सेना ने इसकी पुष्टि की : सेना ने इसकी पुष्टि की है कि उसने अखनूर सेक्टर के बटल में आतंकियों को मार गिराने के लिए अपने बख्तरबंद वाहन बीएमपी 2 अर्थात एपीसी का इस्तेमाल इसलिए किया था, क्योंकि भोगौलिक परिस्थितियों को देखते हुए सैनिकों को इस तरह की शील्ड की जरूरत पड़ गई थी। यही कारण का था कि सेना दावा करती है कि इनके इस्तेमाल के कारण ही इस मुठभेड़ में उसे किसी प्रकार की कोई क्षति नहीं उठानी पड़ी है।
ALSO READ: जम्मू में घुसपैठ करने की फिराक में 50 आतंकी, अखनूर एनकाउंटर पर मेजर जनरल का खुलासा
जानकारी के लिए जिन टैंकों अर्थात बीएमपी-2 का इस्तेमाल किया गया, वे एक बख्तरबंद वाहन हैं यानी इन पर गोलियों और आईईडी का कोई असर नहीं होता है। मेन वेपन के तौर पर इस वाहन पर 30 एमएम की आटो कैनन अटैच होती है। ये 1 मिनट के अंदर 800 राउंड फायरिंग कर सकती है। ऑटो कैनन के साथ ही बीएमपी-2 पर एक हैवी मशीनगन भी लगी होती है।
बीएमपी-2 की सबसे बड़ी पॉवर इसकी एंटी टैंक गन : लेकिन भारतीय सेना की बीएमपी-2 की सबसे बड़ी पॉवर इसकी एंटी टैंक गन है, जो नाग मिसाइल से लैस रहती है यानी युद्ध के मैदान में बीएमपी 2 किसी मेन बैटल टैंक को भी तबाह करने में सक्षम है। अधिकारियों ने बताया कि करीब 1 दर्जन बीएमपी टैकों को कल मुठभेड़ के दौरान मैदान में उतारा गया था, जो इलाके में पहले से ही तैनात थे।
ALSO READ: सैनिकों ने अखनूर में LOC पर कड़ी सतर्कता के बीच मनाई दिवाली
वैसे यह कोई पहली बार नहीं था कि सेना को आतंकियों से मुठभेड़ में टैंकों का इस्तेमाल करना पड़ा हो बल्कि वर्ष 2013 में सितंबर महीने में ही सांबा के मेहसर इलाके में टैंक यूनिट पर आतंकी हमले के दौरान भी टैंकों का इस्तेमाल किया गया था। तब साम्बा के निकट महेसर सैन्य शिविर पर हुए इसी प्रकार के हमले में लेफ्टिनेंट कर्नल बिक्रमजीत सिंह समेत सेना के 3 जवान शहीद हो गए थे। शिविर में हुए हमले में इकाई के एक अन्य कर्नल स्तर के एक कमान अधिकारी (सीओ) समेत 3 लोग घायल भी हुए थे। यहां 16 कैवेलरी की एक इकाई तैनात है। सांबा ब्रिगेड 9 कोर से ताल्लुक रखती है जिसका मुख्यालय हिमाचल प्रदेश है। यह सेना की पश्चिमी कमान का हिस्सा है।
ALSO READ: Terrorist अखनूर के बटल में सेना की एम्बुलेंस पर हमला करने वाले तीनों आतंकी ढेर
और इसी तरह पिछले साल 15 सितंबर को अनंतनाग के कोकरनाग इलाके में 8 दिनों तक चली जंग का खास पहलू यह था कि ऊंची पहाड़ियों पर काबिज आतंकियों से निपटने को सेना को पहली बार मीडियम रेंज के तोपखाने के साथ ही सबसे अधिक शक्तिशाली हरोन मार्क 2 ड्रोन का भी इस्तेमाल आतंकियों पर बम बरसाने में करना पड़ा था।
ALSO READ: चीन से लगी सीमा पर तोपखाना इकाइयों की युद्ध क्षमता बढ़ा रही थलसेना
यह कश्मीर की पहली ऐसी मुठभेड़ भी कही जा सकती थी जिसमें पहली बार इजराइल से प्राप्त हरोन मार्क 2 जैसे खतरनाक ड्रोन का इस्तेमाल आतंकियों के संभावित ठिकानों पर बमबारी करने में किया गया था जबकि आतंकी ऊंची पहाड़ी पर थे, जहां पहुंच मुश्किल थी और इसकी खातिर सेना ने छाताधारी सैनिकों को उतारने के साथ ही मीडियम रेंज के तोपखानों से भी गोले बरसाए गए थे।
Edited by: Ravindra Gupta