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मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024
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साध्वी के कर्मों की कालिख से रक्षा

आतंकवादी का कोई मजहब नहीं होता

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आलोक मेहता

काश यह सच न हो। उन्हें क्या हमें भी सहसा विश्वास नहीं होता। कोई बुरी खबर मिलने पर हर भले मानुस के मुँह से यही निकलता है। फिर भी तथ्य, प्रमाण सामने आने पर विश्वास करना पड़ता है। साध्वी प्रज्ञा और उनके साथियों की मालेगाँव बम विस्फोट कांड में गिरफ्तारी के बाद संघ-भाजपा से अधिक देशवासी स्तब्ध और आहत हैं।

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साध्वी प्रज्ञा अकेली नहीं हैं। बहरी सरकारें और बेईमान पुलिसवाले समय रहते किसी सिमी या साध्वी के अंगारे बरसाते भाषणों पर कार्रवाई करना दूर, ध्यान तक नहीं देते हैं। बदले के नाम पर किसी एक वर्ग, समाज या क्षेत्र के मासूम लोगों की नृशंस हत्या की शिक्षा किस धर्म में दी गई है?

जब तक अदालत में प्रमाणित नहीं होता, तब तक हम और आप भी साध्वी प्रज्ञासिंह, श्यामलाल साहू तथा बम धमाकों में संदिग्ध आरोपित सेना के पूर्व अधिकारियों को आतंकवादी नहीं कह सकते, लेकिन महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश पुलिस तथा सरकारी आतंकवाद निरोधक दस्ते (एटीएस) जब इसी इंदौर, उज्जैन, भोपाल, सूरत, अहमदाबाद, मुंबई व दिल्ली में मुस्लिम संगठन सिमी या तथाकथित मुजाहिदीन संगठनों से जुड़े संदिग्ध लोगों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए गिरफ्तार करते हैं, मीडिया उन्हें आतंकवादी कहकर दिखाता और लिखता रहा है।

  मालव माटी से रिश्ते के कारण उस क्षेत्र में लाखों लोगों की तरह मैं भी आहत हूँ। ऐसा क्यों हो रहा है कि पिछले महीनों के दौरान आतंकवादी गतिविधियों के तार, सूत्र, सूत्रधार, अपराधी उज्जैन, इंदौर, रतलाम, मंदसौर, भोपाल, जबलपुर के इर्द-गिर्द मिल रहे हैं      
लेकिन इस लोकतांत्रिक देश में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग सर्वोच्च अदालत से मुजरिम घोषित न होने तक बहुमत के बल पर सत्ता के सिंहासन को सुशोभित करते रहे हैं। इसलिए बहुसंख्यक हिन्दू समाज की भावनाओं का आदर करते हुए साध्वी प्रज्ञा या उनसे जुड़े नेताओं, साधु वेशधारी साथियों, आत्म रक्षा के नाम पर हथियारों की शिक्षा-दीक्षा देने वालों, पर्चों, किताबों, टीवी चैनलों और सभाओं के जरिये अन्य धर्मावलंबियों के नाश की घोषणा करने वाले के विरुद्ध सरकारें सहमे अंदाज में आगे बढ़ती हैं।

मालव माटी से रिश्ते के कारण उस क्षेत्र में लाखों लोगों की तरह मैं भी आहत हूँ। ऐसा क्यों हो रहा है कि पिछले महीनों के दौरान आतंकवादी गतिविधियों के तार, सूत्र, सूत्रधार, अपराधी उज्जैन, इंदौर, रतलाम, मंदसौर, भोपाल, जबलपुर के इर्द-गिर्द मिल रहे हैं। इस क्षेत्र का पूरा इतिहास शांति और सद्भावना के लिए गौरव के साथ पढ़ा जाता रहा है। संभवतः इस क्षेत्र के लोगों को आसानी से धर्म, अंधविश्वास, गरीबी के साथ सरलता के कारण मोहरा बनाना आसान रहा है।

  सिमी या साध्वी से जुड़े सिरफिरे लोग अपना जाल फैला रहे होते हैं, तो पुलिस और प्रशासन गीदड़ की तरह आँखें क्यों मूँद लेता है? निश्चित रूप से आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता। कोई ईमान नहीं होता। कोई जाति नहीं होती      
लेकिन जब सिमी या साध्वी से जुड़े सिरफिरे लोग अपना जाल फैला रहे होते हैं, तो पुलिस और प्रशासन गीदड़ की तरह आँखें क्यों मूँद लेता है? निश्चित रूप से आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता। कोई ईमान नहीं होता। कोई जाति नहीं होती। प्राचीनकाल में राक्षस-राक्षसनियों की वेशभूषा और पाखंडी रूप कितना ही चमकता था, लेकिन कोई मजहब नहीं होता था।

पाकिस्तान से उपजे भारत या विश्व विरोधी आतंकवाद को इस्लाम धर्म-जेहाद इत्यादि नामों से जोड़ा गया, लेकिन इससे सर्वाधिक हत्याएँ उसी धर्म के पालन करने वालों की हुईं। इसके जवाब में पिछले कुछ वर्षों में हिन्दू धर्म के तथाकथित ठेकेदारों ने न जाने कितने नामों से वाहिनियों, मंचों का गठन कर षड्यंत्रों और अस्त्र-शस्त्र प्रशिक्षण शिविरों का सिलसिला चलाया। गैर लाइसेंसी बंदूकों को लहराते हुए हर शहर में जुलूस निकाले गए, लेकिन केंद्र या राज्य सरकारों ने चूँ तक नहीं की।

राज ठाकरे और उसके गुंडों ने दो साल से मुंबई और देश को हिलाकर रखा, लेकिन सरकारें खानापूर्ति करती रहीं। मालेगाँव, हैदराबाद, दिल्ली में जामा मस्जिद और कुतुबमीनार के आसपास पिछले महीनों के दौरान हुए बम धमाकों के बाद भी सरकारें ऊँघती दिखाई दीं। बहरहाल, उसी राजनीतिक दबाव में ही सही, महाराष्ट्र की पुलिस ने धार्मिक चोलों की परवाह न कर कुछ लोगों पर शिकंजा कसा है।

इस जाँच-पड़ताल पर किसी सरकार या प्रतिपक्ष को राजनीतिक रंग नहीं डालना चाहिए। हिन्दू आतंकवाद से भारत दुनिया में बदनाम होगा, तो संघ वालों को भी ईसाई मिशनरियों तथा मदरसों के कथित संदिग्ध इरादों पर हमला करने का अवसर नहीं मिल पाएगा। पाकिस्तानी और तालिबानी आतंकवाद से हम एशियाइयों को समान रंग-रूप के कारण कठिनाइयाँ झेलनी पड़ रही हैं।

अब हिन्दू आतंकवाद का घिनौना रूप विकराल होता गया तो दुनिया को मुँह दिखाना मुश्किल हो जाएगा। सम्मानजनक विकल्प संस्थाओं पर प्रतिबंध नहीं उनकी जड़ों को नष्ट करते हुए दोषियों को समय रहते कार्रवाई कर दंडित किया जाना चाहिए। दीपावली पर हिन्दू ही नहीं, हर भारतीय के मुँह पर बारूद की कालिख नहीं बल्कि शुद्घ घी के दीपक की रोशनी की चमक होनी चाहिए। यही है दीपावली की असली शुभकामनाएँ।

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