नई दिल्ली। अनिद्रा, घबराहट, अवसाद और भविष्य को लेकर अनिश्चितता के कारण उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव के पीड़ित मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि जमीन की दरारें और चौड़ी होती जा रही हैं, ऐसे में राहत शिविरों में शरण लिए इन पीड़ितों के लिए ज्यों-ज्यों दिन हफ्ते में बदल रहे हैं उनकी चिंताएं और गहरी होती जा रही हैं।
संकट खत्म होने का कोई आसार नहीं दिखता, उत्तराखंड के जोशीमठ शहर में सैकड़ों अन्य लोग अब भी भाग्यशाली हैं कि वे अपने घरों में हैं, हालांकि वे चिंतित भी हैं कि कभी तो उन्हें भी सरकार द्वारा संचालित आश्रयों, होटलों में शरण लेना होगा या शहर को छोड़ना होगा।
जोशीमठ में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) में नियुक्त अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ऋषिकेश से मनोचिकित्सक डॉ. ज्योत्सना नैथवाल ने कहा, पिछले महीने हुए भू-धंसाव की घटना का सभी पर प्रभाव पड़ा है। प्रभावित लोगों में सबसे प्रमुख लक्षण जो देखे गए हैं वे हैं नींद की कमी और घबराहट।
डॉ. नैथवाल तीन प्रशिक्षित मनोचिकित्सकों और एक क्लिनिकल मनोचिकित्सक की टीम का हिस्सा हैं जो 20000 से अधिक आबादी वाले शहर में मानसिक आघात से लड़ने में लोगों की मदद करने के लिए है। नैथवाल का अपना मकान सिंहधार इलाके में हैं जहां जमीन में दरारें पड़ने के कारण वह अपने परिवार के साथ एक होटल में रुकी हैं।
अध्ययनों से पता चला है कि भूस्खलन, भूकंप और बाढ़ जैसी प्राकृतिक त्रासदी दर्दनाक होती हैं और इसके परिणामस्वरूप अवसाद, चिंता और पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (पीटीएसडी) सहित कई तरह की मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।विशेषज्ञों ने कहा कि भूस्खलन के पीड़ितों के लिए मानसिक रोग की रोकथाम और उपचार के वास्ते प्रभावी जांच और जागरूकता कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए।
जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति (जेबीएसएस) के संयोजक अतुल सती के अनुसार, कम लोग अपनी समस्याओं की रिपोर्ट करने के लिए आगे आ रहे हैं क्योंकि मानसिक स्वास्थ्य अब भी एक वर्जित विषय है। सती ने बताया, कई लोग, हमारे कार्यकर्ता मानसिक स्वास्थ्य एवं पीड़ा से जूझ रहे लोगों के संपर्क में हैं।
Edited By : Chetan Gour (भाषा)