पैंगोंग सो लेह के दक्षिण-पूर्व में 54 किलोमीटर की दूरी पर है। 4,350 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस झील की लंबाई 134 किलोमीटर है जो 604 वर्ग किलोमीटर में फैली है।
पैंगोंग सो की 60 प्रतिशत लंबाई तिब्बत में पड़ती है और इसका 40 प्रतिशत हिस्सा भारत में है। इतनी ऊंचाई पर होने के कारण सर्दियों में ये झील पूरी तरह से जम जाती है।
सामरिक तौर पर इलाके का भारत के लिए काफी महत्व रहा है। पैंगोंग सो झील पर 1962 से ही भारत-चीन के बीच तनाव रहा है।
चीन की कुदृष्टि वेशकीमती धातुओं पर : 1962 से ही चीन की लालची निगाहें इस क्षेत्र पर लगी हुई हैं। सबसे बड़ी वजह है इस क्षेत्र की ऐसी विशेषता जिसके कारण चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी इस जगह को किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहती है।
माना जाता है कि यह पूरा इलाका बेशकीमती धातुओं के भंडार से अटा पड़ा है। कई भू-गर्भीय विशेषज्ञों के अनुसार गोगरा पोस्ट के पास स्थित पहाड़ को ही 'गोल्डन माउंटेन' कहा जाता है। सेटेलाइट तस्वीरों से भी इस क्षेत्र में हाई गोल्ड डिपोजिट होने की पुष्टि हुई है।
स्थानीय लोगों और भूगर्भ शास्त्रियों का भी मानना है कि इस इलाके में सोने का अपार भंडार है। यह बात चीन को भी पता है यही वजह है कि चीनी सैनिक लगातार आक्रामक होते रहते हैं।
पिछले कुछ समय से पैंगोंग झील में चीनी सेना ने विवादित क्षेत्र में नए कैंप बनाने शुरू कर दिए हैं। यहां चीन की ओर से अतिरिक्त सेना भी तैनात की गई है। पैंगोंग झील में चीनी सेना लगातार बोट से गश्त भी करती आई है।
उल्लेखनीय है कि भारत सरकार अभी यहां पर सोने की खदानों पर सर्वे नहीं कर सकी है। इसका कारण चीन की आक्रमक सैन्य पैट्रोलिंग को बताया जा रहा है।