नई दिल्ली। केंद्रीय अल्पंसख्यक कार्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा है कि तीन तलाक संबंधी विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए है, किसी को निशाना बनाने के लिए नहीं।
नकवी ने कहा कि सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों को खत्म करने के लिए संसद ने जिस प्रकार का कदम उठाया था, उसी प्रकार से मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की कुरीति से न्याय दिलाने के लिए इस विधेयक को सर्वसम्मति से पारित किया जाना चाहिए।
तीन तलाक विधेयक पर लोकसभा में चर्चा में हस्तक्षेप करते हुए नकवी ने कहा कि करीब तीन दशक पहले मुस्लिम महिलाओं को इंसाफ दिलाने के मुद्दे पर संसद में गंभीरता से चर्चा हुई थी, लेकिन कुछ ‘कठमुल्लाओं’ के दबाव में उस समय की कांग्रेस सरकार ने उच्चतम न्यायालय के फैसले को प्रभावित करने के लिए कानून बनाया था।
कुछ विपक्षी दलों पर निशाना साधते हुए नकवी ने आरोप लगाया कि कुछ लोगों को ‘गुनाहगारों’ की बहुत चिंता हो रही है। कई पार्टियों के नेता इस बात से चिंतित हैं कि फौरी तीन तलाक देने के दोषी पति को जेल भेज दिए जाने पर उसके परिवार का क्या होगा, उसकी पत्नी का गुजारा कैसे होगा। लेकिन सवाल यह है कि कोई ऐसा जुर्म करे ही क्यों कि उसे जेल जाने की नौबत आए।
नकवी ने कहा कि जब सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों को खत्म करने के प्रयास किए जा रहे थे, तो उस वक्त भी कुछ लोगों ने विरोध किया था। लेकिन इस देश और इस समाज ने सती प्रथा और बाल विवाह जैसी कुरीतियों को खत्म किया। उन्होंने कहा कि विपक्षी नेताओं के रुख से ऐसा लग रहा है कि वे मजलूम के साथ नहीं, बल्कि मुजरिम के साथ हैं। नकवी ने कहा कि तीन तलाक को अनेक इस्लामी देशों में प्रतिबंधित किया गया है।
उन्होंने कहा कि सूडान में 1929, पाकिस्तान में 1956, बांग्लादेश में 1972, इराक में 1959 और सीरिया में 1953 में तीन तलाक प्रथा को प्रतिबंधित किया जा चुका है। उन्होंने कहा कि जॉर्डन, मोरक्को और अल्जीरिया जैसे देशों में भी तीन तलाक प्रतिबंधित और गैर-कानूनी है। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि यह विधेयक मुस्लिम महिलाओं को न्याय दिलाने के लिए है। यह किसी को निशाना के लिए नहीं लाया गया है। (भाषा)