नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड की नवनिर्वाचित सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा है कि क्या वे उन 4 आदिवासी कार्यकर्ताओं के विरुद्ध राज्य में पत्थलगड़ी आंदोलन के समर्थन में कथित तौर पर फेसबुक पोस्ट लिखने के लिए राजद्रोह के आरोप में दर्ज मामले वापस लेना चाहती है।
शीर्ष अदालत को आरोपियों की ओर से सूचित किया गया कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के कैबिनेट के पहले निर्णयों में यह घोषणा भी शामिल थी कि वह आंदोलन से जुड़े सभी आपराधिक मामले वापस लेगी।
पत्थलगड़ी नाम आदिवासियों के उस आदिवासी आंदोलन को दिया गया है, जो ग्रामसभाओं को स्वायत्तता की मांग को लेकर किया गया। पत्थलगड़ी की मांग करने वाले चाहते हैं कि क्षेत्र में आदिवासियों पर देश का कोई कानून लागू नहीं हो। पत्थलगड़ी समर्थक जंगल और नदियों पर सरकार के अधिकारों को खारिज करते हैं।
क्या है पत्थलगड़ी आंदोलन : आंदोलन में पत्थलगड़ी समर्थक गांव या क्षेत्र के बाहर एक पत्थर गाड़ते हैं या बोर्ड लगाते हैं जिसमें घोषणा की जाती है कि गांव एक स्वायत्त क्षेत्र है और इसमें बाहरी व्यक्तियों का प्रवेश निषिद्ध है।
न्यायमूर्ति एल. नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता की एक पीठ ने झारखंड के स्थायी अधिवक्ता तापेश कुमार सिंह से कहा कि वे निर्देश प्राप्त करें और उसे मामले वापस लेने के बारे में किसी निर्णय के बारे में दो सप्ताह में सूचित करें।
पीठ ने हाल में अपलोड किए गए अपने आदेश में कहा कि दो सप्ताह बाद सूचीबद्ध करें। इस बीच झारखंड राज्य के अधिवक्ता को निर्देशित किया जाता है कि वे इस बारे में निर्देश प्राप्त करें कि क्या राज्य याचिकाकर्ताओं के खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों पर आगे बढ़ना चाहती है।
शुरुआत में जे विकास कोरा के नेतृत्व वाले चार याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए अधिवक्ता जोएल ने अदालत को सूचित किया कि राज्य में नयी सरकार ने शपथ ली है और उसने अपनी पहली कैबिनेट बैठक में घोषणा की थी कि पत्थलगड़ी आंदोलन के चलते उत्पन्न आपराधिक मामले वापस लिए जाएंगे।
राज्य के अधिवक्ता तापेश कुमार सिंह ने कहा कि यदि ऐसा है तो याचिकाकर्ताओं को झारखंड उच्च न्यायालय के गत वर्ष के उस फैसले के खिलाफ दायर अपनी अपील वापस ले लेनी चाहिए जिसमें अदालत ने उनके खिलाफ दर्ज मामले रद्द करने से इंकार कर दिया था। पीठ ने यद्यपि सिंह से कहा कि वह सक्षम प्राधिकार से निर्देश प्राप्त करें और उसे दो सप्ताह में सूचित करें।
झारखंड उच्च न्यायालय ने गत वर्ष 22 जुलाई को 4 आरोपियों जे विकास कोरा, धर्म किशोर कुल्लू, इमिल वाल्टर कांडुलना और घनश्याम बिरुली के खिलाफ राजद्रोह के आरोप रद्द करने से इंकार कर दिया था। इन सभी के खिलाफ इस आरोप में मामले दर्ज किए गए थे कि इन्होंने अपने फेसबुक पोस्ट के जरिए पुलिस अधिकारियों पर हमले करने के लिए उकसाया।
कुल 20 व्यक्तियों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए थे जिनमें से मात्र चार अपने खिलाफ राजद्रोह और अन्य आरोप रद्द करने के अनुरोध के साथ शीर्ष अदालत पहुंचे। (भाषा)