नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को संकेत दिया कि विकास दुबे मुठभेड़ प्रकरण और कानपुर में 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले की जांच के लिए शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच समिति गठित की जा सकती है।
इस बीच उत्तरप्रदेश सरकार ने न्यायालय से कहा कि वह विकास दुबे और उसके सहयोगियों की मुठभेड़ों में मौत के मामले में प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों के बारे में 16 जुलाई तक विस्तृत स्थिति रिपोर्ट दाखिल करेगी।
प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की पीठ ने इन मुठभेड़ की घटनाओं को लेकर दायर याचिकाओं की वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए सुनवाई करते हुए कहा कि वह दुबे और उसके सहयोगियों की मुठभेड़ में मौत के साथ ही गैंगस्टर द्वारा 8 पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले की जांच के लिए पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति गठित करने पर विचार करेगी।पीठ मुठभेड़ के इन मामलों की न्यायालय की निगरानी में जांच के लिए दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
पीठ ने कहा कि इस प्रकरण में भी वह तेलंगाना में पशुचिकित्सक से सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में चार आरोपियों की मुठभेड़ में मौत के मामले में दिए गए आदेश जैसा ही कदम उठाने पर विचार कर सकती है। तेलंगाना के मामले में न्यायालय ने शीर्ष अदालत के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में जांच आयोग गठित कर दिया था।
पीठ ने अपने आदेश में कहा कि इस मामले को 20 जुलाई को सूचीबद्ध किया जाए। व्यक्तिगत रूप से पेश याचिकाकर्ताओं को निर्देश दिया जाता है कि वे अपनी याचिकाओं की प्रति प्रतिवादी की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता को दें।
पीठ ने कहा कि उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से पेश मेहता इन याचिकाओं पर 16 जुलाई तक जवाब दाखिल कर सकते हैं। सुनवाई के दौरान उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि सरकार ने इस मामले को बहुत ही गंभीरता से लिया है और वह इस मामले में प्रशासन द्वारा उठाए गए कदमों के ब्योरे के साथ 16 जुलाई तक स्थिति रिपोर्ट पेश करेंगे।
कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में 3 जुलाई की रात विकास दुबे को गिरफ्तार करने गयी पुलिस की टुकड़ी पर घात लगाकर किए गए हमले में पुलिस उपाधीक्षक देवेन्द्र मिश्रा सहित आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। पुलिस की इस टुकड़ी पर विकास दुबे के घर की छत से गोलियां बरसाईं गई थीं।
विकास दुबे 10 जुलाई की सुबह कानपुर के निकट भौती इलाके में पुलिस मुठभेड़ में उस समय मारा गया जब उसने कथित तौर पर पुलिस की दुर्घनाग्रस्त गाड़ी से निकलकर भागने का प्रयास किया। उप्र पुलिस इसी गाड़ी में विकास दुबे को उज्जैन से कानपुर ला रही थी।
इस घटना के बारे में जानकारी देते हुए कानपुर रेंज के पुलिस महानिरीक्षक मोहित अग्रवाल ने बताया था कि इस दुर्घटना में 4 पुलिसकर्मी भी जख्मी हुए।
पुलिस का कहना था कि मुठभेड़ में घायल दुबे को तुरंत अस्पताल ले जाया गया जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया। विकास दुबे के मुठभेड़ में मारे जाने से पहले अलग-अलग मुठभेड़ों में उसके 5 कथित सहयोगी मारे जा चुके थे।
दुबे की मुठभेड़ में मौत से कुछ घंटे पहली ही याचिका दायर करने वाले अधिवक्ता घनश्याम उपाध्याय ने इस गैंगस्टर की सुरक्षा सुनिश्चित करने का उप्र सरकार और पुलिस को निर्देश देने का अनुरोध किया था। उन्होंने इस मामले में प्राथमिकी दर्ज करने और न्यायालय की निगरानी में पांच आरोपियों की मुठभेड़ में हत्या की सीबीआई से जांच कराने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था।
बाद में, दिल्ली स्थित अधिवक्ता अनूप प्रकाश अवस्थी और एक अन्य ने भी आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के मामले और बाद में 10 जुलाई को विकास दुबे की पुलिस मुठभेड़ में मौत के मामले और उत्तरप्रदेश में पुलिस-अपराधियों और नेताओं की सांठगांठ की न्यायालय की निगरानी में सीबीआई या एनआईए से इसकी जांच कराने तथा उन पर मुकदमा चलाने का अनुरोध किया।
इसके अलावा कानपुर में पुलिस की दबिश के बारे में महत्वपूर्ण सूचना विकास दुबे तक पहुंचाने में कथित संदिग्ध भूमिका की वजह से निलंबित पुलिस अधिकारी ने भी अपने संरक्षण के लिए न्यायालय में याचिका दायर की है।
पुलिस अधिकारी कृष्णकुमार शर्मा ने अपनी पत्नी विनीता सिरोही के जरिए यह याचिका दायर की है। इसमें विनीता ने आशंका व्यक्त की है कि उसके पति को गैरकानूनी और असंवैधानिक तरीके से खत्म किया जा सकता है।
कानपुर के बिकरू गांव में पुलिस की दबिश के बारे में विकास दुबे तक सूचना पहुंचाने के संदेह में सब इंसपेक्टर शर्मा को तीन अन्य पुलिसकर्मियों के साथ 5 जुलाई को निलंबित कर दिया गया था।
इस बीच गैर सरकारी संगठन पीयूसीएल ने भी एक याचिका दायर कर विकास दुबे और उसके दो सहयोगियों की उत्तरप्रदेश में पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने की घटना की जांच विशेष जांच दल से कराने के लिए अलग से याचिका दायर की है। याचिका में कहा गया है कि इन मुठभेड़ के बारे में पुलिस के कथन से कई गंभीर सवाल उठ रहे हैं, जिनकी जांच जरूरी है।
इस गैर सरकारी संगठन ने जनवरी, 2017 से मार्च 2018 के दौरान उप्र में पुलिस मुठभेड़ों की एसआईटी या सीबीआई से जांच के लिये याचिका दायर की थी। इसी मामले में पीयूसीएल ने अंतरिम आवेदन दायर किया है जिसमें इन मुठभेड़ों तथा अपराधियों एवं नेताओं के बीच साठगांठ की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक दल गठित करने का अनुरोध किया है। (भाषा)