम्मीद है तो वह सिर्फ इसी संसदीय क्षेत्र से है।

ये तो छोटे-छोटे कारण थे कि मुफ्ती परिवार शेख अब्दुल्ला के परिवार को राजनीतिक मात देने की खातिर श्रीनगर में डेरा जमाए हुए है और अपनी पार्टी पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार तारीक हमीद कारा की जीत सुनिश्चित करने की कोशिशों में है बल्कि सही कारण पिता-पुत्री अपनी उस हार का बदला लेना चाहते हैं, जो 1999 के संसदीय चुनावों में दोनों को नेकां के हाथों उठानी पड़ी थी।

याद रहे कि अगर उमर अब्दुल्ला ने 1999 के चुनावों में श्रीनगर संसदीय क्षेत्र से महबूबा मुफ्ती को भारी अंतर से पराजय का मुंह देखने पर मजबूर कर दिया था तो अनंतनाग से मुफ्ती मुहम्मद सईद चारों खाने चित पड़े थे।

और अब हालत यह है कि मुफ्ती परिवार कोई ऐसा मौका हाथ से नहीं गंवाना चाहता है जो नेकां पर किसी कड़े प्रहार से कम न हो। अवसर भी मिला है। इन लोकसभा चुनावों में नेकां को अपना पलड़ा बहुत ही ज्यादा कमजोर साबित हो रहा है।

याद रहे 2002 के विधानसभा चुनावों में उमर अब्दुल्ला को हार का सामना करना पड़ा था। हालांकि इस बार चुनाव में फारुक अब्दुल्ला और मुफ्ती परिवार के किसी सदस्य का सीधा मुकाबला तो नहीं है लेकिन कोशिश मुफ्ती परिवार की यह है कि श्रीनगर संसदीय क्षेत्र के मतदाता फारुक अब्दुल्ला के साथ ठीक उसी प्रकार ‘गदर’ करें जिस प्रकार 2002 के विधानसभा चुनावों में उनके खानदानी विधानसभा क्षेत्र गंदरबल ने अब्दुल्ला परिवार से ‘गदर’ किया था।

सिर्फ यही कोशिश नहीं है। पिता-पुत्री अपनी पूरी पार्टी के साथ इसी संसदीय क्षेत्र में चुनाव प्रचार में जुटे हुए हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि अनंतनाग में इतना प्रचार दोनों नहीं कर रहे हैं जितना जोर वे इस संसदीय क्षेत्र में लगा रहे हैं।

असल में शेख अब्दुल्ला परिवार के सदस्य को हराना ही उनकी इज्जत का सवाल बन गया है। यह भी याद रहे कि फारुक अब्दुल्ला के लिए इस बार चुनाव जीतना भी इज्जत का सवाल इसलिए बन गया है, क्योंकि अभी तक इस संसदीय क्षेत्र के प्रति यही कहा जाता रहा था कि एक सांसद को उसने कभी दूसरी बार संसद में नहीं भिजवाया मगर उमर उमर अब्दुल्ला हैट्रिक बनाकर मिथ्य तोड़ चुके हैं तो फारुक अब्दुल्ला अब इसी क्षेत्र से हैटट्रिक की उम्मीद लगाए बैठे हैं।

वैसे फारुक अब्दुल्ला की हार और शेख अब्दुल्ला परिवार की ‘राजनीतिक मौत’ की कोशिशें सिर्फ पीडीपी द्वारा ही अंजाम नहीं दी जा रही हैं बल्कि इसके लिए आतंकी गुट भी अपनी पूरी जोर आजमाइश में जुटे हुए हैं। नतीजतन श्रीनगर संसदीय क्षेत्र में जितने हमले नेकां की रैलियों और प्रचार वाहनों पर हुए हैं शायद ही उतने हमलों का सामना किसी अन्य पार्टी को करना पड़ा हो।

यही नहीं डॉ. फारुक अब्दुल्ला की जनसभाओं में हथगोलों के हमलों के बाद पकड़े गए आतंकी संदेश भी बहुत कुछ बयान करने लगे हैं।

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