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भाजपा को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने बागी कांग्रेसी विधायकों से मुलाकात की पेशकश ठुकराई

हमें फॉलो करें भाजपा को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने बागी कांग्रेसी विधायकों से मुलाकात की पेशकश ठुकराई
, बुधवार, 18 मार्च 2020 (19:00 IST)
नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने मध्यप्रदेश कांग्रेस के बागी विधायकों से न्यायाधीशों के चैंबर में मुलाकात करने की पेशकश बुधवार को ठुकराते हुए टिप्पणी की कि विधानसभा जाना या नहीं जाना उन पर (विधायकों) निर्भर है, लेकिन उन्हें बंधक बनाकर नहीं रखा जा सकता। न्यायाधीशों के चैंबर में मुलाकात की पेश का प्रस्ताव भाजपा की ओर से रखा गया था।

न्यायमूर्ति धनन्जय वाई चन्द्रचूड़ और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की पीठ ने कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के इस्तीफे की वजह से मध्यप्रदेश में उत्पन्न राजनीतिक संकट को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की और कहा कि वह विधानसभा द्वारा यह निर्णय करने के बीच में नहीं पड़ेगी कि किसके पास सदन का विश्वास है लेकिन उसे यह सुनिश्चित करना है कि ये 16 विधायक स्वतंत्र रूप से अपने अधिकार का इस्तेमाल करें।

पीठ ने इन विधायकों का चैंबर में मुलाकात करने की पेशकश यह कहते हुए ठुकरा दी कि ऐसा करना उचित नहीं होगा। यही नहीं, पीठ ने रजिस्ट्रार जनरल को भी इन बागी विधायकों से मुलाकात के लिए भेजने से इनकार कर दिया।

पीठ ने इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के 9 विधायकों के साथ ही मप्र कांग्रेस विधायक दल की याचिकाओं पर सुनवाई गुरुवार को सुबह 10.30 बजे तक के लिए स्थगित कर दी।

पीठ ने कहा, ‘संवैधानिक न्यायालय होने के नाते, हमें अपने कर्तव्यों का निर्वहन करना है और इस समय की स्थिति के अनुसार वह यह जानती है कि मध्यप्रदेश में ये 16 बागी विधायक पलड़ा किसी भी तरफ झुका सकते हैं।

न्यायालय ने इस मामले के अधिवक्ताओं से कहा कि विधानसभा तक निर्बाध रूप से पहुंचने और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने का तरीका तैयार करने में मदद करने का अनुरोध किया।

पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने सभी बागी विधायकों को न्यायाधीशों के चैंबर में पेश करने का प्रस्ताव रखा, जिसे न्यायालय ने अस्वीकार कर दिया।

उन्होंने कहा कि वैकल्पिक उपाय के अंतर्गत कर्नाटक उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल गुरुवार को जाकर इन बागी विधायकों से मुलाकात कर सकते हैं और सारी कार्यवाही की वीडियो रिकॉर्डिंग कर सकते हैं।

रोहतगी ने कांग्रेस की याचिका की विचारणीयता पर सवाल उठाया और कहा कि एक राजनीतिक दल अपनी याचिका में बागी विधायकों से मुलाकात का अनुरोध कैसे कर सकता है। उन्होंने कहा कि समस्या यह है कि कांग्रेस चाहती है कि बागी विधायक भोपाल जाएं ताकि उन्हें लुभाया जा सके और वह खरीद फरोख्त कर सकें।

बागी विधायकों ने भी पीठ से कहा कि वे संविधान के प्रावधान के अनुरूप किसी भी नतीजे का सामना करने के लिए तैयार हैं। इन विधायकों ने कांग्रेस के नेताओं से मुलाकात करने से इनकार करते हुए कहा कि उनकी ऐसी इच्छा नहीं है।

बागी विधायकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मनिन्दर सिंह ने कहा, अध्यक्ष हमारे इस्तीफे दबाकर नहीं बैठ सकते। क्या वह कुछ इस्तीफे स्वीकार कर सकते हैं और बाकी अन्य को नहीं कर सकते हैं क्योंकि राजनीतिक खेल चल रहा है।

उन्होंने कहा कि इस्तीफा देना उनका संवैधानिक अधिकार है और इन इस्तीफों को स्वीकार करने के लिए अध्यक्ष का क्या कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि इन सभी विधायकों ने प्रेस कांफ्रेंस करके घोषणा की है कि उन्होंने अपनी इच्छा से यह निर्णय लिया है और हलफनामे पर भी उन्होंने ऐसा ही किया है।
 
इन विधायकों ने पीठ से कहा, ‘हमारा अपहरण नहीं किया गया है और हम इस संबंध में साक्ष्य के रूप में न्यायालय के समक्ष एक सीडी भी पेश कर रहे हैं। हम कांग्रेस के नेताओं से नहीं मिलना चाहते। हमें बाध्य करने के लिए कोई कानूनी सिद्धांत नहीं है।’
 
इससे पहले दिन में सुनवाई के दौरान मध्यप्रदेश कांग्रेस पार्टी ने न्यायालय से आग्रह किया कि राज्य विधानसभा में रिक्त हुए स्थानों के लिए उपचुनाव होने तक सरकार के विश्वास मत प्राप्त करने की प्रक्रिया स्थगित की जाए। कांग्रेस ने यह भी दलील दी कि अगर उस समय तक कमलनाथ सरकार सत्ता में रहती है तो आसमान नहीं टूटने वाला है।

कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा, यदि उपचुनाव होने तक कांग्रेस सरकार को सत्ता में बने रहने दिया जाता है तो इससे आसमान नहीं गिरने वाला है और शिवराज सिंह चौहान की सरकार को जनता पर थोपा नहीं जाना चाहिए।

दवे का कहना था कि राज्यपाल को सदन में शक्ति परीक्षण कराने के लिए रात में मुख्यमंत्री या अध्यक्ष को संदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा, अध्यक्ष सर्वेसर्वा है और मध्य प्रदेश के राज्यपाल उन्हें दरकिनार कर रहे हैं।

चौहान की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने इस तर्क का जबर्दस्त प्रतिवाद किया और कहा कि कांग्रेस के 22 विधायकों के इस्तीफे, जिनमें से 6 इस्तीफे स्वीकार किए जा चुके हैं, के बाद राज्य सरकार को एक दिन भी सत्ता में बने रहने नहीं देना चाहिए। रोहतगी ने आरोप लगाया कि 1975 में आपातकाल लगाकर लोकतंत्र की हत्या करने वाली पार्टी अब डॉ. बीआर आम्बेडकर के उच्च सिद्धांतों की दुहाई दे रही है।

मप्र कांग्रेस विधायक दल ने मंगलवार को शीर्ष अदालत में याचिका दायर कर अनुरोध किया था कि उसके बागी विधायकों से संपर्क स्थापित कराने का केन्द्र और कर्नाटक की भाजपा सरकार को निर्देश दिया जाए। कांग्रेस का कहना है कि उसके विधायकों को बेंगलुरु की एक रिसॉर्ट में रखा गया है।

इससे पहले, मंगलवार की सुबह न्यायालय ने शिवराज सिंह चौहान और नौ अन्य भाजपा विधायकों की याचिका पर कमलनाथ सरकार से बुधवार की सुबह साढ़े दस बजे तक जवाब मांगा था। विधानसभा अध्यक्ष द्वारा 16 मार्च को राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन की कार्यवाही 26 मार्च तक के लिए स्थगित किए जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भाजपा के 9 विधायकों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी।

भाजपा ने इस याचिका में अध्यक्ष, मुख्यमंत्री और विधानसभा के प्रधान सचिव पर संविधान के सिद्धांतों का उल्लंघन करने और जान बूझकर राज्यपाल के निर्देशों की अवहेलना करने का आरोप लगाया था। राज्यपाल लालजी टंडन ने शनिवार की रात मुख्यमंत्री को संदेश भेजा था कि विधानसभा के बजट सत्र में राज्यपाल के अभिभाषण के तुरंत बाद सदन में विश्वास मत हासिल किया जाए क्योंकि उनकी सरकार अब अल्पमत में है।


अध्यक्ष द्वारा कांग्रेस के छह विधायकों के इस्तीफे स्वीकार किए जाने के बाद 222 सदस्यीय विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के सदस्यों की संख्या घटकर 108 रह गई है। इनमें वे 16 बागी विधायक भी शामिल हैं, जिनके इस्तीफे अभी स्वीकार नहीं किए गए हैं। राज्य विधानसभा में इस समय भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों की संख्या 107 है।

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